________________
[ 8 ] दिल्ली में महाराजाका सैयद भाइयों और बादशाह फर्रुखसियरने अलगअलग स्वागत किया । दोनोंमें से हर एक शक्तिशाली महाराजा अजीतसिंहको अपनी ओर मिलाना चाहते थे । महाराजाका मन बादशाहसे उचट गया था अत: उन्होंने सैयद बन्धुओंका पक्ष लिया, किन्तु इस शर्तके साथ कि इस बादशाहके हटने के बाद हिन्दुओं पर से जजिया कर हट जाना चाहिए, हिन्दू तीर्थों पर से कर हट जाना चाहिए, मंदिरोंके बनने और उनमें होने वाली नियमित पूजामें किसी प्रकारको बाधा नहीं पड़नी चाहिए और गौ-वध बन्द हो जाना चाहिए, आदि । ये सब शर्ते सैयद बन्धुओंसे करवाई।
इधर सैयद बन्धुओंको यह विश्वास था कि भामेर-नरेश जयसिंह बादशाहको हमारे विरुद्ध बहकाता है, अत: उन्होंने और महाराजा अजीतसिंहने बादशाह फर्रुखसियर पर दबाव डाल कर जयसिंहको आमेर भिजवा दिया। ___बादशाह फर्रुखसियर सैयदोंको मरवानेका षड़यंत्र कर रहा था, अत: उन्होंने अपने बन्धु सैयद हुसैनालीको दक्षिणसे अपनी रक्षा और मददके लिए बुला लिया। वह एक विशाल दलके साथ दिल्ली पहुँचा। अब बादशाह पिटारीका सांप बन गया और बहुत भयभीत रहने लगा। सैयदोंने बादशाह फर्रुखसियरको पकड़ कर कैद कर लिया और मार डाला। बादशाहके महलका सारा माल लूट लिया गया और उसे सैयद बन्धुओं तथा महाराजा अजीतसिंहने परस्पर बांट लिया।
उस समय महाराजा अजीतसिंह और सैयद बन्धुओंकी ही दिल्लीमें चलती थी। सैयद बन्धु महाराजाका गुण गाते थे। उन्होंने रफीउद्दरजातको बादशाह बनाया किन्तु कुछ ही समय बाद वह बीमार हो गया तब उसके बड़े भाई रफीउद्दौलाको दिल्लीके तख्त पर बैठा कर बादशाह बनाया। यह बादशाह भी अधिक दिन तक जिन्दा नहीं रहा और महाराजा अजीतसिंहजीकी मंत्रणासे मुहम्मदशाहको बादशाह बनाया गया। ___ इन्हीं दिनों आगरामें ईरानी मुगलोंने आमेर नरेश जयसिंह आदिसे प्रेरित हो कर उपद्रव कर दिया और उन्होंने अपनी ओरसे निकोसियरको आगरेके तख्त पर बैठा कर बादशाह घोषित कर दिया। सैयद बन्धुओंने हुसैनालीको आगरेकी मोर रवाना किया और कुछ दिन बाद स्वयं भी महाराजा अजीतसिंहजीको लेकर प्रागरेकी तरफ प्रयाण किया। सैयदोंने आगरे पर आक्रमण कर के बादशाह निकोसियरको पकड़ कर कैद कर लिया।
सैयद बंधु आमेर नरेश जयसिंह पर बहुत कुपित थे, अतः उन्होंने आमेर पर आक्रमण कर के जयसिंहको दण्ड देनेका निश्चय किया। जयसिंहने पहलेसे ही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org