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________________ सूरजप्रकास [ ४३ पांचमै भवन ससि सुक्र पेखि* । दाखै कवि जातक - भरण देखि ।। ३८ ऊजळ कुमार' उपजै उदार । प्रगटै बुधि' राजस विध' अपार । इळ राजनीत जाणे अनेक । वर मंत्र - सकति कविता विवेक ॥ ३६ गुरजणांहूंत अति विनय ग्यांन । धारंत सुपह हित गुणनिधान । विध राह करकरौ फळ वखांणि । जोतिखी ग्रंथरौ पंथ जांणि ।। ४० अति कोक - कला - भोगी अपार । दातार सूर अति चित उदार । बळिवंत' हुवै प्राजांनबाह । असि गयंद हुवै दळ बळ अथाह ॥ ४१ तेजमें'' रूप बहु१ पुत्र ताच । सोभा अपार गुण एह१३ साच । *यह पंक्ति ख. प्रतिमें अपूर्ण है। १ ख. ऊबार । ग. ऊंवार। २ ख. ऊपजै । ३ ख. बुधि । ४ ख. ग. विधि। ५ ख. ग. नीति। ६ ग. विधि । ७ ख. ग. वळिवंत । ८ ख. म. प्राजांनवाह। ख. ग. वळ। १० ख. ग. तेजमै । ११ ख. ग. वहु। १२ ग. ऐह । ३८. पांच मैं ....देखि - पंचम भवनमें चंद्र शुक्र देख कर ज्योतिषके ग्रंथ जातकाभरणके __अनुसार कवि महोदय फलित बतलाते हुए लिखते हैं --'महाराजकुमार अभयसिंह उज्ज्वल और उदार चित्त, बुद्धिमान, राजनीतिज्ञ, मंत्रशक्तिमें श्रेष्ठ, कविता मौर ज्ञानमें प्रवीण होगा।' ४०. गुरजणांहूंत गुण निधान - गुरुजनोंका आज्ञाकारी, विनयशील तथा गुणोंका खजाना होगा। विध राह... 'वखांणि - ज्योतिष ग्रन्थोंके ज्ञान के माधार पर राहु और कर्कका फलित ज्ञान कह रहा हूँ। ४१. अति....'अथाह - कामशास्त्रमें प्रवीण और विषयभोगमें लिप्त रहने वाला होगा। साथ ही बड़ा दातार, वीर और उदारचित्त भी होगा। प्राजानुबाहु महाराजकुमार बड़ाबलशाली होगा, और इसकी सेनामें अपार हाथी, घोड़े होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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