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वहाँ से महाराजा सेना सहित जयपुर प्राये । ग्रामेर नरेश जयसिंहने इनका बहुत आदर-सत्कार किया और अपने यहाँ ठहराया । वहाँसे महाराजा मेड़ते पहुँचे और अपने छोटे भाई बखतसिंहसे मिल कर उनके साथ जोधपुर लौट आये ।
राजधानी लौटने पर महाराजाने सरबुलन्द पर चढ़ाई करनेके लिये अपने राज्य के सारे सामन्तोंको परवाने भेज कर सेना सहित इकट्ठा किया । महाराजाने एक विशाल दल तैयार किया । पूर्ण रूपसे अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित हुए । तोपोंको शक्तिका रूप मान कर उनकी पूजा की । महाराजाने इस प्रकार तैयार होकर अपने छोटे भाई बखत सिंह के साथ सरबुलन्दके विरुद्ध प्रयाण किया और जालोर आये। वहांसे रोहेड़ां श्रौर पौसाळियाके जागीरदारोंको परास्त किया । महाराजाने सिरोही के रावको दण्ड देनेके लिए आक्रमण कर दिया । महाराजाकी असीम शक्ति के सामने सिरोही के रावको झुकना पड़ा और उसने अपने भाईकी कन्याका विवाह कर के महाराजासे संधि कर ली । महाराजा अभयसिंह वहांसे रवाना होकर पालनपुर पहुंचे । यहाँका शासक फौजदार करीमदादखां महाराजासे मिल गया |
महाराजाने सरबुलन्दको एक पत्र लिखा जिसमें उसको अहमदाबाद छोड़ कर बादशाह के सामने झुकने के लिए लिखा किन्तु सरबुलन्दने स्पष्ट इन्कार कर दिया ।
महाराजाने अपने दलबल सहित रवाना होकर सरस्वती नदीके किनारे सिद्धपुर में डेरा किया। उधर सरबुलन्द महाराजासे लोहा लेनेके लिए पूर्ण रूपसे तैयारी कर चुका था । उसने अपने अधीनस्थ सभी मुसलमानोंको सेनासहित इकट्ठा कर महाराजाके विरुद्ध मोर्चा बांध लिया ।
इस समय महाराजाने एक दरबार किया जिसमें उनकी सेना के सभी सुभट इकट्ठे हुए । इस अवसर पर राठौड़ वंशकी भिन्न-भिन्न शाखाओंके -चांपावत, कूंपावत, ऊदावत, कररणावत, करमसिंहोत, मेड़तिया, जोधा, ऊहड़, रूपावत, भारमलोत आदि तथा सभी वंशों के राजपूत जैसे भाटी, चौहान, शिशोदिया, सोनगरा, शेखावत, मांगलिया आादिके अग्रणी वीरोंने तथा चारण कवियों, राजगुरु पुरोहितों तथा प्रोसवाल मुत्सद्दयों आदिने सभा में बड़ी जोशीली आवाज़ से यह प्रदर्शित किया कि हम सरबुलन्द पर विजय करनेके लिये वीर गतिको प्राप्त होने में बिल्कुल नहीं हिचकिचायेंगे ।
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