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ने जैसे वीर शिरोमणि थे वैसे ही दानवीर भी थे। उन्होंने अपने राज्यमें कई कवियोंको बड़ी-बड़ी जागीरें देकर सम्मानित किया।
चम प्रकरण
राव अमरसिंह
ये महाराजा गजसिंहके ज्येष्ठ पुत्र थे । बादशाहने इनकी वीरता पर प्रसन्न होकर इन्हें नागौर राज्यके साथ रावकी उपाधिसे सम्मानित किया।
एक समयकी घटना है-बादशाह शाहजहाँका दरबार लगा हुआ था। सामन्तगण और अमीर बारी-बारीसे मुजरा करने और भेंट नज़र करनेके लिए अन्दर जा रहे थे। बादशाहका साला सलावतखां सामंतों व अमीरोंको अन्दर लेजा कर बादशाहके सामने परिचय करवाता था। ___ ठीक इसी समय राव अमरसिंह भी वहां पहुंचे और सलावतखाँको मुजरा करनेके लिये कहा। इस पर सलावतखाँने इन्हें 'जरा ठहरो' कह कर रोका और स्वयं अन्दर चला गया। कुछ समय प्रतीक्षा करनेके पश्चात् अमरसिंह स्वयं ही बिना किसी हिचकिचाहटके भीतर चले गये और बादशाहको मुजरा करने लगे। सलावतखाँको यह बुरा लगा और वह उन्हें गँवार कहनेके हेतु मुंहसे केवल "ग" अक्षर का ही उच्चारण कर पाया था कि स्वाभिमानी राठौड़ अमरसिंहने उसके हृदयकी बात जान कर उसके मुंहसे पूरा 'गॅवार' शब्द निकलनेके पहले ही अपनी कटार उसके शरीरमें भोंक दी जिससे उसके प्राण पखेरू उड़ गये। बादशाह सिंहासन छोड़ कर अंतःपुरमें भाग गया। उस वीर बाँकुरे राठौड़की क्रोधाग्नि चरम सीमा तक पहुंच चुकी थी। उस समय जो भी उसके सामने आया उसे तलवारके घाट उतार दिया। इस प्रकार रावजी शाही दरबारके पांच उच्चाधिकारियोंका, जो पंचहजारी कहलाते थे, काम तमाम करके बाहर निकले। पीछेसे अर्जुन गौड़ने, जो उन्हींका आदमी होनेका दम भरता था, बादशाहको खुश करनेके लिए इनकी पीठमें करारा वार कर दिया। वीरवर अमरसिंहने मरते-मरते ही वापिस वार किया जिससे अर्जुन गौड़का कान कट गया और ऐसे वीरका धोखेसे प्राण लेने वाला वह कुल- कलंकी सदाके लिए बूचा हो गया।
- राव अमरसिंहके स्वामि-भक्त सामंत वीर राठौड़ बलू चांपावत और भाऊ कुंपावत तथा उनके कुछ साथियोंने बादशाहके अनेकों आदमियोंको आगरेके
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