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सूरजप्रकास
खरगोस हिरणादिरी सिकाररौ वरणण
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एते में केक खिरगोस' म्रिग सांमरूंके जूथ श्राए । तिसपर चित्रु कूंतूंका धाव | सीहगोसूके दाव । ऊछट " झपट से मिलते हैं । मोहरा " जड़ाव करते हैं । पाछे रंजक " मुडियांण काळे गोरे
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म्रग'' खरगोस जांणै१४ न पावै ।
तहां मारि गिरावै ।
पंखी
कंदीलूंका विसतार । मीर
जिनावरूंकी " सिकार | सिकारूका हुन्नर नजर होत" है । लगतू " रमतूंके प्रातुरी ।
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६
जहां देखे "
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४ ख. ग. मृग ।
१ ख एतं । ग. ऐते । २ ग. केतेक । ३ ख. ग. बरगोस । ५ ख चीतूं । ग. तींतूं । ६ ख कुतूंका। ७ ख. साहगोस । ग. सोहगोस् । ८ ख. उछल । ग. मिलते। १० ग. मोहौरा । ११ ख. ग. रंज । १२ ग. मुडीयांण । १३ ख. ग. मृग । १४ ख. जांणे । १५ ग. देषै । १६ ख. ग. जानवरूंकी । १८ ग. कदिलूंका । १६ ख. हुनर ।
पंष । १७ ख. ग.
ग. हुनर ।
२० ख होते ।
२१ ख. ग. लगतु ।
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२०१. एते में - इतने में । केतैक - कितने ही । म्रिग = मृग - हरिण । सांमरूंके - भारतीय मृगी एक जाति विशेषके । वि.वि. - इस जातिका मृग बहुत बड़ा होता है। इसके कान लंबे होते हैं और सींग बारहसिंगोंके सींगों के समान होते हैं । इसकी गर्दन पर बड़े-बड़े बाल होते हैं । जूथ - समूह, टोली । चित्र - एक प्रकारके शिकार के लिए शिक्षित किए हुए चीते, इनकी प्रांख पर ढक्कन लगे रहते हैं। शिकार के समय प्रांखका ढक्कन उस समय खोल देते हैं जब हरिणोंकी टोली सामने या जाती है। ज्योंही प्रांखका ढक्कन खोला जाता है त्योंही ये चीते सीधे हरिण पर झपट कर उसे पकड़ लेते हैं । उस समय इन चीतों को शिक्षित करने वाला आदमी दौड़ कर उनके पास पहुँचता है । चीता शिकारका खून चूसने में लगा रहता है और ग्रादमी वापिस इसकी प्रांख पर ढक्कन लगा कर पट्टी बांध देता है। कूंतूंका - कुत्तोंका घाव - आक्रमण, हमला । सोहगोसूंके - सियहगोस नामक एक जंगली पशु विशेषके । ऊछट - कूद कर फांद कर । झपटसें - हमले से आक्रमणसे । मोहरा करते हैं - उछल कर आक्रमण करते हैं, कोप कर झपटते हैं । पाछै - एक प्रकारका हरिण । रंजक - एक प्रकारका हरिण । मुडियांण - एक प्रकारका हरिण जिसके सींग नहीं होते हैं । काळे - कृष्ण हरिण । गोरे-गोर वर्ण के हरिण । पंखी - पक्षी । कंदीलूंका - ( ? ) । मी रसिकारूंका शिकारकी व्यवस्था करने वाला प्रधान कर्मचारी, मीर- शिकार । हुनर - कला, हुनर । लगतं - लगतू या लगडू नामक पक्षी विशेष जो पक्षियोंका शिकार करने में शिक्षित किया जाता था ।
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