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________________ बहुत कुपित हुआ और घबराया भी। वह रात-दिन राजपूतों की बढ़ती हु शक्तिके कारण चिंतित रहने लगा। अंतमें उसने महाराजा अजीतसिंहसे संधि कर ली और जोधपुर तथा जयपुर नरेशोंके अधिकारको मान लिया। - बादशाह बहादुरशाहके मरनेके पश्चात् उसका पुत्र मुइजुद्दोन जहाँदारशाह अपने भाइयोंको मार कर दिल्लीके तख्त पर आसीन हुआ। इसके कुछ ही दिन बाद सैयदबन्धुओंकी सहायता से फर्रुखसियार मुइजुद्दीन जहाँदारशाहको कैद कर के स्वयं बादशाह बन बैठा । उसने दोनों सैयदबन्धुओंको महत्त्वपूर्ण पद दिए और उन्हें उपाधियोंसे सम्मानित किया। जब फर्रुखसियर बादशाह बना तो नागौरके राव इन्द्रसिंहका पुत्र म्होकमसिंह दिल्ली जाकर महाराजा अजीतसिंहजीके विरुद्ध बादशाहको बहकाने लगा। महाराजा अजीतसिंह वीर होने के साथ राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने भाटी अमरसिंहके साथ कुछ सरदारों को दिल्ली भेज कर धोखेसे म्होकमसिंहको मरवा डाला। इस घटना से बादशाह बहुत क्रोधित हुआ। उसने सैयदहुसैनअलीको एक बहुत बड़ी सेना देकर मारवाड़ की ओर भेजा। विशाल यवन दल और राजपूतोंमें मेड़तामें संधि हो गई और महाराजकुमार अभयसिंहका हुसैनअलीके साथ दिल्ली जाना तय हुआ। राजकुमार अभयसिंहके वहां पहुंचने पर बादशाहने उसका बहुत आदर-सत्कार किया। उन्हें सुनहरी तलवार, जड़ाऊ खंजर, घोड़े ग्रादि भेंट किये तथा पंचहजारी मंसब दिया। महाराजकुमार अभयसिंह ठाटबाटके साथ जोधपुर लौटे। महाराजा अजीतसिंह राजकुमारसे मिल कर और उनके सकुशल लौट आनेके कारण बहुत हर्षित हुए। .. ___महाराजा अजीतसिंह अपने मनमें मुगलोंसे कभी प्रसन्न नहीं हुए। वे मुगल सल्तनतको ढाह ही देना चाहते थे। उधर सैयद बन्धुनों और बादशाह फर्रुखसियर में परस्पर वैमनस्य हो गया। इन्हीं दिनों महाराजा अजीतसिंह भी अपने सरदारों सहित दिल्ली पहुँचे । जब महाराजा दिल्ली में प्रवेश कर रहे थे उस समय उन्होंने अपनी शैशवावस्थामें होने वाले दिल्ली युद्ध में लड़ने वाले उन वीरोंके समाधि-स्थान देखे जो इनकी रक्षार्थ औरंगजेबसे लड़ कर दिल्ली में ही वीर-गतिको प्राप्त हो गये थे। इन्हें अपनी जन्मदात्री मांका भी स्मरण हुआ जिनकी समाधि भी इसी स्थान पर बनी हुई थी। इनके हृदयमें निद्रित प्रतिशोध की भावना प्रबल वेगसे भड़क उठी और मन ही मन ठान लिया कि मुगल वंशका ध्वंस कर दूंगा। किन्तु इसे उन्होंने प्रकट नहीं होने दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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