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हृष्यका
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[पृ० २४ का फुट नोट पोरवी४४. ध नी x रे ग म प
४७. प ध नी X रे ग म ४५. ध नी स x ग म प
४८. प ध नी स X ग म ४६. ध नी स रे X म प .
४६. प ध नी स रे x म संगीत शास्त्र के अन्तर्गत पांच स्वर वाली तानों का लक्षण पांच ही प्रकार का है। उदाहरणार्थ षड्ज ग्राम में 'षड्ज पंचमहीन', 'ऋषभ पंचमहीन' और 'गान्धार निषादहीन' तीन तानें (एक मूर्च्छना) में होती हैं। मध्यम ग्राम (की एक मूर्छना) में गान्धार निषादहीन' और 'ऋषभ धैवत हीन' दो तानें होती हैं। इस प्रकार सब मूर्च्छनात्रों में बनाई जाने वाली प्रोडु व तानें पैंतीस होती हैं; षड्ज ग्राम में इक्कीस और मध्यम ग्राम में चौदह ।' इनके रूप निम्नलिखित हैं। उत्तर मन्द्रा
• मत्सरी कृता१. x रे ग म X ध नि
१३. म X ध नी X रे ग २. स x ग म X ध नि
१४. म X ध नी स x ग ३. स रे x म प ध x
१५. म प ध X स रे x रजनी
अश्वक्रान्ता४. नी x रे ग म X ध
१६ ग म X ध नीX रे ५. नी स x ग म X ध
१७. ग म X धनी स X ६. x स रे X म प ध
१८. X म प ध X स रे उत्तरायता
अभिरुद्गता७. ध नी x रे ग म x ८. ध नी स X ग म x
१६. रे ग म X ध नी x . ६. ध x स रे X म प . २०. x ग म X ध नी स शुद्ध षड्जा
२१. रे x म प ध x स १०. X ध नी X रे ग म
सौवीरी (मध्यम ग्राम)११. X ध नी स x गम
२२. म प ध X स रे x १२. प ध Xस रे X म
२३. म प X नी स x ग
१ पंच स्वराणां तु पंच विधमेव लक्षणम् । यथा षड्ज पंचम होना ऋषभ पंचम हीना
गान्धार निषाद हीना इति त्रयस्तानाः षड्ज प्रामे । मध्यम ग्रामे तु गान्धार निषाद बद् धोना वृषभ धैवत हीनाविति द्वौ त नौ। एवं पंचस्वरा सर्वासु मूर्च्छनासु क्रियमाणास्तानाः पंच प्रशद् भवन्ति । षड्ज ग्राम एक विंशतिर्मध्यम ग्रामे चतुर्दश ।
भरत बंबई संस्करण, अध्याय २८
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