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________________ १६२ ] सूरजप्रकास अनंग बांण लाजि जाइ', ईख नैण अंजणं । मनी तजै कुरंग मीन, जोय रूप खंजणं । जड़ावमें तिलक्क जोति, एम' भाल अंकरै । निजं वरंस 'जोति' निक, अोपियौ मयंकरै ॥ १४१ ससोभ भूखणं स्रुतं, वणे जड़ाव बांमरा'' । विराजमान जांणि वीर, कोर बांधि'कामरा' । चमकवै टंक चक्र. अोपमा उमंदरा । जडाव चक्र दोय जै, रथंस जांणि चंदरा ॥ १४२ सुकीर नासिका सरूप, *वेस रीत राजिौं । सुरू''गुरू' र भोम सुक्र', राजद्वार राजिमैं। १ ख. ग. जाय। २ ख. ग. ईषि । ३ ख, ग. अंज्जणं। ४ स्व. ग. में। ५ ख. तिल्लक । ग. तिलक। ६ ग. ऐम। ७ ख. उरंस । ग. उरम। ८ ख. ग. न्यक्र । ६ ख. वोपीयो । ग. वोपीये। १० ख. श्रुतं । ग. शुभं। ११ ख. वामरा । ग. वांमरा । १२ ख. वांधि । १३ ख. ग. कामरा । ___*ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पद्यांश इस प्रकार है- 'बेसरी बिराजिये ।' १४ ख. ग. सुर। १५ ख. ग. ग्रु। १६ ख. जोड । ग. जाड़। १७ ख. ग. राजीये । १४१. अनंग - कामदेव । लाजि जाइ - लज्जित हो जाते हैं। ईख - देख कर। नैण नेत्र। अंजणं -- काजल । मनी- गर्व । कुरंग - हरिण । मीन - मछली। जोय - देख कर। खंजणं - एक प्रसिद्ध पक्षी विशेष जो स्वभावसे बहुत ही चंचल होता है । इसकी चंचलताको स्त्रियोंके नेत्रोंको उपमा दी जाती है। निक्र - ( ? ) । प्रोपियो - शोभायमान हुआ । मयंक - चंद्रमा । १४२. ससोभ - शोभापूर्वक, शोभासहित । भूखणं- प्राभूषण । स्वतं - श्रुति, कान। बांमरा स्त्रीका । त्रटक - तारक, कानका आभूषण । प्रोपमा - उपपा । १४३. सुकीर' 'राजिये - सुन्दर तोतेके नाकके समान नाक है और उसमें मोतीयुक्त बेसर (नामक आभूषण (नथ) इससे वह ऐसा शोभायमान होता है मानो सुरगुरु (बृहस्पति) भोम (मंगल) और शुक्र ये तीनों राजद्वार पर उपस्थित हो गये हों । यहाँ बेसर जो सोनेकी बनी हुई, उसका रंग सुर-गुरु (बृहस्पति) समान है, पीत है तथा बेसरमें जो मोती है उनका रंग श्वेत है । वह शुक्रके समान प्रतीत होता है और प्रोठोंका रंग लाल है जहाँ पर मोतियोंयुक्त बेसर लटकता है, वे अोठ मंगलके समान लाल प्रतीत होते हुए आनंददायक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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