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________________ [ २ ] बादशाही आतंक पूर्ण रूपसे फैला हुआ है। अतः वह अपने भाग्य-निर्माण के हेतु कोई उपाय सोचने लगा। ___ खुर्रमने अपनी कार्य-सिद्धि के लिए दक्षिणमें बहुत बड़ी सेना तैयार की। उसने बादशाहको सिंहासनसे च्युत करनेकी ठान ली और स्वयमेव बादशाह बननेकी प्रबल आकांक्षाके साथ दक्षिणसे दिल्लीकी ओर कूच किया। । कुछ समय पश्चात् मेवाड़का भीम शिशोदिया भी जो अपने समयका महान शक्तिशाली वीर था, खुर्रमकी सहायताके लिये अपनी २५ हजार सेना सहित आ मिला। . .. . . .. ..जब बादशाह जहांगीरको खुर्रमके इस कुकृत्यका पता चला तो वह बहुत दुखी हुआ। उसने अपने मानकी रक्षार्थ और इस विषम संकटको टालनेके लिए राजपूत राजाओंको बुलाया। इस अवसर पर महाराजा गजसिंह भी अपनी सेना ले कर दिल्ली पहुँचे । बादशाहने आये हुए समस्त राजपूत राजाओंको शाहजादे परवेजके साथ एक बहुत बड़ी सेना दे कर खुर्रमका सामना करने भेजा। इस समय आमेरके मिर्जा राजा जयसिंहके पास बहुत बड़ी सेना थी अतः बादशाहने उन्हींको सेनापतिका पद सौंपा। वीरवर महाराजा गजसिंहको यह बात कुछ कटु लगी, अत: वे अपनी सेनाको शाही फौजके दाहिनी ओर लेजा कर दूर से ही युद्धका परिणाम देखने लगे। खुर्रमकी सेनाके अग्रणी भीम शिशोदियाने अपने योद्धाओं सहित शाहजादे परवेज और सेनापति मिर्जा राजा जयसिंहकी सेना पर बड़ी तेजीसे आक्रमण किया। इसका आक्रमण इतना भयंकर हुआ कि वह चालीस हजारकी शाही फौजको विदीर्ण करता हुआ शाहजादे परवेज़ तक पहुँच गया। मिर्जा राजा जयसिंहकी सेनामें भगदड़ पड़ गई। शाही फौजको इस प्रकार भागते देख कर भीम शिशोदियाको बड़ा गर्व हुआ और उसने दूर खड़े महाराजा गजसिंहको ललकार कर उन पर अाक्रमण कर दिया। वीरशिरोमणि महाराजा गजसिंहने, जिनके पास केवल तीन हजार राजपूत थे, भीम शिशोदियाका डट कर मुकाबिला किया। भयंकर युद्ध हुआ। भीम शिशोदिया वीर गतिको प्राप्त हुआ. और शाहजादे खुर्रमकी विजय पराजयमें परिणत हो गई और वह युद्धस्थलसे भाग गयो। बादशाहने महाराजा गजसिंहका बहुत सम्मान किया। उनके राज्यकी वृद्धि की। उपर्युक्त घटना वि० सं० १६८१ की है। इसके पश्चात् भी महाराजा गजसिंहने चौदह वर्ष तक राज्य करते हुए बादशाहकी बहुत सेवाएँ कीं। पार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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