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सूरजप्रकास
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पांचमै भवन ससि सुक्र पेखि* । दाखै कवि जातक - भरण देखि ।। ३८ ऊजळ कुमार' उपजै उदार । प्रगटै बुधि' राजस विध' अपार । इळ राजनीत जाणे अनेक । वर मंत्र - सकति कविता विवेक ॥ ३६ गुरजणांहूंत अति विनय ग्यांन । धारंत सुपह हित गुणनिधान । विध राह करकरौ फळ वखांणि । जोतिखी ग्रंथरौ पंथ जांणि ।। ४० अति कोक - कला - भोगी अपार । दातार सूर अति चित उदार । बळिवंत' हुवै प्राजांनबाह । असि गयंद हुवै दळ बळ अथाह ॥ ४१ तेजमें'' रूप बहु१ पुत्र ताच । सोभा अपार गुण एह१३ साच ।
*यह पंक्ति ख. प्रतिमें अपूर्ण है। १ ख. ऊबार । ग. ऊंवार। २ ख. ऊपजै । ३ ख. बुधि । ४ ख. ग. विधि। ५ ख. ग. नीति। ६ ग. विधि । ७ ख. ग. वळिवंत । ८ ख. म. प्राजांनवाह। ख. ग. वळ। १० ख. ग. तेजमै । ११ ख. ग. वहु। १२ ग. ऐह ।
३८. पांच मैं ....देखि - पंचम भवनमें चंद्र शुक्र देख कर ज्योतिषके ग्रंथ जातकाभरणके __अनुसार कवि महोदय फलित बतलाते हुए लिखते हैं --'महाराजकुमार अभयसिंह उज्ज्वल
और उदार चित्त, बुद्धिमान, राजनीतिज्ञ, मंत्रशक्तिमें श्रेष्ठ, कविता मौर ज्ञानमें
प्रवीण होगा।' ४०. गुरजणांहूंत गुण निधान - गुरुजनोंका आज्ञाकारी, विनयशील तथा गुणोंका खजाना
होगा। विध राह... 'वखांणि - ज्योतिष ग्रन्थोंके ज्ञान के माधार पर राहु और कर्कका
फलित ज्ञान कह रहा हूँ। ४१. अति....'अथाह - कामशास्त्रमें प्रवीण और विषयभोगमें लिप्त रहने वाला होगा।
साथ ही बड़ा दातार, वीर और उदारचित्त भी होगा। प्राजानुबाहु महाराजकुमार बड़ाबलशाली होगा, और इसकी सेनामें अपार हाथी, घोड़े होंगे।
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