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________________ [१५] महाराजा अभयसिंह सभामें बड़ा जोशीला भाषण दिया। उन्होंने अपनी सेना के वीरोंको बताया कि एक दिन मरना तो सभीको है ही फिर क्यों नहीं हम रणभूमि में वीर गतिको प्राप्त होवें जो कि सन्यासियों व महात्मानों की तपस्या से भी बढ़कर है । सभी वीर अपनी-अपनी सेना को तैयार कर के आगेका कार्यक्रम बनाने में जुट गये । महाराजाकी सेनामें अश्वारोही सेना बड़ी प्रबल थी । उसमें दक्षिण के भीमरथळी नामक स्थानकी अश्व श्रेणी सबसे अग्रणी थी। इसके अतिरिक्त मारवाड़के घाट, राड़धरा और काठियावाड़ के ग्रश्व प्रमुख थे । इस प्रकार वाहिनी एक भयावनी घटाके समान तैयार होकर सरबुलन्दके विरुद्ध चल पड़ी । उधर सरबुलन्द ने इस भयंकर दलका मुकाबिला करनेके लिये पूर्ण रूपसे तैयारी करने में कोई कसर नहीं रखी। उसने नगर में जानेके प्रत्येक मार्ग पर अपनी सेनाके साथ तोपें तैयार करदीं जिन्हें यूरोपियन चलाते थे । उसकी सेवामें बंदूकधारी यूरोपियन सैनिक भी थे । [ ग्रंथ-सार देने के साथ ही में यहां राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुरके सम्मान्य संचालक, पद्मश्री जिन विजयजी मुनि, पुरातत्त्वाचार्य के प्रति आभार प्रदर्शित किये बिना भी नहीं रह सकता कि जिन्होंने राजस्थानी के इस प्राचीन ग्रंथका सम्पादन करनेके लिए मुझे सत्प्रेरणा दी । ग्रंथ संपादन में श्री गोपालनारायणजी बहुरा, एम. ए., उप संचालक, राजस्थान प्राच्य-विद्या-प्रतिष्ठान, जोधपुरने समय-समय पर मार्ग निर्देशन कर और ग्रंथ - सम्पादन हेतु सहायक ग्रंथों के अध्ययन में सहयोग देकर जो सौजन्य प्रकट किया उसके लिए मैं पूर्ण कृतज्ञ हूँ। श्री पुरुषोत्तमजी मेनारिया, एम. ए., साहित्य रत्नने भी ग्रंथके प्रूफ संशोधन में अपना पूर्ण सहयोग दिया है, इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं।] जोधपुर ; वसंत पंचमी, वि० सं० २०१६ Jain Education International - सीताराम लालस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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