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[ १२ ] महम्मदशाह जो सिंहासन पर बैठा यह सब कुछ देख रहा था, तुरन्त उठा और आगे बढ़ कर अपने गलेका मोतियोंका हार महाराजकुमारको पहना कर बड़ी कठिनाईसे इनके क्रोधको शांत किया। अगर बादशाह उस समय ऐसा नहीं करता तो संभवतया वही घटना घटती जो बादशाह शाहजहांके दरबार में राठौड़ अमरसिंह द्वारा हुई थी।
महाराजकुमार अभयसिंह उन दिनों दिल्ली में बड़े ठाट-बाट से रह रहे थे और महाराजा अजीतसिंहजी जोधपुर में सुखपूर्वक थे। उन्हीं दिनों एकाएक महाराजाका देहावसान हो गया। [ यहाँ पर कर्नल टॉडके अनुसार बादशाह मुहम्मदशाहने ही महाराजकुमार अभयसिंहको दिल्ली में महाराजा अजीतसिंहके विरुद्ध बहकाया और एक जाली पत्र महाराजकुमार अभयसिंहके हस्ताक्षरका उनके छोटे भाई बखतसिंह के नाम भिजवा दिया, जिसमें मारवाड़के हितके लिये वृद्ध महाराजाको मारनेका लिखा था। उसीके अनुसार राजकुमार बखतसिंहने महाराजा अजीतसिंहको मार डाला। हो सकता है कविवर करणीदान राठौड़ वंश पर लगने वाले इस कलंकको छिपानेके लिए 'सूरजप्रकास' में इस बातके लिए मौन रह गये हों। ]
सप्तम प्रकरण महाराजा अभयसिंह
स्वाभिमानी महाराजा अजीतसिंहके स्वर्गवासके पश्चात् बादशाह मुहम्मदशाहने महाराजकुमार अभयसिंहका दिल्लीमें अपने हाथसे राज्याभिषेक किया। इस अवसर पर बादशाहने महाराजा अभयसिंहके कमरमें तलवार बांधी, राजमुकुट पहनाया और हीरे मोती आदि भेंट किये। कई बहुमूल्य वस्तुएँ उपहारमें दे कर बादशाहने नागौरकी शासन-सनद मारवाड़ के नवीन महाराजा अभयसिंहको दे दी। इस प्रकार महाराजा बादशाह द्वारा सम्मानित होकर अपने देश मारवाड
लौटे।
___महाराजाके मारवाड़में प्रवेश करते हो प्रजाने बड़ी भक्तिसे नवीन महाराजाका स्वागत किया। ज्यों-ज्यों महाराजा अभयसिंह राजधानीकी ओर बढ़ते गये त्योंत्यों प्रत्येक स्थानकी कुलवधुोंने शिर पर जलसे भरे कलश रख कर तथा गीत गा कर महाराजाका सम्मान किया। महाराजाने भी राजधानी लौट कर सामंतोंको उपहार दिये तथा कवियोंको पुरस्कार देकर सम्मानित किया।
सदियोंसे चली आ रही प्रथाके अनुसार महाराजा अभयसिंहका जोधपुर में ठाट-बाटसे राज्याभिषेक हुमा । तत्पश्चात् महाराजा अभयसिंहने नागौर पर
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