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किलेमैं मार कर राव का बदला लिया और रावजीकी रानियोंको सती होनेमें सहायता देते हुए वीरवर बलूजी भी वीरगति को प्राप्त हुए । महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम)- महाराजा गजसिंहके पश्चात् जोधपुरके राज्य-सिंहासन परं महाराजा जसवंतसिंह आसीन हुए। जसवंतसिंह अपने समयके राजाओंमें सर्वश्रेष्ठ नीतिज्ञ थे। इन्होंने कई ग्रन्थोंकी रचना की और हिन्दू धर्मकी रक्षा की। ..
'उस समय वृद्ध बादशाह शाहजहां भयंकर रोगसे पीड़ित हो गया था। उसके पुत्र दिल्लीके सिंहासनको प्राप्त करनेके लिए भिन्न-भिन्न प्रकारसे षड़यंत्र रचने लग गये थे। बादशाह औरंगजेबने दक्षिणसे एक बहुत बड़ी सेनाके सथि राज्ये पाने की प्रबल आकांक्षासे कूच कर दिया। उस समय बादशाहके चारों ओर विपत्ति के बादल मँडरा रहे थे। इस विषम संकटको टालनेके लिये बादशाहको केवल राजपूत राजा दिखाई दे रहे थे, अतः उसने समस्त राजपूत राजाओंको बुलाया । सभी राजपूत नरेश अपनी सेनाओं सहित दिल्ली पहुंचे।
आये हुए राजपूत राजानोंमें आमेर-नरेश जयसिंह शाहजादे शूजाको रोकने बंगालकी ओर बढ़े और जोधपुरके महाराजा जसवंतसिंह शाहजादे औरंगजेबका दमन करने दक्षिणकी ओर शाही फौज़ के साथ बढ़े और उज्जैन पहुँच गये जहां दोनों दलोंका कड़ा मुकाबला हुआ। औरंगजेबने शाहजादे मुरादको प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लिया जिससे उसकी शक्ति दुगुनी हो गई थी। ___ महाराजा जसवंतसिंह तनिक भी नहीं घबराये और अपने घोड़े महबूब पर सवार होकर विशाल यवन दल पर टूट पड़े। उन्होंने भयंकर मारकाटके साथ यवनोंका संहार किया और अपने घोड़े सहित पूर्ण रूपसे क्षत-विक्षत हुए । इस समय उनके कुछ सरदारों और रतलामके राजा राठौड़ रतनसिंहने युद्धका भार अपने ऊपर लेकर इन्हें मारवाड़ लौट जानेके लिए बाध्य कर दिया। औरंगजेब विजयी हुया और कई योद्धाओंके साथ रतनसिंह वीर-गतिको प्राप्त हुआ।
औरंगजेब दिल्ली पहुँचा और बादशाह बन गया। कुछ समय पश्चात् उसने महाराजा जसवंतसिंहको बुलाया और उनका बहुत आदर-सत्कार किया। यद्यपि उसके हृदयमें महाराजाके प्रति पूर्ण रूपसे कपट था, फिर भी उसने उनको प्रसन्न करनेके निमित्त कीमती उपहार भेंट किये।
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