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महाराजा जसवंतसिंहर्जी कवियों और विद्वानोंका बहुत आदर करते थे। उन्होंने अपने राज्य में कई. कवियोंको जागीरें देकर सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई युद्धं किये और अंतमें काबुल में इनका देहावसान हो गया।
षष्ठम प्रकरण महाराजा अजीतसिंह1 महाराजा जसवंतसिंहके काबुल में देहावसानकै समय उनकी दो रानियां गर्भवती थीं, जिनसे क्रमशः दो पुत्र अजीतसिंह और दळथैभण लाहौर में उत्पन्न हुए। जन्मसे कुछ समय पश्चात् दळथंभणका देहान्त हो गया। महाराजा जसवंतसिंहके विश्वासपात्र राठौड़ सामंत बादशाहकी आज्ञानुसार राजकुमार और रानियों सहित दिल्ली पहुंचे। औरंगजेब पहलेसे ही मारवाड़ पर अधिकार करने के लिए अपनी फौज भेज. चुका था। उसने राठौड़ोंको दिल्लीमें बहुत लालच दिए और राजकुमारको अपने हवाले करनेका हुक्म दे दिया । स्वामिभक्त राठौड़ औरंगजेबके किसी लालचमें नहीं पाए और राजकुमारको गुप्त रूपसे मारवाड़ भेज दिया। जब वे चारों ओरसे मुगल सेनासे घिर गये तो उन्होंने महाराजा जसवंतसिंहकी रानियोंकी इज्जतं बचाने हेतु उन्हें तलवारके घाट उतार कर यमुनामें बहा दिया और स्वयं । विशाल यवन दलको संहार करते हुए वीरगतिको प्राप्त हुए जिनमें रुघौ भाटी, सूरजमल सांदू, (चारण), चन्द्रभांण, अचलसिंह, रणछोड़दास आदि मुख्य थे। वीर राठौड़ दुर्गादास के साथ कुछ सरदार अपनी तलवारका जौहर दिखाते हुए मारवाड़ आ गये। . बादशाह राठौड़ोंके इस व्यवहारसे बहुत कुपित हुआ और उसने नागौरके
राव इन्द्र सिंहसे, जो राठौड़ अमरसिंहका पौत्र था, कहा कि मेरी आज्ञाका पालन करे तो जोधपुर तुझको दे दिया जाय । इन्द्रसिंह इसके लिए राजी हो गया और बादशाहने जोधपुरका पट्टा लिख कर दे दिया। वह एक बहुत बड़ी सेनाके साथ जोधपुर आया। सभी राठौड़ोंने एक होकर उसका मुकाबिला किया। भयंकर युद्ध हुआ जिसमें इन्द्रसिंह पराजित होकर भाग गया। - मारवाड़ पर अधिकार करने के निमित्त मुगल दलने बार-बार आक्रमण किया। राठौड़ डट कर उनका मुकाबिला करते थे किन्तु अन्तमें जोधपुर पर शाही अधिकार हो गया। इस समय मारवाड़में बहुतसे राठौड़ोंने यवनोंका प्रतिकार करनेके लिए विद्रोह करना शुरू कर दिया । वे पृथक-पृथक दलों में विभक्त होकर
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