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________________ सूरजप्रकास वडे दळूंका तू-स, सिंगार तँ सेर वडे गढूंका जैत, वार इम कहि तरियलां डाकदारां तलक, खूभारण नग सिध पलक खुले धारे सबद, बा पुकारे कलाबूत कांमरा, परठि कटहड़ा खोलिया 1 बोलिया * ।। ३२७ प्रचंडे | जगमग नग्ग जड़ाव, मेघ डंबर पर मंडे 1 लाल हरो सिकलात, जिलह जाळियां जौदां । रसां कसे रेसमां, हेम रूपी हरि हौदां । के सकत" पूज नौबत कसे, प्रारोहक " के आरबां" । धर फरर चढ़े नीसांण धर, तोगां" मही-मुरातबां" ॥ ३२८ १० श्रमळा झपेटां । सुंडनाग" सांमळा", झोक दांतूसळ" ऊजळां, लगी‍ पांतळां लपेटां । १७ १ ख. तरीयलां । ग. तेरीयलां । २ ख. पोलीया । ३ ख पुकारे । ५ ख. ग. नगां । ६ ख. जालीयां । ७ ग. श्रजांदां । ८ ख. रूप । १० ग. केसकति । ११ ख. आरोहक । ग. प्रारोह । तोगां । १४ ख. मुरातवां । १५ ख. ग. सूंडिनाग | दंतूसलां । १८ ख. ग. लगां । १२ ग. आबां । १६ ख. सांमाला । गिराए । विरदाए । Jain Education International [ २७१ ३२७. दळूंका - दलोंका, समूहोंका । तरियां- ( ? ) । डाकदारां- मस्त हाथीको राह पर लाने वाले वे घुड़सवार जिनके हाथमें प्रायः सूतका गुंथा चाबुक - विशेष होता है, तलक ( ? ) । खूभारण - हाथी के 'पुकारे बोलिया - ध्यानावस्था में बैठे हुए . जिसे राजस्थानी में साट भी कहते हैं । बांधनेका स्थान | नग - पैर । सिध तपस्वी की पलक भी खुल जाय । For Private & Personal Use Only ४ ख बोलिया । ६ ख. हरी । १३ ख. ग. १७ ख. ग. ३२८. कलाबूत कांमरा - सोने-चांदी के कसीदेके काम किया हुआ । कटहड़ा - काठका बना हाथी की पीठ पर रखनेका चारजामा । मेघ डंबर - छत्र विशेष । सिकलात- बहुमूल्य ऊनी वस्त्र | जिलह - चमक । जाळियां- ( ? ) । श्रजीदां - ( ? ) । सकत - शक्ति । प्रारोहक - सवार । श्रारबां - तोपों । नोसांण - झंडा । तोगां - मुगल साम्राज्यका ध्वज विशेष जिस पर सुरा गायके पूंछ के बालोंके गुच्छे लगे रहते हैं। यह ध्वज मुगलकाल में उच्च पदाधिकारियोंको ही बादशाहकी प्रोरसे विशेष सम्मान के रूपमें दिया जाता था । ३२६. दांतूसळ - हाथी के बाहर निकले हुए दांत । www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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