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________________ [ १३ ] आक्रमण करनेके लिये अपनी सेना तैयार की। चिर- प्रचलित प्रथा के अनुसार ज्वालामुखी तोपोंको शक्तिका रूप मान कर बकरों प्रादिकी बलि दी गई। तेलसिन्दूर से उनकी पूजा की गई । युद्धकी सारी सामग्री तैयार की। महाराजा. अभयसिंह अपने छोटे भाई बखत सिंह के साथ पूर्ण रूप से सुसज्जित होकर नागौरकी ओर बढ़े। नागौरका राव इन्द्रसिंह महाराजाकी शक्ति के सामने झुक गया । नागौर पर महाराजाका अधिकार हो गया । महाराजाने अपने छोटे भाई बखतसिंहको नागौरका राजा बनाया और उन्हें 'राजाधिराज' को उपाधि दी । इन्हीं दिनों महाराजाके छोटे भाई श्रानन्दसिंह श्रोर रायसिंहने उपद्रव कर के मेड़ता पर चढ़ाई कर दी। शेरसिंह मेड़तियाने मेड़ताकी रक्षा की । महाराजा भी नागौरकी प्रोरसे निवृत्त होकर अपने भाई बखतसिंह के साथ मेड़ता पहुँच गये। यहां पर आसपास के राजानोंने महाराजाके पास नजरें भेजीं और इन्हीं दिनों महाराजाने जैसलमेरकी राजकुमारीसे विवाह भी किया और जोधपुर लौट आये । कुछ समय पश्चात् बादशाहका आज्ञा-पत्र मिलनेके कारण महाराजा अभयसिंह अपने सामंतों सहित दिल्ली जानेके लिये रवाना हुए। जब वे दिल्ली पहुँचे तो बादशाहने उनका बहुत आदर-सत्कार किया । उसने अपने दरबारमें महाराजाको बैठे हुए सारे उमरावों व अमीरोंसे उच्च स्थान पर आसीन किया और इनकी बहुत प्रशंसा की । बादशाहने गुजरातके उपद्रवको दबाने के लिए सरबुलन्दखाँको भेजा था । सरबुलन्दखाने विद्रोहियोंसे मिल कर गुजरात पर अधिकार कर के अपनेको वहांका अधीश्वर घोषित कर दिया । सरबुलन्दके इस प्रकार स्वतंत्र होनेकी खबर जब बादशाह के पास पहुँची तो वह बहुत घबराया । बादशाहने शक्तिशाली सरबुलन्दका दमन करनेके लिए अपने विशाल दरबारमें सोनेके पात्र में बीड़ा (ताम्बूल ) रख कर घुमाया। मुगल साम्राज्यके शक्तिशाली वीरों तथा अमीरोंसे दरबार खचाखच भरा था किन्तु किसीकी भी सरबुलन्द के विरुद्ध बीड़ा उठानेकी हिम्मत नहीं हुई। बादशाहको निराश व दुखी देख कर महाबली महाराजा अभयसिंहने बीड़ा उठा कर सरबुलन्दको बादशाहके कदमों में झुकानेकी प्रतिज्ञा की । बादशाहने अजमेर के साथ गुजरात सूबेकी शासन-सनद महाराजा अभयसिंहको दे दी। इस अवसर पर बादशाहने प्रसन्न होकर महाराजाको मुकुट, सिरपेच, कीमती खजर, कटार, तलवार आदि देकर सम्मानित किया । इसके अतिरिक्त मय बारूदके विभिन्न प्रकारकी तोपें, अस्त्र-शस्त्र, बंदूकें तथा कुछ सेनाके साथ इकतीस लाख रुपया खर्चेका देकर विदा किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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