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________________ पिनाक १५२, १८६ पैनायक २५७ बंग १००, २३०, २५४, २६७ बाजंत्र ८५, ८६, ६० बाजत्र ४७, १४८ बाजित्र २५१ भेर भेरी मधम १८६ मरदंग १५२ मरछन १५१ ★ मुरछना १८६ मुरसल १३१, २५७ मुरसल्ल १३६ वंग १५१, १५२, १८६ रंग १३१ षडज ग्राम ललिता मध्यमा चित्रा रोहिणी मतंगजा सौवीरी षडमध्या [ २७ ] उत्तर- मुद्रा रजनी उत्तरायणी सुर १५१, १८८ सुरवीण १५२ सुर-वी १८६ त्रीमंडळ १५६ तान पर दी गई टिप्पणी इस संबंध में देखें । * मूरछना - संगीत में एक ग्राम से दूसरे ग्राम तक जाने में सातों स्वरों का आरोह अवरोह ग्राम के सातवें भाग का नाम मूर्च्छना है। भरत के मत से गाते समय गले को कंपाने से ही मूच्र्च्छना होती है और किसी किसी का मत है कि स्वर के सूक्ष्म विराम को ही मूच्र्च्छना कहते हैं । तीन ग्राम होने के कारण मूर्च्छनाएँ २१ होती हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार से है । मध्यम ग्राम पंचमा मत्सरी मृदुमध्या शुद्धा अता कलावती तीव्रा शुद्ध षडजा मत्सरीकृता अश्वक्रांता अभिरुता Jain Education International रखव १८६ राग ३५ लाग १५२ वाजंत्र १५० विलावळ १५७ विहंग १५३ वीणा १५१ वारि १५१ संगीत ६०, १५०, १५१, १५२, १५८ संगीत - सार १५१ सहनाय ११५, १३१, १३६ सवाद १३१ मतान्तर से मूर्च्छनानों के नाम इस प्रकार भी मिलते हैं सौवीरी हारिणाश्वा कपोलनता शुद्ध मध्या मार्गी पौरवी मंदाकिनी गान्धार ग्राम रौद्री ब्राह्मी वैष्णवी खेदरी सुरा नादावती विशाला नंदा विशाला सोमपी विचित्रा रोहिणी सुखा अलापी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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