Book Title: Labdhinidhan Gautamswami
Author(s): Harshbodhivijay
Publisher: Andheri Jain Sangh
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लब्धिानिधान श्री गौतम स्वामी .... मुनि हर्षबोधिविजय... जय " Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महामणि चिंतामणि श्री गौतमस्वामी ॐ दिव्य प्रभाव ॐ + सिद्धांत महोदधि पूज्यपाद आचार्य देव श्री प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा ॐ दिव्य साम्राज्य 8 + सुविशाल गच्छाधिपति पूज्य आचार्य देव श्री भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराजा ॐ शुभाशिष 8 + सिद्धांत दिवाकर गच्छाधिपति पूज्यपाद आचार्य देव श्री जयघोष सूरीश्वरजी महाराजा + दक्षिण महाराष्ट्र प्रभावक पूज्यपाद आचार्य देवश्री जयशेखर सूरीश्वरजी महाराजा.. + वर्धमान तपस्वी पूज्यपाद आचार्य देव श्री वरबोधि सूरीश्वरजी महाराजा.. ॐ संपादन ® + पूज्य मुनिराज श्री हर्षबोधि विजयजी महाराज । प्रकाशक + श्री अंधेरी जैन संघ श्री त्रिभुवनभानु प्रकाशन + शांतावाडी - मुंबई. सांगली - मुंबई. 1 डीझाईन एवं प्रिन्टींग निज्ञा आई १३५/ अ-५, रोड नं. ९, जवाहर नगर, गोरेगांव (प.), मुंबई-६२. फोन नं. ८७२ ८९९७/८७२०४५७. फेक्स : ८७२ ८९९७ ACHARYA SR! KAILASSAGARSURI GYANMANDIR SRI NAPAVIRJAIN ARADHANA KENDRA Kohathinana-A2009. wwjainelibrary.org Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ < प्रकाशकीय >> श्री चंद्रप्रभस्वामिनेनमः ॐ नमो नमो श्री गुरु भुवनभानुसूरये * * श्री चंद्रप्रभ स्वामि की शीतल - शांत छाया में अंधेरी मध्ये वि. सं. २०५७ के चातुर्मास में तपस्वीरत्न पूज्य पंन्यास श्री जयसोम वि.म. एवं प्रवचनकार पूज्य मुनिराज श्री हर्षबोधि वि.म. तथा पू.मुनि श्री आदित्यसोम वि. म. एवं पू. साध्वीजी श्री नंदीवर्धना श्रीजी म. आदि की निश्रामें श्री संघ में सामुहिक रूप से गौतम स्वामी २८ लब्धि तप की विशाल संख्या में उत्साह पूर्वक तपश्चर्या कराई गई। * इस तपश्चर्या में श्री गौतम स्वामी की आराधनादि सभी को अनुकूलता से हो इस हेतु से यह पुस्तिका प्रकाशित हो रही है । इस पुस्तक में गौतम स्वामी के चैत्यवंदन - स्तवन - स्तुति आदि, संग्रह के साथ संक्षिप्त में श्री गौतम स्वामी का जीवन प्रसंग, प्रभावादि भी संकलित है, जिससे पुस्तक की विशेषता बढ़ गई है। * इस पुस्तक प्रकाशन में आर्थिक सहयोग जिस जिस महानुभाव ने दिया है इन परिवार को हम हार्दिक धन्यवाद देते है। श्री अंधेरी जैन संघ श्री त्रिभुवनभानु प्रकाशन शांतावाडी-मुंबई. सांगली-मुंबई. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w gyanmandir@kobatirth.org १४ क्र.सं. अनुक्रमणिका पेज नं. १. श्री गौतम स्वामी जाप विधी २. २८ लब्धिपद तप आराधना की विधी ३. भक्तामर स्तोत्र की ९ गाथा ४. लब्धि पद गभित स्तात्र Serving jin.shasant ५. गौतम स्वामी अष्टकम् | २८ लब्धिपद के नाम 127547 ७. गौतम गुरु वंदना ८. गौतम स्वामी का रास ९. गौतम स्वामी के चैत्यवंदन १०. श्री गौतमस्वामी के स्तवन एवं गीत ३५ ११. गोतमस्वामी की आरती १२. ऐसे थे गौतमस्वामी ८४ १३. अरिहंत वंदनावली ११२ १४. भवनमान सरीश्वरजी वंदनावली १२३ नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें, wwsainelibrary.org Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Private & Personal Use On Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गौतम स्वामी जाप विधी १) तीन नवकार २) वज्रपंजर स्तोत्र ३) ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हा ही हूँ हैं . -ह: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय अर्हते नमः स्वाहा (तीन बार) ४) सर्वारिष्टप्रणाशाय सर्वाभीष्टार्थदायिने सर्वलब्धिनिघानाय श्री गौतमस्वामिने नमः ५) वाणी-तिहुअण सामिणी-सिरिदेवी जक्खराय गणिपिडगा। गह दीसिपाल सुरिंदा सयावि रक्खंतु जिणभत्ते ॥ ६) ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं सरस्वतीदेवी - त्रिभुवनस्वामीमीनीदेवी लक्ष्मीदेवी संपूतिजाय श्री गौतमस्वामिने नमः (७ बार) ७) अनन्तलब्धिनिधानाय श्री गौतमस्वामिने नमः ८) ॐ नमो भगवओ गोयमस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्खीण महाणसस्स ही अवतर अवतर अक्खीण महाणसी स्वाहा। ९) अक्खीणमहाणसिलद्धि संजुओ जयइ गोयमो भयवं । जस्स पसाओण अज्जवि सुसाहुणो सुत्थिया भरहे ॥ १०) ॐ हीं अरिहंत उवज्झाय श्री गौतमस्वामिने नमः Jain Education Intellonal Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्र : श्री प्रथम गणधराय, वीरपट्टाम्बरभास्कराय, परमविनयरुपा नित्यषष्ठतपोयुक्ताय, अप्रमत्तचारित्रगुणधारकाय, मंत्रतंत्र-यंत्र साधना परमगुरुरुपाय, श्री सुरिमंत्र रचनाकारकाय, श्री वाणी, त्रिभुवनस्वामिनी, श्रीदेवी, यक्षराज गणिपीटक सौधर्मेन्द्रादि संसेविताय, द्वादशांगी गूफ काय, शब्दागमपारंगताय, लोकोत्तमाय अनंतलब्धिनिधानाय श्री गौतमस्वामिने पुष्पादिकं यजामहे स्वाहा (पुरी थाली बजाये) M श्री गौतमस्वामी २८ लब्दिपद तप आराधना की विधी तप : एकांतरे २८ उपवास प्रतिदिन क्रिया : (१) दो टाईम प्रतिक्रमण (२) अष्टपकारी पूजाविशेषतः श्री गौतमस्वामीजी की पूजा (३) २८ साथीया (४)२८ खमासमणा (५) २८ लोगस्स का काउस्सग्ग (६) भक्तामर स्तोत्र की १२ से २० गाथा का पाठ (७) देववंदन अथवा चैत्यवंदन (८) श्री सिद्धचक्र पूजन अंतर्गत लब्धिपदगर्भित स्तोत्र (नंबर ४ से ८ तक सामुदायिक कर सकते है) (९) उपवास + बेसणु मीलाके प्रत्येक लब्धिमंत्र की १२० माला गिनने से लब्धि सिद्ध होती है, कमसे कम २० माला गिने। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काउसग्ग : इच्छाकारेण संदिसहभगवन् श्री गौतमलब्धि तप आराधनार्थं काउसग्ग करु ? इच्छं श्री गौतमलब्धि तप आराधनार्थं करेमि काउसग्गं, वंदणवत्तिआए ० अन्नत्थ कहके ११ लोगस्स संपूर्ण ४४ नवकार का काउसंग्ग करके उपर प्रगट लोगस्स कहे। खमासमणा का दोहा : वीरतणो गणधर वडो, श्री गौतम गणधार,अनंत अनंतलब्धिधरा, नमो नमो श्रीगुरुपाय. ध्यान : सोने के मेरुपर्वत के शिखर पर १ हजार पांखडी वाले सुर्वणकमल पर भगवान गौतमस्वामी विराजमान है, और ६४ इन्द्रो, १६ विद्यादेवी, २४ शासकरक्षक यक्ष, २४ शासनदेवी, गणिपीटक यक्षराज, लक्ष्मीदेवी, त्रिभुवनस्वामिनी देवी तथा सरस्वतीदेवी वगेरे श्री गौतमस्वामी को वंदन कर रहे है, ऐसा ध्यान जाप में करते रहे। भक्तामर स्तोत्र की ९०गाथा (१२ से २०) यै. शान्तराग-रुचिभिः परमाणुभिरत्वं, निर्मापितस्त्रिभुवनैक-ललाम-भूतः तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां; यत्ते समान-मपरं नहि रुपमस्ति ॥१२॥ वक्त्रं क्वतेसुर-नरोरग-नेत्र-हारि, निःशेष-निर्जित-जगत्रितयो-पमानम्; E ntemational www.lainelibrary.org. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिम्बं कलंकमलिनं क्व निशाकरस्य, यद्वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् ॥१३॥ संपूर्ण-मण्डलशशांक-कलाकलाप, शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंघयन्ति; ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वर ! नाथमेकं, कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम्? समय १४॥ चित्रं किमत्र ? यदि ते त्रिदशांगनाभित्रमा नितं मनागपि मनो न विकारमार्गम्, कल्पान्त-काल-मरुता चलिताचलेन, किं मंदरादि-शिखरं चलितं कदाचित् ? ॥१५॥ निघूमवर्ति-रपवर्जिततैल-पूरः, कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि; गम्यो न जातु मरूतां चालिताऽचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः ॥१६॥ नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः स्पष्टीकरोषि सहसा युगपजगंति; नाम्भोधरोदर-निरुद्ध-महाप्रभावः सूर्यातिशायि-महिमाऽसि मुनीन्द्र ! लोके ॥१७॥ interional Forate Personal us Only Pow.jainelibrary.org Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्योदयं दलितमोहमहान्धकारं, गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम्; विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति, विद्योतयजगदपूर्वशशांकबिम्बम् ॥१८॥ किं शरीषु शशिनाऽ ह्नि विवस्वतावा ? युष्मन्मुखेन्दुदलितेषु तमस्सुनाथ; । निष्पन्नशालिवनशालिनि जीवलोके. कार्य कियजलधरै-जलभार-ननैः ॥१९॥ ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाश, शशि विभाति कताका नाममा नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु; तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काच-शकले किरणा-कुलेऽपि म ॥२०॥ श्री सिद्धचक्र पूजन अंतर्गत ७ श्री लब्धिंपदगर्भित स्तोत्र जिना स्तथा सावधयश्चतुर्घा, सत्केवलज्ञानधनास्त्रिधा च । द्विधा मनः पर्यव शुद्धबोधा, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥१॥ सुकोष्ठसद्बीजपदानुसारि-धियो द्विधा पुर्वधराधिपाश्च । Jain Education Internal P E janë krye Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकादशांगाष्ट निमित्त विज्ञा, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥२॥ संस्पर्शनं संश्रवणं समन्ता, दास्वादन-घ्राण विलोकनानि । संभिन्न संस्रोततया विदन्ते, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥३॥ आमर्शविपृण मलखेल जल्ल, सर्वोषधिदृष्टि वचो विषाश्च । आशी विषा घोर पराक्रमाश्च, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥४॥ प्रश्नप्रधानाः श्रमणा मनोवाग्-वपुर्बला वैक्रियलब्धिमन्तः। श्रीचारण व्योमविहारिणश्च महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥५॥ घृतामृत क्षीरमघुनि घर्मो-पदेश वाणीभिरभिस्रवन्तः। अक्षीण संवासमहानशाश्च महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥६॥ सुशीत-तेजोमय तप्तलेश्या, दीपं तथोग्रं च तपश्चरन्तः। विद्या प्रसिद्धा अणिमादि सिद्धा महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥७॥ अन्येऽपि ये केचन लब्धिमन्त स्ते सिद्धचक्रे गुरुमण्डलस्थाः। ॐ ह्रीँ तथा अहँ नम इत्युपेता महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥८॥ इत्यादि लब्धि निधानाय श्री गौतमस्वामिने नमः स्वाहाः । गणसंपत्समृद्धाय श्री सुधर्मास्वामिने नमः स्वाहाः। Jain Education international For Private 3. Personal use only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गौतमस्वामी अष्टकम् (अर्थ सहित) श्री इन्द्रभूतिं बसुभूतिपुत्रं पृथ्वीभवं गौतमगोत्ररत्नम् । स्तुवन्ति देवासुर मानवेन्द्राः स गौतमो यच्छतु वांछितं में ॥१॥ (श्री वसुभूति और पृथ्वीमाता का पुत्र गौतम गोत्रमें रत्न समान ऐसे श्री इन्द्रभूति को देवेन्द्रो, असुरेन्द्रो और नरेन्द्रो स्तवना कर रहे है कि श्री गौतमस्वामी मेरे को वांछित फल दो) श्री वर्द्धमानात् त्रिपदीमवाप्य मुहूर्तमात्रेण कृतानि येन । अंगानि पूर्वाणि चतुर्दशापि, स गौतमो यच्छतु वांछितं में ॥२॥ (श्री वर्द्धमान (महावीर स्वामी) के पास से (उप्पन्ने इ वा, विगमे इ वा, ध्रुवे, इ वा) यह तीन पद प्राप्त करके, जो गौतम स्वामी ने एक मुहूर्त मात्रमे बारह अंग, चौद पूर्व रचे ऐसे श्री गौतमस्वामी मेरे को मन वांछित फल दो । श्री वीरनाथेन पुरा प्रणीतं, मन्त्रं महानन्द सुखाय यस्य । घ्यायन्त्यमी सूरिवराः समग्राः स गौतमो यच्छतु वांछितं मे 11311 (श्री वीरविभुए पूर्वे महानंद (मोक्ष) सुख दायक जे गौतमस्वामीनो मंत्र रच्यो अने हमणां पण जेमना आ मंत्रनुं बधा ज श्रेष्ठ आचार्यो ध्यान करे छे ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) Main Education International क www.jainalibrary.org. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यस्याभिधानं मुनयोऽपि सर्वे, गृहणन्ति भिक्षा भ्रमणस्य काले। मिष्टान्न पानाम्बर पूर्णकामाः स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥४॥ (जे श्री गौतम स्वामीनुं नाम बधा ज मुनिओ भिक्षा लेवा जती वखते ले छे, अने (अना प्रभावे) मिष्टान्न-पान वस्त्र विषयमा पूर्ण इच्छावाला थाय छे ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) अष्टापदाद्रो गगने स्वशक्त्या, ययौ जिनानां पदवन्दनाय । निशम्य तीर्थातिशयं सुरेभ्यं, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥५॥ (देवो पासेथी अष्टापद तीर्थनो महिमा सांभल ने (श्रीगौतमस्वामी) श्री (चोवीश) जिनोनां चरणो ने वांदवा पोतानी शक्तिथी आकाशमार्गे अष्टापद पर्वतपर गया, ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) त्रिपंचसंख्याशततापसानां, तपः कृशानामपुनर्भवाय। अक्षीण लब्ध्या परमान्नदाता स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥६॥ (जे श्री गौतमस्वामीए मोक्षना हेतुथी, तपथी कृश थयेला पंदरसो तापसोने लब्धिथी परमान्न (खीर) - भोजन कराव्युं, ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) सदक्षिणं भोजनमेवदेयं, साधर्मिक संघ सपर्ययेति । कैवल्यवस्त्रं प्रददौ मुनीनां, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥७॥ Boiteational Personal se Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संघ पूजामां साधर्मिकने दक्षिणानी साथे ज भोजन आप, जोइए आ नियमनुं जाणे के पालन करवाना भावथी जे श्री गौतम स्वामीए पंदरसो तोपसोने दक्षिणामां केवलज्ञानरुपी वस्त्र आप्युं, ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो शिवंगते भरि वीरनाथे, युगप्रधानत्वमिहैवमत्वा। पट्टाभिषेको विदघे सुरेन्द्र, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥॥ महावीर स्वामी भगवान मोक्षमां गया त्यारे हवे युग प्रधान पणुं आमनामां (गौतमस्वामीमां) छे, एवो निर्णय करी जे गौतमस्वामीनो इन्द्रोए पट्टाभिषेक कर्यो ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) त्रैलोक्यबीजं परमेष्ठिबीजं, सज्ज्ञानबीजं, जिनराजबीजम्। यन्नामचोक्तं विदधाति सिद्धिं, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥९॥ (त्रैलोक्यबीजं (ओं), परमेष्ठीबीजं (ही), सज्ज्ञानबीजं (श्री), जिनराज बीजं (अहँ), आटला थी युक्त जेमनो नाम मंत्र सिद्धिने आपे छे, ते श्री गौतमस्वामी मने वांछित आपो) श्री गौतमस्याष्टकमादरेण, प्रबोधकाले मुनि पुंगवाये । पठन्ति ते सूरिपदं सदैवाऽऽनन्दं लभन्ते सुतरां क्रमेण ॥१०॥ ucademational FFor Private:-Personal use only. awwanimelibrary.org Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (आ श्री गौतमस्वामीना अष्टकनो जे मुनिपुंगवो प्रभातकाले आदरपूर्वक पाठ करे छे, तेओ क्रमशः आचार्यपद अने हमेशा आनंद (मोक्ष) अवश्य पामे छे) २८ लब्धिं पद के नाम (उपवास के दिन जाप करने का महामंत्र) १. ॐ हाँ नमो जिणाणं (सर्व जिनोने नमस्कार करु छु) २. ॐ ह्रीँ नमो ओहि जिणाणं (रूपीपदार्थोने इंद्रियनी सहाय वगर जाणवानी शक्तिवाळा ने. नमस्कार करु छु) । ३. ॐ हीं नमो सामन्न केवलिणं (त्रणकाळ अने त्रण लोकना सर्वभावोने जाणवानी शक्ति) ४. ॐ ह्रीँ नमो चऊदस पूवीणं (चौदपूर्वगामी बनेलाने नमस्कार) ५. ॐ ह्रीँ नमो पयाणुसारीणं (एक पद भणता घj la cucationnel ate personale Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गिया आवडी जाय एवी शक्तिवाळाने) ६. ॐ हाँ नमो मणपजवनाणीणं (गर्भज पंचेन्द्रियना मनोगत भाव जाणवानी शक्ति) ७. ॐ ह्रीं नमो विप्पोसहिलद्धीणं (मल-मूत्र सर्व औषधरूपबनी सर्व रोग मटाडे एवी शक्ति) ८. ॐ ही नमो खेलोसहि लद्धीणं (श्लेष्म वि. थकी सर्व रोग मटी जाय एवी शक्ति) ९. ॐ ही नमो सव्वोसहिलद्धीणं (केश-नख-रोम वि. सर्व अंगोथी तथा पहेरेला वस्त्रथी सर्व रोग मटी जाय एवी लब्धि ) Jain Education Inte mjanelibrary.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. ॐ ह्रीँ नमो खीरासवद्धीणं (वाणीमा खीरनो स्वाद अनुभवे तेवी लब्धि) ११. ॐ ह्रीं नमो महुआसवलद्धीणं । (मध झरती एवी मीठीवाणीरूप लब्धि) १२. ॐ ह्रीँ नमो अमीयासव लद्धीण (अमृत झरती वाणी वाला लब्धिवंतने) १३. ॐ ह्रीं नमो बीय बुद्धीणं (एक पद भणीने घणो अर्थ जाणे एवी लब्धिववालाने) १४. ॐ ह्रीं नमो कुछ बुद्धीणं (भणेलु भूले नही एवी लब्धिवालाने) १५. ॐ ह्रीँ नमो संभिन्न सोयाणं (बधी इन्द्रियो परस्पर काम करे एवा) १६. ॐ हीं नमो अक्खीण महाणस लद्धीणं (पोताना अल्प आहारे अनेकने जमाडे) Jain Education Intemational For Prvate personal use only t Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७. ॐ ह्रीँ नमो उग्गतवाणं । १८. ॐ हीं नमो दित्त तवाणं १९. ॐ ही नमो तत्त तवाणं २०. ॐ हीं नमो जंघा विद्या चारणाणं (उग्रतपनी लब्धि वालाने) (तपथी तेज वधे एवी लब्धि वालाने) (कर्मने तपावे एवा तपोमय लब्धि वालाने) (शरीर- बळ वधारीने तथा विद्यानो जाप करीने नंदीश्वर सुधी जइ शके एवा) (नानामोटारूप धारण करवानी शक्ति) (आकाशमा उडवानी शक्ति वालाने) (शीतल ठारी दे एवी शक्ति वालाने) (बाळी नाखे-सखत दाह उपजावे एवी) २१. ॐ ह्रीं नमोविण इड्डी पत्ताणं २२. ॐ ह्रीं नमो आगास गामीणं २३. ॐ हाँ नमो सीय लेसाणं २४. ॐ हीं नमो नमो तेउ लेसाणं I n terational For Private & Personal use only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५. ॐ ह्रीँ नमो आसीविसभावणाणं (जेवोश्राप आपे तेवुं थाय एवी) २६. ॐ ह्रीँ नमो लोए सव्व सिद्धायणाणं (सर्व सिद्धभगवंतोने नमस्कार ) २७. ॐ ह्रीँ नमो भगवओ महइ महावीर बड्ढमाण बुद्ध रिसीणं (वधती बुद्धिलक्ष्मी वालाने) (निलाइ २८. ॐ ह्रीँ नमो सव्व लब्धिसंपन्न गोयमाइणं महामुणीणं (सर्व लब्धियुक्त गौतमादिमहामुनिओने नमस्कार करूं छु) गौतम गुरु वंदना आर १. जेनुं अद्भूत रूप निरखता, उरमां नहि आनंद समाय, जेना मंगल नामे जगमां, सघळा वांछित पूरण धाय, सुरतरु सुरमणि सुरघट करता, जेनो महिमा अधिक गणाय, ओवा श्री गुरु गौतम गणधर, पद पंकज नमु शीश नमाय । २. इन्द्रभूति अनुपम गुण भर्या, जे गौतमगोत्रे अलंकर्या, पंचशत छात्रशुं परिवर्या, वीर चरण लही भवजल तर्या । ३. श्री इन्द्रभूति गणवृद्धिभूतिम्, श्री वीरतीर्थाधिप मुख्य शिष्यम्, सुवर्णकांति कृतकर्म शांतिम्, नमाम्यहं गोतम गोत्र रत्नम् । Jain Education Joe national For Frivate & Personal Use Only jainelibrary.org Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. छ? छ? तप करे पारj, चउनाणी गुणधाम, ओ सम शुभ पात्र को नहि, नमो नमो गोयम स्वाम। ५. जेना लब्धि प्रभावथी, जगतमां, सर्वेच्छितो थाय छे, जेनुं मंगल नाम विश्वभरमां, षट्दर्शको गाय छे । जेना मंगल नामथी जगतमां, विघ्नो सदा जाय छे, तेवा श्री गुरूगौतम प्रणमीओ, भावे सदा भक्तिथी॥ ६. सूरिमंत्रना आराधको प्रतिदिन तने संभारता, आचार्यदेवो ताहरी पीठिका बहु आराधता मंत्राक्षरो दीधा जे जेणे, दिव्य सूरिमंत्रना ते लब्धिधारी गणहरा, गौतमगुरुने वंदना ७. भंते वली भयवं कही महावीरने संबोधता ज्ञानी छता प्रश्नो पूछी, आ ज्ञान सुहुने पमाडता वाणी वही जे वीरमुखथी, प्राप्त थइ प्रभुवाचना ते लब्धिधारी गणहरा, गौतमगुरुने वंदना ८. गौतम तारो नेह करता, मुज अंतरनो मोह गल्यो, तत्पर थाता तुज भक्तिमां, हृदये तुज अनुराग भल्यो, मुक्तिमुक्ति कर अब तुज भक्ति, शक्ति अखूटी मांगी मलो, तेहथकी जिम तापसना तिम, मुज भवबंधन दूर टलो. Jain Education Inter www.jan Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. (राग - मंदिर छो मुक्तितणी...) श्री इन्द्रभूति नाम जेनु, पुण्य पावन धाम छे वसुभूति तात अने जनेता, पृथ्वी हृदया राम छे सुर असुर नरनाथो सकल, जेने नमी पुलकित बने ते गौतमस्वामी सदा, मनवांछितो आपो मने. श्री वीरविभुना वदन थी, त्रिपदी लइ जेणे भली अन्तुमुहुर्त महीज द्वादश, अंगनी रचना करी जेणे वहाव्या तेज किरणो, तिमिरघेर्या भववने ते गौतमस्वामी सदा मन, वांछितो आपो मने. जेना महा आनंद सुख काजे प्रभुवीरे स्वयम् प्रगट प्रभावक मन्त्रनी रचना करीती श्रीमयम् स्मरता हता, स्मरसे स्मरे छे सूरिओ ते मन्त्रने, ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. भिक्षा भ्रमण समये श्रमणगण नाम जेनु संस्मरे, मिष्टान्न नीर अने अनुकुल वस्त्रनी प्राप्ति करे, श्री काम गौ सुरतरू सुरमणी जइ वर्या जस नामने, ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निज लब्धिथी अष्टापदे जे जाय ते केवल वरे, जिन वचन अq सांभळी जे तीर्थप्रति विचरण करे, अष्टापदे पहोंच्या त्वरित जे रवि किरण आलंबने ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने.. मोक्षेच्छु पंदरसो तपस्वी तापसो त्यां जे हता, सौने करावे पारणुं परमान्न लावी आपता अक्षीण लब्धिनिधान जे शोभावता मुज हृदयने ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. भोजन कराव्या बाद करवी जोइओ पहेरामणी तेथी ज ते सौने घरे कैवल्यश्री सौहामणी आश्चर्य छे ते आप्युं सौने जे न होतुं निजकने ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. श्री वीरविभु निर्वाण पाम्या बाद महोत्सव आदरी पट्टाभिषेक युग प्रधानपदे करे इन्द्रोमली ओ पल परम सौभाग्य पूर्ण निहाळवा मन थनगने ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. त्रैलोक्य श्रीनुं बीज छे, परमेष्ठी पदनुं बीज छे सद्ज्ञान- सद्बीज छे, जिनराज पदनुं बीज छे U ninternational For Private & Personal use only. Wajatinelibrary.org Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुभनाम जेनुं समरता सिद्धि वरे अम आंगणे ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. १०. प्रातः समयमा प्रति दिवस जे मुनिवरो आदर धरीश्री गौतमस्वामीनी आ स्तवना स्मरे भक्ति भरी पामे परमआनंद ते सौ श्रमण सूरीश्वर बने, ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. प्रभुनाम मंगल ठाम मंगल, जीवन मंगल जग तणुं छे ज्ञान मंगल, ध्यान मंगल, स्मरण करीओगौतम तणुं तजी अन्य काम त्रिसंध्य जे, गौतमतणा गुण गाय छे आनंद मंगल अजबरीते, अधिक त्यां उभराय छे. जे तीर्थ अष्टापद तणो, महिमा सुणी सुवक्त्र थी आकाशमां निज शक्तिओ, चडता अतुल भक्ति थकी चोवीश जिनवर चरण पंकज स्तवन कारण भावथी आपो सदा वंछित मने गौतम गुरू सुप्रभावथी उपदेश मधुरा सांभली, जस बोध पामी जन घणा संसार छोडी लेइ संयम ज्ञान के वलने वर्या जस पाणिपञ साचे केवल दाननी लब्धिवसी ते मंगलार्थे श्री गुरू गौतम तणा पदकज नमु. १३. Educatio n al Personal use only jainelibrary.org Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४. दाता जगतमां कोईपण निज पास वस्तुने दिये ना होय जे निज पास तेनुं धन किम हिज संभवे जेणे न केवल पास पण दइ दान महा अचरज कर्यु ते मंगलार्थे श्री गुरू गौतम तणुं ध्यान जरू १५. अरिहंत छो वली सिद्ध छो, सौ संघना सूरिराज छो एका तेजो महाप्रातिहार्यथी, वली सूत्रना उवज्झाय छो, वाणी अने त्रिभुवन मयी, श्री पीटकगणीओ केन्द्र छो मा ते लब्धिधारी श्री गुरू गौतम सदा समरण करूं नाथा ** श्री गौतमस्वामी आह्वान गीत(राग - गोविंदा आला...) आव्या, आव्यारे, आव्या गुरू गौतमस्वामी आव्या आसो पालवना तोरण बंधावो, घर घरमां दिवडा प्रगटावो, रंगोलीथी आंगण सजावो, सोनारूपाथी गुरू वधावो, वधावो, की गंग सुरिमंत्रमां मध्ये बिराजे, गुरू गौतमना नामो गवाये, वीरवाणीमां हैयुं डोले छे, आज भाग्य अमारा जाग्या, जाग्या Jain Education Inter आन्या....... (१) एका आव्या....... (२) few.jaihelibrary.org Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ गुरू गौतमे मनमां पधरावो, पछी अर्पे सहुने लब्धि भारी, ___ मोटा ओच्छव-महोत्सव करावो, सहुने तपनो रंग लाग्यो, लाग्यो आव्या ....... (३) ॥१॥ श्री गौतम-स्वामी का रास II ढाल पहेली वीरजिणेसर चरणकमलकमला कयवासो, या पणमवि पभणिसु सामि सार गोयमगुरू रासो। मण तणु वयण एकंत करवि निसुणो भो भविआ, जिम निवसे तुम देहगेह गुणगण गहगहिआ जंबदीव सिरिभरहखित्त खोणीतलमंडण, मगधदेश सेणिया नरेश रीउदल बलखंडण । धणवर गुब्बर नाम गाम जहिं गुणगण सज्जा विप्प वसे वसुभूइ तत्थ तसु पुहवी भज्जा तास पुत्त सिरिइंदभूइ भूवलय पसिद्धो, चउदह विज्जा विविह रुव नारि रस विद्धो (लुद्धो) विनय विवेक विचार सार गुणगणह मनोहर, सात हाथ सुप्रमाण देह रूपे रंभावर ॥३॥ For Private & Personal use only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयण वयण कर चरण जिणवि पंकज जले पाडिअ, तेजे ताराचंद्र सूर आकाशे भमाडिअ। रुवे मयण अनंग करवि मेल्हिओ निरधाडिअ, धीरमें मेरु गंभीर सिंधू चंगिम चयचाडिआ ॥४॥ पेखवीनिरुवम रुव जास तणु जपे किंचिअ, मीण एकाकी कलिभीते इत्थ गुण मेहल्या संचिअडान अहवा निश्चे पुन्वजम्मे जिणवर इणे अंचिअ, रंभा पउमा गौरि गंगा रति हा विधि वंचिअ ॥६॥ नहि बुध नहि गुरु कवि न कोइ जसु आगल रहिओ, पंचसयां गुणपात्र छात्र हीडे परिवरिओ। वीस करे निरंतर यज्ञकर्म मिथ्यामति मोहिअ, इणेछलि होसे चरणनाण दंसण विसोहिअ जंबुदीवह जंबुदीवह, भरहवासंमि, भूमितणमंडण, मगधदेस, सेणियनरेसर, वर गुब्बर गाम तिहां, विप्प वसे वसुभूए सुंदर तसु भज्जा पुहवी सयल गुणगण रुवनिहाण, ताण पुत्त विजानिलो, कम गोयम अतिहि सुजाण Demational Farivate 8 P lusOnly Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ढाल दुसरी) (भाषा) चरम जिणेसर केवळ नाणी, चउविह संघ पइट्ठा जाणी। पावापुरी सामी संपत्तो, चउविह देव निकाये जुत्तो ॥८॥ देवे समवसरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति खीजे। त्रिभुवनगुरु सिंघासणे बेठा, ततखिण मोह दिंगते पेठा ॥९॥ क्रोध-मान-माया-मदपुरा, जाए नाठा जिम दिण चौरा। देवदुंदभि आकाशे वाजे, धर्मनरेसर आव्या गाजे ॥१०॥ कुसुम वृष्टि विरचे तिहां देवा, चउसठ इंद्र जसु मांगे सेवा। चामर छत्र शिरोवरि सोहे, रुपे हि जिण वर जग सहु मोहे ॥११॥ उपसम रसभरभरि वरसंता, जोयणवाणि वखाण करता। जाणिअ वर्धमान जिन पाया, सुरनर किन्नर आवे राया ॥१२॥ कांतिसमूहे झलझलकंता, गयण रणरणकंता। पेखवि इंदभूए मन चिंते, सुर आवे अम्ह यज्ञ होते ॥१३॥ तीर तरंडक जिमतेवहता, समवसरण पहुता गहगहता। तो अभिमाने गोयम जंपे, तिणे अवसरे कोपे तणु कंपे ॥१४॥ SU Jain Edigerlerational RoPos&Personalise Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूढ लोक अजाण्यो बोले, सुर जाणंता इम कांइ डोले । मूं आगल को जाण भणीजे, मेरू अवर किम ओपम दीजे ॥१५॥ (वस्तु) वीर जिणवर वीर जिणवर नाणसंपन्न, पावापुरि सुरमहिअ पत्तनाह संसार तारण, • तिहिं देवे निम्मविअ समोवसरण बहु सुखकारण, जिणवर जग उज्जोअकरे, तेजे करी दिणकार; सिंहासने सामी ठन्यो, हुओ सुजय जयकार 金 18EU ढाळ तीसरी (भाषा) ॥ तव चडिओ घणमाणगजे, इंद भूइ भूदेव तो, कारो करि संचरिअ, कवणसु जिणवर देवतो योजन भूमि समोसरण पेखे प्रथमारंभ तो दहदिसि देखे विबुध वहू, आवंती सुर रंभ तो सुरनर किन्नर असुर वर, इंद्र इंद्राणि राय तो; चित्ते चमक्किय चिंतवे ए सेवंता प्रभुपाय तो २३ मणिमय तोरण दंड धज, कोसीसे नव घाट तो; वयर विवर्जित जंतु गण प्रातिहारज आठ तो Jain Education Intern I FED BUS ॥३८॥ 版 ॥१६॥ BUT SO THE ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०॥ Janel Ibrary.org Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहसकिरण सम वीर जिण, पेखवि रुप विशाल तो, ॥ एह असंभव संभवे ए साचो ए इंद्रजाळ तो तव बोलावे त्रिजग गुरु, इंदभूई नामेण तो; श्रीमुखे संशय सामि सवे, फेडे वेद पएण तो मान मेल्ही मद ठेली करी भक्तिए नामे सीस तो; पंच सयांशु व्रत लीओ ए गोयम पहेलो सीस तो तव बंधव संजम सुणवि करी, अग्निभूड़ आवेय तो, नाम लेइ आभास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो इणे अनुक्रमे गणहर रयण, थाप्या वीरे अग्यार तो, तव उपदेसे भुवन गुरु, संयम शुं व्रत बार तो बिंहु उपवासे पारणुं ए, आपणपे विहरंत तो, गोयम संयम जग सयल, जयजयकार करंत तो २४ ॥२१॥ ॥२२॥ SIPFIF कफी ॥२३॥ ॥२४॥ (वस्तु) इंदभूइअ, इंदभूइअ, चडिअ बहुमाने, हुंकारो करि कंपतो, समोसरणे पहोतो तुरंत, अह संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फुरंत, बोधि सज्झाय मने, गोयम भवह विरत्त, दिक्ख लेइ सिक्खा सहिअ, गणहर पय संपत्त ॥२५॥ शिक ॥२६॥ ॥२७॥ www.linellbrary.org Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥२९॥ ढाळ चौथी (भाषा) आज हुआ सुविहाण. आज पचेलिमा पुण्य भरो। दीठा गोयम सामि, जो निअ नयणे आमिय भरो सिरि गोयम गणधार, पंचसयां मुनि परवरिय; भूमिय करय विहार, भवियणने पडिबोह करे समवसरण मझार, जे जे संशय उपजे ए। ते ते परउपकार, कारणे पुछे मुनिपवरो जिहं जिहां दिजे दीक्ख, तिहां तिहां केवळ उपजे ए। आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम गुरु उपरि गुरु भक्ति, सामी गोयम उपनीय। एणि छळ केवळनाण, रागज राखे रंग भरे जो अष्टापद सैल, वंदे चडिं चउविस जिण। आतमलब्धि वसणे, चरमसरीरी सोय मुनि इय देसण निसुणेवि, गोयम गणहर संचलिय। तापस पन्नरसएण. तो मुनि दीठो आवतो ए तपसोसिय नियअंग, अम्ह सगति नवि उपजे ए किम चढसे दृढ काय, गज जिम दीसे गाजतो ए ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३३॥ ॥३४॥ Jain Education Inter RPerso wjainen a Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ गिरुए एणे अभिमान तापस जो मने चिंतवे ए। तो मुनिचडिओ वेग, आलंबवि दिनकर किरण कंचणमणि निप्फन्न दंड कलस धज वड सहिय । पेखवि परमानंद, जिणहर भरतेसर विहिअ निय निय काय प्रमाण, चउदिसि संठिअ जिणह बिंब । पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिअ वइर सामिनो जीव, तिर्यक्ज़म्म देव तिहां। प्रतिबोधे पुंडरीक, कंडरीक अध्ययन भणी वळता गोयम सामि, सवि तापस प्रतिबोध करे। लेड आपणे साथ, चाले जिम जुथाधिपति खीर खांड घृत आण, अमिअवूठ अंगुठ ठवि। गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवि पंचसयां शुभ भावि, उज्जवल भरियो खीरमसि । साचा गुरु संयोगे कवळ ते केवळ रुप हुआ पंचसयां जिण नाह, समवसरणे प्राकारत्रय। पेखवि केवल नाण, उपन्यूँ उज्जोयकरे - जाणे जिण वि पीयूष, गाजंती घण मेघ जिम । जिणवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पांचसये ॥३९॥ ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ Jain Education ernational For Private & Personal use only. jainelibrary.org Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (वस्तु)ी काण्ड इणे अणुक्रमे, इणे अनुक्रमे, नाण संपन्न, णकोणा पन्नरहसयपरिवरिय; हरिअ दुरिय, जिणनाह वंदइ; जाणेवि जगगुरु वयण, तीहनाण अप्पाण निंदइ, चरम जिणेसर तव भणे, गोयम करिस म खेऊ; HD छेडे जइ आपणे सही, होस्युं तुल्ला बेउ ीण ॥४४॥ मानदाळ पांचमीमा (भाषा) सामीओ ए वीर जिणंद, पुनिमचंद जिम उल्लसिय। विहरिओ ए भरहवासंमि, वरस बहोत्तेर संवसीय ॥ ठवतो ए कणय पउमेसु, पायकमळ संघहि सहिय । आविओए नयणानंद, पावापुरि सुरमहिय ॥४५॥ पेखीओ ए गोयमसामि, देवशर्मा प्रतिबोह करे। आपणो ए त्रिशलादेवीनंदन, पहोतो परपए। वळतां ए देव आकासिं, पेखवि जाण्यो जिण समे ए। तो मुनि ए मने विखवाद, नादभेद जिम उपनो ए ॥४६॥ Jain Education national ww inelibrary.org Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुण समो ए सामिय देखी, आप कन्हे हुं टाळिओ ए । जाणतो ए तिहुअणनाह, लोक विवहार न पालिओ ए । अति भलूं ए कीधलुं सामी, जाण्यं केवल मागशे ए । चिंतन्युं ए बाळक जेम, अहवा केडे लागशे ए हुं किम ए वीरजिणंद, भगते भोळो भोळव्यो ए। आपणोए अविहड नेह, नाह न संपे साचव्यो ए ॥ साचो छे एह वीतराग, नेह न जेहणे लालियो ए। तिणेसमे ए गोयम चित्त, राग विरागे वालिओ ए आवतुं ए जे उलट, रहेतुं रागे साहियुं ए। केवळ ए नाण उपन्न, गोयम सहेजे उमाहियुं ए। त्रिभुवने ए जयजयकार, केवळि-महिमा सुर करेए । गणधरु ए करे वखाण, भवियण भव जिम निस्तेर ए (वस्तु) पढम गणहर पढम गणहर, वरिस पचास गिहवासे संवसिअ, तीस वरिस संजम विभूसिय, सिरि केवल नाण, पुण बार वरस तिहुअण नमंसिअ, राजगृही नगरी ठव्यो, बाणुंवय वरसाउ, सामी गोयम गुणनिलो, होस्यो सीवपुर ठाउ Jain Education errational For Privat&ersonal Use Only ॥४७॥ 118411 न 118311 10 ॥५०॥ jainelibrary.org Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाळ छट्ठी (भाषा) जिम सहकारे कोयल टहके, जिम कसमवने क परिमल बहेके, जिम चंदन सोगंधनिधि। जिम गंगाजल लहेरे लहेके, जिम कणयाचल तेजे झलके, तिम गोयम सोभागनिधि जिम मानससर निवंसे हंसा, जिम सुरवरशिरे कयणवतंसा, जिम महयर राजीव वने। जिम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिम गोयम गुण केलि वने ॥५२॥ पुनिम निशि जिम ससिहर सोहे, सुरतरु जिम OE जगमन मोहे, पूरव दिसि जिम सहसकरो। पंचानने जिम गिरिवर राजे, नरवइ घरे जिम मयगल गाजे, तिम जिनसासन मुनिपवरो ॥५३॥ जिम सुरतरुवर सोहे साखा, जिम उत्तम जिणमंदिर घंटा रणके, गोयम लब्धे गहगहे ए ॥५४॥ Jain Education Inter Personal us wjaineliborg Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिंतामणि कर चडियुं आज, सरतरु सारे वंछित काज, कामकुंभ सो वसि हुओ ए। कामगवी पूरे मन कामी, अष्ट महासिद्धि आवे धामी सामी गोयम अणुसरो ए ॥५५॥ प्रवणाक्षर पहेलो पभणीजे, माया बीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमुखे (श्रीमती) शोभा संभवे ए। देवह धुर अरिहंत नमीजे, विनय पहु उवज्झाय थुणीजे, इणे मंत्रे गोयम नमो ए ॥५६॥ पुरपरवसतां कांइ करीजे, देश देशान्तर कांइ भमीजे, कवण काजे आयास करो! प्रह उठी गोयम समरी जे, काज सवि ततखिण सीझे, नवनिधि विलसे तास घरे ॥५७॥ चउदहसे बारोत्तर वरसे, गोयम गणधर केवळ दीवसे । मान खंभ नयर प्रभु पास पसाए, कीयो कवित उपगार परो।गा आदि ही मंगळ एह भणीजे, परव महोत्सव पहिलो लीजे, रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥५८॥ Stational & Personal use only w.jainelibrary.org Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन्य माता जेणे उदरे धरीया, धन्य पिता जिण कुळे अवतरिया; धन सद्गुरु जिणे दिक्खियाए; विनयवंत विद्याभंडार, जस गुण पुहवी न लभे पार, रिद्धि वृद्धि कल्याण करो (वड जिम शाखा विस्तरो ए) ॥५९॥ गौतमस्वामीनो रास भणीजे, चउविह संघ रलियायत किजे, सयल संघ आणंद करो। कुंकुम चंदन छडो देवरावो, माणेक मोतीना चोक जिला जात पुरावो रयण सिंहासन बेसणु ए ॥६०॥ तिहां बेसी गुरु देसना देसे, भविक जीवनां कारज सरसे, उदयवंत मुनि एम भणे ए। गौतम स्वामि तणो ए रास, भणतां सुणतां लीलविलास, सासय सुख निधि संपजे ए ॥६१॥ एह रास भणेने भणावे, वर मयगल लच्छि घर आवे, मन वंछित आसा फळे ए का मजा ॥६२॥ Jain Education Inter anal For-Private:Personali Wanelibrary.org Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्री गौतम स्वामी के चैत्यवंदन . ॐकार बीजाक्षर आद्यधारी, ही कार युक्तो वरमंत्र भारी, अरिहंत मुख्य पद पाठकाय, नमो नमस्ते गणि गौतमाय ॥१॥ चौद सहस्त्र अणगार केरा, ने वीरना सहु गणिमां वडेरा, अनंत लब्धिधर धारकाय, नमो नमस्ते गणि गौतमाय ॥२॥ जे चित्त चिंते तुज पाद सेवा, चारित्र धारी वरता अखेवा, कैवल्य लब्धि वरदायकाय, नमो नमस्ते गणि गौतमाय ॥३॥ तुं कामधेनु वरक्षीर धारी, चिंतामणी चिंतित योगकारी, वांछित कृत्काम कल्प द्रुमाय, नमो नमस्ते गणि गौतमाय ॥४॥ मुज आत्मरक्षा तुज प्रेमयोगे, भुवनैकभानु स्तवं संप्रयोगे, सौ कर्म मर्महर संगीताय, नमो नमस्ते गणि गौतमाय ॥५॥ * गौतम स्वामी चैत्यवंदन * प्रेम प्रणति नति करी पभणु गौतम स्वाम, जपीये गौतम नामने, जन गण मन अभिराम ॥१॥ वीर भंदत विश्वेश्वरा, गौतम प्रमुख गणेश, सहस आठ जप पुष्पथी, पुजन करू सुविशेष ॥२॥ अड़यालीश नामोच्चरी, पूजा लब्धि अखिल, dates Personalise only hdjainelibrary.org Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लब्धिवंत वंदन करू, दूरित हरण अनिल श्रुत देवी नवनिधि वली, श्री देवी जयकार, जस चरणे अहोनिशरमे, ते गौतम जगसार लब्धि केवल चरणतणी, वरवा गौतम स्वाम, पूजुं त्रिकरण योगथी, भुवनभानु गुणधाम 19 विनय धर्म वांदी वरूं, आत्मजित करनार, जग सुख कारण जग जयो, वल्लभ गौतम प्यार + श्री गणधर अग्निभुति का चैत्यवंदन + ॥६॥ कर्म तणो संश धरी, जिन चरणे आवे ; अग्निभुति नामे करी तव ते बोलावे, ओक सुखी ओक दुःखी, ओक किंकर ने स्वामी पुरुषोंत्तम ओके करी, केम शक्ति पामी. कर्मतणा पर भावथी अ, सकल जगत मंडाण; ज्ञानविमलथी जाणीये, वेदारथ सुप्रमाण. चैत्यवंदन श्री १४५२ गणधर का चैत्यवंदन सरस्वति आपे सरस वचन, श्री जिन थुणता हरखे मन; जिन चोविसे गणधर जेह, पभणुं संख्या सुणो तेह Jain Education Inte Only 11311 11811 PIP ॥५॥ TRISTS ॥१॥ ॥२॥ 11311 imag ॥१॥ jamnehrary.org. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुषभ चोराशी गणधर देव, अजित पंचाणुं करो नित्य सेव; श्री संभव ओकसो सुमति शिवपुरा वास पद्मप्रभ अकसो सात श्वास, स्वामि सुपार्श्व पंचाणु जाण; चंद्रप्रभु त्राणुं चित्त आण अठ्यासी सुविधि पुष्पदंत, अकाशी शीतल गुणवंत; श्रेयांस जिनवर छोंतेर सुणो, वासुपुज्य छासठ भवि गणो ॥ ४ ॥ विमलनाथ सत्तावन सुणो, अनंतनाथ पचास गुणो; तेंतालीश गणधर धर्मनिधान, शांतिनाथ छत्रीश प्रधान कुंथु जिनेश्वर कहुं पांत्रीश, अरजिन आराधो तेंत्रीश; मल्ली अठ्ठाविश आनंद अंग, मुनिसुव्रत अष्टादशचंग नमिनाथ सत्त संभाल, अकादश नमो नेमी दयाल; दश गणधर श्री पार्श्वकुमार, वर्धमान अकादश धार सर्व मली संख्याओ सार, चौदसो बावन गणधार; पुंडरीक ने गौतम प्रमुख, जसनामे लही अ बहु सुख Jaja Education International ३४ ॥२॥ ate & Personal Use Only 113 11 ॥५॥ प्रहउठी जपतां जयजयकार, ऋद्धि वृद्धि वांछित दातार रत्नविजय सत्यविजय बुधराय, तससेवक वृद्धिविजय गुणगाय. ॥६॥ 11611 ॥८॥ ww.jainelibrary.org Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गौतमस्वामी का भाववाही गीतों का संग्रह हे गौतम स्वामी. (राग-हे शंखेश्वर स्वामी) मिलाकर हे गौतम स्वामी, हुं प्रणमुं शिरनामीमा अनंत लब्धि तारी,(२) गुणगणना धामी.....हे गौतम. गोबर गामे जन्म लईने, पृथ्वी मात दुल्हार पिता वसुभूति गायो,(२) इन्द्रभूति गणधार... हे गौतम. गौतम गौतम जे गुण गाशे, नवनिधि थापा रिद्धी-सिद्धी मळशे (२) वर्ते जयजयकार.....हे गौतम तारी कृपाथी सद्गुण मळशे, खोटी टेव टळशे गौतम नाम जे जपशे,(२)थाशे सुखीयो अपार.....हे गौतम. बाळ तमारो शरण आव्यो, कृपा करो दातार हि भकत तमारो गावे,(२) मारो तुं आधार.....हे गौतम. देवी सरस्वती लक्ष्मी माता, गणिपिटक यक्षराज - त्रिभुवनस्वामि माता,(२) अधिष्ठायक ओ चार..... हे गौतम.. Jain Education Inter evate on laineharary.org Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमस्वामी वसो मेरे दिलमें > (राग-कोयल टहुकी रही) गौतमस्वामी वसो मेरे दिलमे, वसो मेरे मनमें, वसो मेरे दिलमे.... बिहार देशे गोबरगामे, जन्म लियो तमे ब्राह्मणकुलमां, गौतम....१ बालपणाथी तमे अद्भूत ज्ञानी, चौद विद्यामां बन्या पारगामी, गौतम.....२ संशय लइ तमे गया प्रभु पासे, अभिमान गयु दूर एक पलमें, ...... गौतम.....३ महावीर प्रभुसे त्रिपदी पाइ, द्वादशांगी रची तमे अंतर्मुहूर्तमेस, .... UPPा गौतम.....। वैभार गिरिओ मोक्ष सिधाव्या, लब्धिओ रही गई तीन भूवनमें, ... गौतम..... मुंबई शहरमां अंधेरी संघमां, गौतम लब्धि पद सामुहिक कराय, गौतम....६ Galernational vate &Personaldose only. Nainelibrary.org Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ > पूजनमां फूल वरसावो ~~ (राग - बहारो फूल वरसावो) "पूजनमां फूल वरसावो, गुरु गौतम पधारे है..... गोबरगामे तमे जन्मया, इन्द्र भूति नाम धरायारे (२) पिता वसुभूतिना कूलमां, तमे दीपक कहायारे - वीर प्रभुना प्रथम गणधरा, जगमां वयणे गवायारे, (२) ___ पचास हजार शिष्यना, वडेरा गुरु कहायारे गुरु..२ शंकाओने दूरे करवा, हरख भर हैये तमे जाता, (२) प्रभुनी वाणी सांभलीने, अंतरनी मस्ती खीली जाती गुरु..३ । अंतरमा अने वाणीमां, अमारा मनमां तमें पण छो, (२) जरा तो दर्श बतावी दो, तमारा दास आव्या छे, Jain Education Interfon Privates.Pers Mainepaly.org Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - रंगाइ जाने रंगमां जि (राग - रंगाइ जाने) रंगाइ जाने रंगमां, तु रंगाइ जाने रंगमां, गुरु गौतमस्वामीना संगमा, गुरु भक्ति केरा रंगमां, रंगाइ.... अमने प्यारा, तमने प्यारा, सहुने मन गमनारा, सेतो सुहुने... पृथ्वी जायाना नंद दुलारा, गौतम स्वामी अमारा, गुरुगौतम... प्रातः उठीने नाम समरसे, सिद्धशे सघला काज, रंगाइ....१ जे कोइकने संयम आपे, केवलज्ञान तिहां पामे, ओतो केवल... अमृतमय अंगुष्ठे ऋषिने, खीरचं पारणुं करावे, अतो... रविकिरणसे यात्रा करता, तीरथ अष्टापदमां, रंगाइ...२ लब्धि पद तप करवा काजे, आव्या छे भव्य लोक,आव्या... आ दुनियामां गोती रही छे, लब्धिओ तारी अनेक, लब्धिओ... जे कोइ तारु ध्यान धरशे, वरसे होशे होंशे, रंगाइ...३ Jain Edua temational Pre & Personal use only ww.jainelibrary.org Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ > लब्धिं आपो, लब्धिं आपो (राग - कोण भरे, कोण भर) लब्धि आपो, लब्धि आपो, लब्धि आपोरे, गौतमस्वामी मने लब्धि आपो रे, लब्धिओ आपीने मारा काज सरो रे गौतम.... रुटुं रळियामणु गौतम तारु नाम छे, मनने लोभावनारी लब्धिओ अनंत छे, हैये उतारी मारु श्रेय करो रे, या गौतम.....१ वीर प्रभुना तमे गणधर वडेरा, कामधेनु, कल्पतरु । मणिथी अधिकेरा, कामित करोने मारा काम हरो रे, गौतम....२ वाणी,त्रीभुवनस्वामीनी श्रीदेवी, गणिपीटक यक्षराज सेवी | नित मेवी, सेवक सुरनार सहकार्य करो रे, गौतम.....३ मान गयुं तो तमे गणधर पद पाया, खेद थयो तो तमे केवल पद पाया, गुरु भक्ति तो बनी शिवविषेरे, गौतम .....४ Jain Educatiom ational wwsanelibrary.org Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम स्वामी, गौतम स्वामी > ((राग - ओ गुरु देव) गौतम स्वामी, गौतम स्वामी, मारे करवा छे दर्शन आपना, प्रेमे पधारो मन मंदीरमां..... बिहार देशे गोबरगामे, इन्द्रभूति नाम धराया, तात वसुभूति माता पृथ्वी, प्यारा नंद कहाया, चौद विद्यामां, ब्राह्मण कुळमां, शिरोमणी.. प्रेमे ..... १ संशय लइने महावीर पासे, आव्या आडंबर साथे, समोवसरणनी लीला जोइने, गयुं अभिमान दूरे, दर्शन करता, चितडा ठरता, नाथरे... प्रेम....२ लब्धिओ स्पर्शी तमने अनेक, गणधर श्री गौतम नामे, कामधेनुने कल्पतरु, चिंतामणी पद पावे, जे कोइ गाशे, गुणगण भावे, निधानरे... प्रेम.....३ ducaalejemational A Private & Personal use only Tww.jainelibrary.org Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम गौतम गणधर गौतम (राग - चपटी भरी चोखाने) गौतम गौतम गणधर गौतम, नाम छे एनु उत्तम रे (महिमा जगमां गाजे रे) हालो हालोने भक्ति करीए रे... गोबर गाममां जन्म थयो रे, माता पृथ्वीनी कुरवेथी जायो, पिता वसुभूति गायो रे, संशय धरीने दर्शन आव्या, इन्द्रभूति अभिमानथी भराया, वीरना गुणगण गाया रे.... लब्धिरुपी पटराणी अनंत, सूरिमंत्रमां बेठा भगवंत, नामथी दुःखनो अंतरे, गौतमस्वामीना जे गुण गाशे, तेना घरे नवनिधि पथराशे, जगमां वयणे गवाशे रे, ४१ महालो..... निज कलंकी हालो..... ४ लब्धि तप करवा सहु कोइ आवे, जयसोम विजय निश्रा मां थावे, चंद्रप्रभ छाया राजेरे (हर्ष अंधेरी संघ पावेरे) हालो... ५ १ 50 हालो... २ हालो.... ३ चिठ फार www.fainelibrary.org Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शासन नायक गौतम स्वामी (राग - मारा शामला छो नाथ) शासन नायक गौतम स्वामी, मारा हैये देजो हाम, मारा... विनंती करूं छु कर जोडीने, कर जोडीने ...... वीर प्रभुनी भक्ति प्रीति, गुरु बन्या विनयनी मूर्ति, मुजने विनयी बनाव, भवसागरथी तराव छट तपने पारणे एकाशन, तारा नामे गाजे आ शासन, अक्षीण लब्धिना अवतार, मनवांछित दातार जेना माथे मूके छे हाथ, केवलज्ञान पामे ते सुख साथ, मोह मारो हटाव, केवलज्ञान अपाव सोनाना कमल पर बिराजे, अठ्ठावीश लब्धि राजे, तारा नयनो अमृतधार, मुखडुं तेज अंबार तारों तारों वीर (राग - आवो आवो देव...) तारो तारो वीर ! मारी नैयाना आधार, गौतम करे रे पुकार, मने पार उतारो रे... Jain Education Matemational ४२ विनंती...१ Flu mew विनंती... २ . विनंती... ३ विनंती...४ jainelibrary.org Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुमझूम करता देवविमानो, आकाशे जे गाजे, वलता स्वामी गणपति पूछे, सुर आव्या कोण काजे मने...१ भविजन तारक सत्य दयामय, कुमति टालणहार मनिया वर्धमान विभुशिव सिधाव्या, अमे आव्या ते वार जाला मने...२ सांभलीने मूर्छा ओ पामे, दड दड आंसु वहावे, या हे प्रभु हुं छेडो न झालत, शिव न सांकडु थात मने....३ वीर ! वीर ! कही विलपे बालक, कोने पूंछु प्रश्न भदंत ? कोण बोलावे कहीनेगोयम, किण पासे रहु संत ? मने...४ रे निरागी ! तव भाव न जाण्यो, श्रुत उपयोग न आण्यो, राग रीसना जगथी सर्यु, मन वैरागे धरीयु म ने...५ नूतन वर्षे नव प्रभाते, गौतम केवल पावे जगना झीवो सुखमां म्हाले, सुर उत्सवमां आवे - मने...६ बार वर्षे वीर गौतम मलता, शाश्चता बंदमां ल्हेरे, चतुर्विध जिन शासन जगमां, हर्ष घरोघर प्रेरे मने...७ E ate Per a ly Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुगजुनो स्नेह वीर गौतम गवाय, शक (राग - श्याम तेरी बंसी)नीया जुग जुनो स्नेह वीर गौतम गवाय, जुग... ओवा गुरु गौतम केम रे भूलाय, वीर मारा हैयामां रंगे रमी जाय, मेवा... ओ... रडता रडता मोहने हठावी, नालापानी केवलज्ञाननी ज्योतने जगावी निरभागी जीव अंधारे अटवाय,.... वीर...१ ओ... वीर निर्वाणनी वसमी विदाये, गौतम विरहे हैयुं चिराये चतुर्विध संघना नयनो भीजाय...... वीर...२ ओ... दिवाली दिन पछी नूतन वर्षे, गौतमना नामे मंगल गवाय, देजो सहुने लब्धिनो भंडार, गौतम मारा हैयामां रंगे रमी जाय वीर...३ For Private enamose Only Elibrato Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मने गौतमस्वामी व्हाला रे (राग - तारो सोनानो, वली रुपानो) मने गौतमस्वामी व्हाला रे हो... हो... मुखलडुं चमके रे आभलनी ओर कोर चमके चांदलीया, हा. रे. मुखलडुं मलके रे. f.. m अंगुठो मूकी खीरनुं पारणं करावे रे, आश्चर्यथी पेला तापसो केवल पावे रे आभलानी...१ कल्पतरु सम सहुना वांछित पुरतारे, रिद्धि सिद्धि पामे गुणनी गुरुतारे आभलानी... २ मारा गौतमस्वामी अवा दिल डोले रे (राग - मारा दादाना दरबारे) मारा गौतमस्वामी ओवा दिल डोले रे... शिर डोले रे... गुण बोले रे... केवा चढ्या मानना घोडे रे, वीर देखी मान छोडे रे, जेने केवलज्ञान खोळे रे, पचास हजार शिष्यनी बलिहारी रे, जेने वीरनी कृपा न्यारी रे, बधी लब्धि जेनी जोडे रे, दिल... १ दिल... २ www.elibrary.org Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवा गौतम गुण दरियारे, सहु संघना मन हरिया रे, अहँतना पुरे कोडरे, दिल...३ गाया गाया रे... गौतमस्वामी गुण गाया (राग - गायो गायो रे महावीर जिनेश्वर) गाया गाया रे... गौतमस्वामी गुणगाया, गौतम... अनंतलब्धि निधान श्री गौतम, प्रथम श्री गणधर राया, ओक समय पण प्रमाद करीश नहि, उपदेश वीरना पाया रे... गौतम...१ अष्ट महासिद्धि पुण्य दायक, कल्पवृक्ष, गुरुराया, चिंतामणी, कामधेनु, कामघट, समान, समृद्धिदायारे.. गौतम...२ विध्न, कष्ट, दरिद्रता, दुःख, शोक, जाय गौतम स्मृति आया, गौतम स्वामी स्मरणथी बहुजीव, बहु शुख संपत्ति पाया रे गौतम...३ जिनशासनमां श्री वीर मंगल, गौतम मंगल पाया, स्थूलिभद्रादिक मंगल चार, श्री जैन धर्म कहायारे, गौतम...४ Jain Education temnational For Private & Personal use only jainelibrary.org Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "वा, (२) <> हे गौतम गणराया >> (राग - हे त्रिशलाना जाया) हे गौतम गणराया, मांगु तारी माया, मम वीरप्रभुना लाडकवाया, जगमा नाम सोहाया... निजि हे... वीर प्रभुनी पासे जईने, संयम रंगे रंगाया,(२) प्रभुना प्रथम शिष्य थइने, गणधर पद सोहाया,(२) धन्य तमारा मातपिताने,(२) धन्य तमारी काया हे....१ स्वशक्तिओ अष्टापदनी, यात्रा करी बतावी,(२) पंदरसो तापसने तारी, जगमां कीर्ति वहावी,(२) लब्धिओ मली गौतम नामे(२), उपयोग कीधो दोय हे....२ तारा नामे मंगल थावे रिद्धि सिद्धि सह पावे,(२) ॐ ही नमो गोयमस्स, मंत्र जपो दिल भावे,(२) | जय हो..गौतमस्वामी तमारो(२),लब्धितणा भंडार हे..३ <> पुजो पूजो, श्री गौतमस्वामी (राम-रीझो रीझो आ मौसम) पूजो पूजो, श्री गौतमस्वामी, बहुजीव तारणहार, बहुजीव तारणहार गोयमजी बहुजीव तारणहार... Jain Education Inter n a For Private & Personal use only manvarg Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीर पासेथी त्रिपदी पामी, सर्वे गणधरराय द्वादशांगी रचना करे क्षणमां, जग उपकार कराय पूजो...१ छ छठ तप करता बहु भावे, इन्द्रभूति गणराय, परवरिया पांचसो शिष्योथी, उपदेश देता जाय या पूजो....२ जग विचरी उपकार करे बहु, श्रेष्ठ संयम पालनहार, तप संयमे लब्धि मेलवी ने, अनंत लब्धि धरनार पूजो...३ बोध दइ जस जस दीक्षा दे, ते ते केवलि थाय, निगडा निजपासे केवल नहीं तोये, केवलज्ञान देवाय ग पूजो...४ हु मुक्तिपामु के नहि प्रभु, गौतमथी पूछाय आप लब्धे अष्टापद जई जिन, वांदे ते मोक्षे जाय पूजो.....५ महावीर मुखथी सुणी मुक्तिपंथ, गौतम हर्षित थाय, गौतमनीति चतुर्विध संघ कहे, गौतम नामे सुख थाय पूजो....६ विनयमूर्ति गौतम स्वामी सोहाय* (राग-आंखडी मारी प्रभु) विनयमूर्ति गौतम स्वामी सोहाय छे, वीरनी भक्ति करता हैया हरखाय छे... Jain Education nternational jainelibrary.orge Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेना नामे लब्धि ना निधान छे, नाकाम हाथ मूके त्या थाये केवलज्ञानरे कि शिष्योने जे शिवसुखडी चखावता विनयमूर्ति....१ . गुरुचरणे नम्र बनीने झूकता, शिष्य सवाया, राजलक्ष्मीने वरता, जैनं जयति नादने गुंजवता विनयमूर्ति....२ भन्ते कहीने प्रश्न वीरने पूछता, गोयमा सुणीने हर्ष पामता, आप कहो छो ते ज प्रभु सत्य छे विनयमूर्ति...३ ® मारी आजनी घडी छे रलियामणीजी रे (राग-१) मारी शेरीओथीकान कुंवर. २) मारी आजनी घडी.) मारी आजनी घडी छे रलियामणीजी रे, गुरु गौतम मल्यानी वधामणीजीरे, मारी... माजी मारी....१ अमे गौतम स्वामीना गुण गावता रे लोल, हे.... अमे लब्धितप भावे करताजीरे आसो पालवना तोरण बंधावीया रे लोल, हे.... सूरिमंत्रमां गौतम बिराजीयाजी रे मारी......२ Jain Education Instid Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमें मोतीना साथिया पूरावीया रे लोल, हे... अमे प्रेमे गौतमने वधावीयाजी रे मारी....३ मारी....४ आजे आनंदना मोजा उछल्या रे लोल, हे.... गुणगाता मन मोर नाचीयाजी रे जेना नामे मीठाइ मेवा मलता रे लोल, हे... वली जापे भव ताप बहु हठताजी रे केवो अवसर अमूलो आवीयो रे लोल, हो... व्हालो भाविकोने बहु भावियोजी रे मारी....५ मारी...६ ॐ जय गौतम स्वामी, प्रमु जय गौतमस्वामी (राग-हे शंखेश्वर स्वामी) ॐ जय गौतम स्वामी, प्रभु जय गौतमस्वामी, भक्ति भावसे आरति(२), करते शिरनामी 15 इन्द्रभूति शुभनाम अनुपम, पृथ्वी सुत प्यारे, वीर प्रभुके गणधर(२), लब्धि सब धारे ॐ.....१ ॐ heational Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिपदी पाकर विरचे द्वादश, अंग यदा क्षणमें, जिन शासनके सूरज(२), भाये जन मन में जी ॐ ......३ अष्टापद गये अपने बलसे, वन्दे जिनचंदा, पंदर शतत्रय तापस(२),टाले भवफंदा is निर्मल निरुपम दर्शन, दुःख हर, जगजीवन त्राता, ___ आरति करते जो जन(२) पावे सुखशाता ॐ.....५ गौतमस्वामी अंतर जामी पाए (राग-अंतरजामी सुम अलवेसर) गौतमस्वामी अंतरजामी, आतमरामी पामी रे, हुं थाउं तुम पथ अनुगामी, शिवरामी विसरामी गुरुपद जपीओ रे, भवो भवना संचित पाप, दुरे खपीये रे. मात पृथ्वीना कुंवर सुंदर, वाणी अमीय समाणी रे, वसुभूति नंदन, गौतम समरूं, चार अनुयोग सुखाणी गुरु....१ गौतम स्वामी गुरु गुणपति, वीरना पटघर जगमां रे, तुम भगतिथी सुमति रति, होजो रे शिवपलकमां गुरु....२ मुजने व्हाली गौतम सेवा, गजने मन जिम रेवारे, गुरु सेवाथी मुगति मेवा, आपो आपनी सेवा गुरु....३ Jain Education Anational For Private &Personal use or wwmainelibrary.org Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आंखडी आजे हरखे स्वामी, तुम दरिशनसे मारी रे, देजो मुजने शीतल छाया, गौतम नित्य सवारी गुरु....४ मुंबई शहेर अंधेरी संघ, गोयमपद आराधे रे, सूर्योदये गौतम पद नमता, भद्र आतम काज साधे गुरु.....५ <> में भेट्या गौतमस्वामी >> 8. (राग-में भेट्या नामिकुमार) में भेट्या गौतमस्वामी, में भेट्या पृथ्वी मातानंद, सफल भइ मेरी आजकी घडीया, सफल भये नैना प्राण गोबर मंडण तुं घणी रे, लब्धितणो भंडार, गौतमस्वामी नामथी रे, संघ सदा सुखकार में...१ में...२ संशय दूर निवारीयो रे, महावीर प्रभुनी पास, प्रतिबोध करता देवशर्माने, पछी पाम्या केवलज्ञान वीर जिन केवलज्ञान पछी रे, पाम्या संयम महान, श्री वीर जिन निर्वाण पछी रे, पाम्या केवलज्ञान में...३ घणा दिवसनी चाह हती रे, देखवा तुम देदार, जयशेखर सूरि ओम बोले रे, वा जय जयकार में...४ Jain Educatinternational Fat Private Personal use only melibrary ore Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लब्धिंवंता...लब्धिंवंता...लब्धिंवंता.... (राग-ढोलीडा-ढोलीडा) लब्धिबंता.....लब्धिवंता....लब्धिवंता....लब्धिवंता गौतमस्वामी जो जे भूलायना, जो जे... भक्ति करवानो रंग जो जे वही जाय ना, लब्धिवंता... पृथ्वी माताना लाडकला नंद, पिता वसुभूतिना कूलमा दिपक, लब्धिरुपी पटराणीओ गणी शकायना भक्ति....१ भक्तिनी शक्ति छे भारी तु मान, भक्ति करता सहु बनशे महान, अंतरनी भक्ति विना गौतम थवाय ना, गौतम..... भक्ति....२ गौतमनी भक्ति करवा आवे नरनार, भक्ति करे अनो थाये बेडो पार, _ वातो वातोमां आ जीवन वही जाय ना, जीवन... भक्ति...३ - भेगा मलीने आज करीधे भक्ति, मागो गौतम कनेके आपे शक्ति भक्तिना गीतोनी, सरवाणी सूकायना... भक्ति....४ - धून - धून जगावो गौतमस्वामीनी रे, ओ भक्तिना रसिया, -धून जगावोने त्याग वधारो, त्याग वधारी समकित पामीओ रे, ओ भक्ति १ Jain Education Intational For Private & Personal use only W leelibrary.org Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धून जगावोने कर्म खपावो, कर्म खपावी मोक्ष पामीये रे, ओ भक्ति २ धून जगावोने प्रेम वधारो, प्रेम वधारी सिद्धि पामीये रे, ओ. भक्ति ३ जय जय श्री... गौतमस्वामी धून जगावो.... गौतमस्वामी सुरिमंत्रमा..... गौतमस्वामी लब्धिधारी ....... गौतमस्वामी गोबरगगाममां... गौतमस्वामी वसुभूतिनंदन.... गौतमस्वामी पृथ्वी जायानां... गौतमस्वामी वीरभुना ...... गौतमस्वामी सुखो आपें.... गौतमस्वामी दुःखो कापें...... गौतमस्वामी सहुना मनमां... गौतमस्वामी जयां जुओ त्यां.. गौतमस्वामी सहुना प्यारा... गौतमस्वामी कुंडलपुरना .... गौतमस्वामी » बोलो अॅक मीठा ललकारें > (राग-घर घर दिवडा प्रगटावो) बोलो ओक मीठा ललकारे, गौतम नामे छे जयकार गावो, गावो रे, गावो, गावो रे.... गौतम गुण प्रेमथी..... अंधेरी संघमंदिरना भव्य द्वारे, रुडा गौतम लब्धि तप थाये भव्य जननी भीड उभराये, घर घर मंगलनादो गवाये गावो...१ Jain Education mational Private & Personal use only. jainelibrary.org Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुंडलपुरना जे हता निवासी, बन्या भुक्तपुरीना वासी प्रेमे चरणे राज रमता, धर्मसुखना घेबर जमता गावो...२ <> नुतन वर्षे गुणने गावू >> (राग : चांदकी दिवार) नुतन वर्षे गुणने गावू, वीर गौतमस्वामी रे, वीरना चरणे शिर झूकावी, थया जे जगनामी, नूतन... स्नेह होय तो आवो हो जो, भवभ्रमण मीटावी दे, (२) मान मूकी ज्ञान लीधु, गयुं अज्ञान सीधावी नूतन....१ परमपावन करुणानिधि गौतम, लब्धिना भंडार (२) नाम तमारु आनंदकारी, भवल भावठ हरनारु नूतन...२ सागर जेवू दिलडं तमारु, वात्सल्य जल उभरातु, (२) "प्रेमळ नयने सहुने निरखी, हालिकने बोध देता नूतन.....३ तो शुं प्रीत बंधाणी > (प्राचीन स्तवन) राग : मुज अवगुण मत देखो) तो शुं प्रीत बंधाणी, जगतगुरु तो शुं प्रीत शुं प्रीत बंधाणी वेद-अरथ कही मों ब्राह्मणमें कीधो नाणी.. जगतगुरु.. Jain Education Intermonal a te Po w er orga Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Cu बालक परे में जे जे पूछ्युं, ते भाख्यु हित आणि मुज कालाने कोण समजावशे, तो बिन मधुरी वाणी वयण सुधारस वरसी वसुधा, पावन खेत समाणी नारक नर तिरि प्रमुदित मोहित, तोहि गुणमणि खाणी किसके पाउं परं अब जाइ, किसकीपकरुं पानी कुण मुज गोयम कही बोलवे, तो सम कुण वखाणी अइमुत्तो आव्यो मुझ साथे, रमतो काचली पाणी केवल कमला उसकुं दीनो, यही कीर्ति नही छानी चौद सहस अणगार म्होटो, कीनो कांहु पिछानी, अंतिम अवसर करूणासागरष दूरे भेज्यो जाणी, केवल भाग न मागत स्वामी, रहत न छेडो ताणी, बीचमें छोड गयो शिवमंदिर, लोक में होत कहाणी, खामी कुछ खिजमत में कीनि, ताकि था हि कमाणी, को स्वभाव लहे शुं सेवक, यहि बात पिछानी, वीतराग भावे चेतनता, अंतरमूर्ति कहानी, - खीमा विजय जिन गौतम गणधर, ज्योतशुं ज्योत मिलाइ, जगतगुरू...८ E cation. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम नाम समरिये सुमनजन ? (राग : मनहूं किमही न बाजे)। गौतम नाम समरिये सुमनजन, गौतम नाम समरिये, पत्रकार पृथ्वी सुत वसुभूति नंदन, गौतम कुल अवतरिये, इन्द्रभूति छे नाम मनोहर, हैडे निशदिन धरिये, सुमन...१ वीर वजीरजी ज्ञानी सुकानी, षड्दर्शन रुप दरिये, अष्टापद जइ तापस तार्या, अंगूठ लब्धि उच्चरिये, सुमन...२ जन्म सुहायो गुब्बर गामे, केवल पाव नगरिये, महसेन दिक्षा शिवपद, वरवैभार सुगिरिये, सुमन....३ महामंत्र ज नामए गौतम, जपता जलनिधि तरिये, नही दुःख मरणे मरिये कदापि, नहीं दारिद्रथी डरिये, सुमन....४ गौतम नामे भवभीड हरिये, आत्म भाव संवरिये, कर्म जंजीरीया बांध्या छूटे, उत्तम कुल अवतरीये, सुमन...५ व IDIO Jain Education Interconal Private Persone nly witm elibrary.org, Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरु गौतम गुणना दरियारे (राग : १) राखना रमकडा... २) संभव जिनवर विनंती) गुरु गौतम गुणना दरियारे, जेनी जोड मले ना जगमरि, जे लब्धि अनंती वरियारे, वीर भक्ति वहेती दिलमा....... गौतमने आवता जोइने, तापसो चिंतवे ओम रे अमे नथी चडी शक्ता तो, आ पुष्टकाय चडे केमरे, सूर्यकिरणो अवलंबी गौतम, अष्टपद चडी जाय रे, देव वांदी वज्रस्वामी जीवने, प्रतिबोधी वलता थाय रे पंदरसो तापसने बोध दइ, साथै लड्ने आवेरे लावी खीरपात्रे अंगुष्ठ धारी, सर्वेने पारणुं करावे रे खीरनुं पात्र भरेलुं देखी पांचसो केवल पावे रे सोमवसरणादि ऋद्धि जोइ, केवलि पांचसो थावे रे गुरु.... १ EPISO श्री जिनवाणी सुणी पांचसो, केवलज्ञान पावे रे वीर कहे गोयम आपणे बेउ, तुल्य थाशुं मोक्षमाय रे Jain Educatory emational son: Welse Only गुरु....२ गुरु.....३ गुरु....४ गुरु.....५ ww.jainelibrary.org Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्वाण प्रभुनुं सुणतारे, गुरु गौतम पोके रडता रे, हु रागी प्रभु वैरागी, रडतापण केवल वरतारे गुरु....६ > गौतम तेरे चरणोकी > (राग : तु प्यार का सागर है) गौतम तेरे चरणोकी, यादि धूलही मील जाये, गौतम.... यह मन बडा चंचल है, कैसे तेरा भजन करुं FISS कार जितना इसे समजावो, उतनाही मचलता है । गौतम.....१ कहते है तेरी लब्धिया, दिनरात बरसती है ओक अंश जो मील जाये, दिलकी खुशी बढ जाये गौतम....२ गौतम इस जीवनकी, बस ओक तमन्ना है तुम सामने हो मेरे, मेरे प्राण निकल जाये गौतम....३ गाते गौतम तेरी महिमा, विध विध शब्दोंको ढुंढकर, मेरा दिल बना है बाग, भक्तिके फूल महकावो गौतम....४ Jain Education Interational For Private & Personal use only unelibrary.org Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम तोरा सेवक हूं, पल पल तेरा ध्यान धरूं ये सेवककी अरजी है, भव भ्रमण मीटावो मेरा गौतम....५ > प्रातः उठीने जपु तारु नाम > म (राग : बहोत प्यार करते है ....) प्रातः उठीने जपु तारु नाम, गौतम नामे, सरे मुज काज, प्रात.... जनमो असंख्य मल्याने गुमाव्या, धर्म न कर्यो के तमने न संभार्या स्वीकारो तमे तो, तूटे मारा बंधन प्रातः.. तारा रटणनोरे महिमा छे भारे, पामे पार ओ तो थाये भवपार, लागे प्यारं प्यारं, तारु शरण प्रातः.....२ मने हरघडी आरझुछे तमारी, मलो जो तमे तो हुं जाउं वारी वारी, करू तारु दर्शन, करू तने वंदन, जनमोजनम प्रातः.....३ करूणाना सागर तमे छो अमारा, श्रद्धा छे स्वामी मलशे किनारा, तमारा ज नाममां हो मुज मन, प्रातः....४ national ABPersonallus Only relainelibrary.org. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -> दर्शन प्यासी आंखो मारी <> (राग : अभी भरेली नजरो....) दर्शन प्यासी आंखो मारी, क्यारे प्यास बुझावशो, दीन दयालु हे गौतम प्रभु, क्यारे दर्शन आपशो, दर्शन... जन्मोजनमनी झंखना मारी, क्यारे पुरी करावशो, FOET शरणागत वत्सल छो व्हाला, शरणं तारु आपजो, दर्शन....१ गुरू कहु के प्रभु कहु तने, मारे मन बेउ एक छे, तारी भक्तिमां मस्त बनीने, आ काया कुरबान छे, दर्शन....२ जीवन नैया सोंपी तमने, सुकानी बनीने संभालजो, भवसागरथी पार उतारी, निजधामे पहोंचाडजो, दर्शन....३ - साधनमां हुं काइ न समजु, निःसाधन मने जाणजो, कृपासाध्य कहावो भगवन्, क्यारे कृपा वरसावशो दर्शन....४ Private Personal only W aive banorg Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + गुरु गौतम तेरी मूरतियाँ सोहे + (राग : पार्श्वचिंतामणी मेरो मेरो) गुरु गौतम तेरी मूरतियाँ सोहे, रुप अनुपम सुंदर छबिया दीसे चंद्र जैसी जैसी..... मुखडुं उज्ज्वल नयणे निहाले, चित्त पामे विसराम, विसराम, ग गुरु गौतम .....२ पूरव पुण्य थकी हम पाये, दीयो भवोभव सेवा, सेवा गुरु गौतम .... १ गुरु विनयसे लब्धि तव प्रगटे, हाथ मूके वरे ज्ञान, ज्ञान गुरु भोर थये नित्य दरिसण कीजे, तस घेर मंगल ल्हेरे, ल्हेरे गौतमस्वामी प्यारे गुरुवर (राग : निरंजन नाथ मोहे कैसे मिलेंगे) Jain Education of national गौतम... ३ Private & Personal Use Only गौतम... ४ गौतमस्वामी मेरे प्यारे गुरुवर, प्यारे गुरुवर मेरे प्यारे गुरुवर, गुब्बरगाँवमें जन्मभूमि है, पृथ्वी-वसुभूति के नंदन बने है जिल गुरु गौतम... ५ TA गौतम ....१ jainelibrary.org Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरी महिमा है अतिभारी, दरिशण को आते है नरनारी 40 गौतम....२ अतिमुक्तक जैसे भविजनको, मुक्त किया सारे कर्मबंधनसे गगौतम....३ सूर्य-किरणके आलंबनसे, महातीर्थरुप अष्टापद विलसे गौतम....४ - जो जपता है नाम तुम्हारा, मनवांछित सब पाये अपारा गौतम....५ > हे गौतमस्वामी लब्धिंवंता > (राग : दिल लूटने वाले) है गौतमस्वामी लब्धिवंता, मेरे मनमे सदा तुम नाम रहे, वीर के गणधर, चउनाण धारी, धोर तप तपी महा ब्रह्मचारी पचास हजार शिष्योके गुरु मेरे मनमे....१ कनकवर्णा, शुद्ध रुपरुपा, सहजानंद आनंदधन रुपा नाम आपका आनंदकारी है। मेरे मनमे....२ अष्टापदपर अपने बलसे, चोबीश जिनवरको वंदिया, जग चिंतामणि तब तिहा रची।। मेरे मनमे....३ Jain Education Intelona Fo-Private & Personalities Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभू वीर निर्वाण जब आप सुना, अति खेद हुआ तब मनमे बडा, वह खेद बना वैराग्य भरा। मेरे मनमे....४ जय जय जय जय,जय नित्य तेरे, कर सहाय अब गुरुवर मुजे, सब विपत्तियोंका छेदन कर। मेरे मनमे....५ > यह है लब्धिंराया > (राग : ये मेरे दिले नादान) PER यह है लब्धिराया, विनयके गुण भंडारा, प्रभु गौतमके चरणों मे, आकरके झुक जाना... तुं वसुभूति नंदन है, तुं पृथ्वी के जाया है तुं तो कंडलपुर मंडल है, विद्यामें शिरोमणी है यह है...२ तुज अंगुष्ठ पंकजमें, अक्षीण महानसी लब्धि है, तुं तो करुणासागर है, मुज पर करुणा करना यह है...३ तेरी सुंदर सुरत है, मेरे मनको लुभाती है। मेरे प्यारे प्यारे गणधार, युग युग अमर रहना 13 यह है...४ तेरी लब्धि अनंती है, सभी जीवों के तारक है मुझे वर लब्धि देकर, भवपार करा देना यह है...५ Education Lettona Percors Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीर वहेला आवे रे - (प्राचीन) श्री गौतम स्वमीना विलाप, स्तवन) वीर वहेला आवो रे कर गौतम कही बोलावोरे, दरिशण वहेलुं दीजीए होजी गौतम भणे हे नाथ, तें विश्वास आपी छेतर्यो, परगाम मुजने मोकली, मुक्ति रमणी तुं वो हे प्रभुजी ! तारा गुप्त भेदोथी अजाणरे वीर..१ शिवनगर थयुं शुं सांकडं के हती, नही मुज योग्यता ? कडं होत जो मुजने, तो कोण तमने रोकता, हे प्रभुजी ! हुं शुं मागत भाग सुजाण रे याबीर..२ वीर,.३ मम प्रश्नना उत्तर दइ, गौतम कही कोण बोलावशे ? कोण सार करशे संघनी, शंका बिचारी क्यां जशे ? हे पुण्यकथा कही, पावन करो मम कान रे, जिन भाण अस्त थता तिमिर, मिथ्यात्व सघले व्यापशे, कुमति कुशील जागशे,... वली चोर चुगल वधी जशे, हे त्रिगडे बसी देशना दियो जग भाण रे वीर..४ Jain Education Internal OF Personal us wwjainelibong Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनि चौद सहस छे ताहरे, वीर माहरे तुं एक छे, टलवलतो मने मूकी गया प्रभु क्यां तमारी टेक छे, हे प्रभु स्वप्नांतरमां अंतर न धर्यो सुजाण रे पण हुं आज्ञावाट चाल्यो, न मले कोइ, इण अवसरे हुं रागवश रखडी रह्यो निरागी वीर शिवपुर संचरे, वीर वीर कहुं, वीर न घरे कांइ कान रे कोण वीरने कोण गौतम, क नहीं कोइ कोइनुं कदा, ए रागग्रंथि तूटता वरज्ञान गौतमने थता, हे सुरतरु मणि सम गौतम नामे निधान रे कामह कार्तिक वदी अमास रात्रे, अस्त भाव दीपक तणो, करे द्रव्य दीपक देवो तिहां, लोक दिवाली भणे, हे वीर विजयना नरनारी करे गुण गान रे Jain Educationternational शिक्ष विर For Private & Punaluse Only ल वीर.. ५ वीर.. ६ विहार वीर..७ वीर.. ८ jainelibrary.org Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - गौतम स्वामी केरो जाप करो > जवान (राग : अब सोंप दिया....) शामा गौतम स्वामी केरो जाप करो, ऋद्धि सिद्धि मंगल माल वरो, थाजस नामे संकट विघ्न टले, त्रिकाल गौतमका ध्यान धरो नमामिला गौतम... वीर चरणकमलकी सेवा में, विनयसे दिन और रात रहे, चउनाणी चौद् पूर्वके धणी, वीरकी आणाको शिर वहे कि क गौतम...१ तप ध्यानमें लीन सदा रहेते, अठ्ठावीस लब्धिको धरते, वीर तत्वोका उपदेश करते, भक्तोंके वांछित पूरते गौतम...२ गौतम नामे मंगल माला, रोग शोक दरिद्रको हरता परिवार मुनिगणका ज्यादा, पचास हजार गणको धरता की गौतम...३ वीर मुक्तिके बाद केवल लक्ष्मी, वीतराग भावोंसे तुम वरते भूमितल को सदा पावन करते, वर्ष बार तक विचरते गौतम...४ वीर स्वामीके गणधर पहेले, वीर शासनको रक्षण करते, परिवार सुधर्माको सोंपके, सर्व कर्म हरी मुक्ति बरते गौतम...५ गात Jain Education Intetional For Private & Personal use only angeliorary.org Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ <> मारा नाथ छो भवमा साथ छी > मारा नाथ छो भवमा साथ छो, मारा हैयाना हार, शिरताज छो, भागे पाप पशु वनराज छो.... माणिक गौतम प्रभुने दिलमां वसावो, व्याधि न कोइ तेने सतावे पल पल गौतम प्रभु गुण गावे, पाप पिशाचोने दूर भगावे IPS मारा...१ मेघ बनो तो मस्त मयूर हु, पद्म बनो तो प्रेमी भ्रमर हुं माया सेवा चाहु भव भय हर हु, आव्यो छु तारे द्वारे फकीर हं मारा...२ प्रीत करी में प्रभुजी तमारी, दुनिया लागी मुजने खारी। लागी मूरत तारी न्यारी प्यारी, मलके छ आजे आंखो मारी लामारा...३ बोधि देजो भव भव स्वामी, हुं छु तेनो खूब खूब कामी शाश प्रेम भानु मुज अंतरयामी, अम सेवकने तुम प्रीति जामी मारा...४ आज तो वधाइ ब्राह्मण वसुभूति के दरबारमें। (राग - नगरी नगरी द्वारे) आज तो वधाइ ब्राह्मण वसुभूति के दरबारमें, पृथ्वी देवाए बेटो जायो, श्री इन्द्रभूति नामरे, आज...१ Jain Education iterational Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुंडलपुरमें उत्सव होवे, मुख बोले जयकार रे, धननन धननन घंटा बाजे, साथी करे थेइकार रे, शिष्यो मली बिरुदावली गाये, लाये मोती माल रे, चंदन चरची पाये लागे, स्वामी जीओ चिरकाल रे, ਤਸਰ आज... २ Jain Education Inter आज... ३ आज... ४ वीर प्रभु पासे संयम लेवे, पाले निरतिचार रे, जिस जिसके पर हाथ रखे वह, पामे केवल ज्ञान रे, * नाचो नाचो उमंगे सौ आज के मल्या : (राग - में तो भूल चली) नाचो नाचो उमंगे सौ आज के मल्या मने गौतम गुरू, म हे नाचु निशदिन तन मननी संगाथ के मल्या मने..... वीर प्रभुना गणधर वडेरा, पृथ्वी - वसुभूतिना नंद दुलारा, हो...हो.... बने लब्धिना महाभंडार, के मल्या मने.... गौतम स्वामीनो माहिमा छे भारी, तत्व मनीषी ज्ञानी अने ध्यानी, हो... हो... वीर विनयतो अपरंपार, के मल्या मने...... सूरिमंत्रमां गौतम बिराजे, पंच प्रस्थानोमां वडा कहावे हो... हो... तेना नामे अंतर मन हरखाय, के मल्या मने... ॥१॥ ॥२॥ 11311 Ene 11811 janelbrary.org Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कामधेनु अने सुरतरुचंगे, चिंतामणि चिंतित दे मन रंगे, हो... हो... हवे करशुं आतमनो उद्धार, के मल्या मने... ॥५॥ - गौतमस्वामी को वंदन भावे किजिएरे स (राग - वीर कुवरनी वातलडी) गौतमस्वामी को वंदन भावे किजिए रे, भावे किजिए रे, भावे किजिए, वंदन करके दुःख वमिये, महिमा अपरंपार... मागे वीर प्रभुके गणधर पदपर पहेले, भक्तिके उमटे रेले, निशदिन प्रभु पास रहेते, अंतिम घडी वियोग गौतम...१ सूरिमंत्रमे गौतम बैठे बीच, तस लब्धिका नहीं माप, मनमे न रहे कोइ पाप, गुण गाये नरनार गौतम...२ कंचनवर्ण सुंदर तस काय, ब्याणु वर्ष पाले आया पायें परम महोदय ठाय, सादि अनंत गौतम...३ . तारक गौतम भावे हम कहते, नित्य उनकी छायामें रहते रहते तो सुखिये बनते, दुजो शरण न कोइला गौतम...४ आज अमारे संघमे तुम आओ, दुःख संकट को निवारो मेरे मनमे एकज नाद, रहे गौतम नाम गौतम...५ ७० Jain Educati altion OF Private resonapose Only Nainelibrary.org Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीर विना वाणी कोण सुणावे (राग - तु प्रभु मारो... भरतनी पाटे भूपति रे) वीर विना वाणी कोण सुणावे, कोण सुणावे, कोण बतावे, जब ये वीर गये शिमंदिर, अब मेरा संशय कोण मिटावे, मिटावे तुम विना चउविह संघ कमलदल, विकसित कोण करावे, करावे, कहे गौतम गणधर तुम विरहे, जिनवर दिनकर जावे, जावे, कुमति उलूक कुतीर्थिक तारा, तिग तिगाट तस थावे रे थावे, मोकुं साथ लेइ क्युं न चले, चित्त अपराध धरावे, धरावे, इस परभाव विचारी अपनो, भावशुं भाव मिलावे, मिलावे वीर वीर लवता वीर अक्षरे, अंतर तिमिर हटावे, हटावे Jain Education Intentional शिवीर. २ तीन मन ट पि 5 TIE FEST IHR मी FIB कांन शि lys हा वीर. १ दीवा वीर. ३ वीर. ४ Tens This वीर. ५ वीर. ६ वीर. ७ www.nelibrary.org Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकल सुरासुर हरखित होवे, जुहार करणकुं आवे, आवे, इन्द्रभूति अनुभवकी लीला, ज्ञानविमल गुण गावे, गावे, वीर. ९ प्रेम थी पधारों रे, आवो गौतम गुरु आंगणे, (तर्ज- वीर कुंवर झुलेरे....) प्रेम थी पधारो रे, आवो गौतम गुरु आंगणे, भावथी वधावुं रे, बेसाडु सोवन सिंहासने अवसर पाम्यो हुं, पुण्यना उदयथी, पुण्य प्रदाई रे, शोभा तमारी वीरशासने सूरिमंत्र पूजनमां, स्नेहथी पधारो, अंतर आवो रे, ज्ञान तणु दान करवा मने लब्धि अनंतधार, स्वाम तुं सोहामणो, ज्ञाननी लब्धि रे, प्रार्थ प्रभु हुं तारी कने Jain Education Ternational ७२ वीर. ८ 師 For Private & tunal use Only HE कककी प्रेमथी. ॥ १ ॥ लब्धि केवलनी आप रलियामणी, केवल आपी रे, स्थापो मने शिव आसनेप्रेमथी. ॥४॥ नि प्रेमथी. ॥२॥ प्रेमथी. ॥३॥ jainelibrary.org Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहस पचास गुणी शिष्य तब योगथी दीक्षा - शिक्षारे, पाम्या केवल ते तत्क्षणे वाणी सौभाग्य श्री - सत्व- शिव कारणा, सूरिमंत्र जपता रे, आप कृषाथी रोम झणझणे वांछा पूरो, वांछा पूरो, वांछा पूरो रे, गौतम स्वामीजी मारी वांछा पूरो रे, चिंता चूरो, पाप हरो, दुःख हरो रे, लब्धिधरा सांइ मारी, वांछा पूरो रे .... वांछा पूरी, वांछा पूरी, वांछा पूरी रे, (तर्ज- कोण भरे कोण भरे कोण भरे रे...) कृि यारी वीर प्रभुना तमे गणधर वडेरा, कामधेनु, कल्पतरु, मणिथी अधिकेड़ा, कामित करो ने मारा काम हरो रे, दीक्षा लीधी छे जेणे आपनी कृपाथी, शीघ्र पाम्या छे ते तो कैवल्य साथी, कैवल्य आपी मारु श्रेय करो रे Jain Education Inter tonal ७३ शिक प्रेमथी. ॥५॥ प्रह प्रेमथी. ॥६॥ संजु मिट निल 飯 मिर गौतम स्वामी.... ॥१॥ नणचारी गौतम स्वामी.... ॥२॥ गौतम स्वामी.... ॥३॥ www.ahelibrary.org Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणी स्वामिनी त्रिभुवननी श्रीदेवी, गणी पीटक यक्षराज सेवी नितमेवी, सेवक सुरनार सहु कार्य करो रे... भावे समरे जे नाम गौतम तमारु, विघ्नो विदारी खोले पुण्यतणुं बारु, पुण्योदयी तु परमेश परो रे, प्रेमे भुवन गुरु गौतम ने सेवता, लब्धि अनंत होय सार करे देवता, धर्मी वल्लभ जग करो रे, 19 छठी Jain Education national जिस दिन गौतम स्वामी.... ॥६॥ 防延 हे गौतम गणधारी, जीवन ज्योत तुज न्यारी (तर्ज - हे त्रिशलाना जाया) गौतम स्वामी.... ॥४॥ हे गौतम गणधारी, जीवन ज्योत तुज न्यारी, लब्धिवंत शिरदार तमारा - चरणे प्रणति अमारी ७४ वार क) गौतम स्वामी.... ॥५॥ शिरीमान 加密 है गौतम गणधारी...१ Only jainelibrary.org Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीर जिनेश्वर पदकज भोगी, भमरो तुं महाभागी (२) विनयवंत विख्यात वजीरो, वीर रागी अकांगी (२) चौदसहस अणगार वडेरो, पण ना मान लगारी हे गौतम गणधारी...२ अक्षीण महानस आदि लब्धि, तुज चरणे रहेनारी (२) निज पासे अणुहुँत प्रदाता, ओ अचरिज तुज भारी (२) सहस पंचशत तापस केवल, लब्धिकारी हुशीयारी हे गौतम गणधारी...३ केवली सहस पचासतणा हो, गुरुवर छो चउनाणी (२) सुरतरं-मणी-धेनु तुज नामे, उपमा तारी अजाणी (२) सदा सर्वने सर्व प्रदाता, परम पदार्थ विचारी हे गौतम गणधारी...४ लब्धिवंत गौतम तुजनेहे, वीती रातडी काली (२) जे समरे प्रभु नाम तमारुं, तेने नित्य दिवाली (२) नाम काम वरदायक तारा, पूरण परचा कारी हे गौतम गणधारी...५ प्रेमे तुज चरणोनी दासी, श्रुतदेवी श्रीनारी (२) गणी पीटक त्रिभुवन स्वामीनी, सर्व सुरेशजुहारी (२) Jain Education in t o Private Personal only wwalibay.org Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भुवन भानु सम पुण्य प्रकाशी, सेवना तुज भवहारी हे गौतम गणधारी...६ <> श्री गौतम स्वामीनु स्तवन >> श्री वीर जिनेश्वर केरो शिष्य गौतमनामे जपो निशदिन जो कीजे गौतमनुं ध्यान, तो घर विलसे नवे निधान जा . गौतम नामे गिरिवर चढे, वांछित हेला संपजे; गौतम नामे नावे रोग, गौतम नामे सर्व संयोग जे वैरी विरुआ वंकडा, तस नांमे नावे ढुकडा; भूत प्रेत नवि मंडे प्राण, ते गौतमना करुं वरवाण. गौतम नामे निर्मल काय, गौतम नामे वाधे आय; गौतम जिन शासन शणगार, गौतम नामे जयजयकार शाल दाल सुरसा घृतगोल, वांछित कापड तंबोल; घर सुगृहिणी निर्मल चित्त, गौतम नामे पुत्र विनीत गौतम उग्यो अविचल भाण, गौतम नामे जपो जप जाण; मोटा मंदिर मेरु समान, गौतम नामे सफल विहाण घर मयगल घोडानी जोड, वारु पहोंचे वांछित कोड; महियल माने मोटा राय, जो तुठे गौतमनापाय ...७ 1 . ain Edoa jainelibrary.org Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम प्रणम्या पातिक टले, उत्तम नरनी संगतमले, गौतम नामे निर्मल ज्ञान, गौतम नामे वाघे वानर ...८ पुण्यवंत अवधारो सहु गुरु गौतमना गुणछे बहु; कहे लावण्य समय करजोड गौतम त्रुठे संपत्ति कोड ...९ <> श्री गौतम स्वामीनु स्तवन - पहेलो गणधर वीरनो ड़े, शासननो शणगार गौतम गोत्र तणो धीरे, गुणमणि रयण भंडार जयंकर जीवो गौतम स्वाम | ओ तो नवनिधि होय जस नाम ओ तो पूरे वांछितकाम ओ तो गुणमणि केरो धाम, जयंकर जीवो गौतम स्वाम जेष्ठा नक्षत्रे जनमिया रे, गोबर गाम मोझार ...२ वसुभूति सुत पृथ्वी तणो रे, मानव मोहनगार जयंकर, जीवो गौतम स्वाम समवसरण इन्द्रे रच्युं रे, बेठा श्री वर्धमान कर बेठी ते बारे पर्षदा रे, सुणवा श्री जिनवाण फार जयंकर जीवो गौतम स्वामीवा ...४ Jain Educatons Kational For Private & Personal use only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मात्र वीर कने संयम लहयुं रे, पंच सया परिवार छट्ठ छ? तपने पारणे रे, करता उग्र विहार जयंकर जीवो गौतम स्वाम अष्टापद लब्धे चड्यारे, वांद्या जिन चोवीश जगचिंतामणी तिहा रच्यू रे स्तविया श्री जगदीश जयंकर जीवो गौतम स्वाम पनरसे तापस पारणे रे, खीर खांड घृत भरपुर अमिय जास अंगुठडो रे, उग्यो ते केवल सूर जयंकर जीवो गौतम स्वाम दिवाली दिने उपन्यु रे, प्रभाते केवल नाण अक्षीण लब्धि तणो धणी रे, नामे ते सफल विहाण जयंकर जीवो गौतम स्वाम पचास वर्ष घरवासमां रे, छट्म स्थाओ त्रीस, बार वरस लगे केवलीरे, बाणुं ते आयुं जगीश जयंकर जीवो गौतम स्वाम गौतम गणधर वांदिये रे, श्री विजयसेन सूरीश ओ गुरु चरण पसाउले रे, धीर नमे निशदिश जयंकर जीवो गौतम स्वाम १० Jain Education national rivate Persone Only ainelibrary.org Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * शासन नायक प्राण प्रभु हे वीरजी ? त (राग - आंखडी कारी)E TRO शास नायक प्राण प्रभू हे वीरजी ? p REGITTE प्रीतडी तोडी मुज उपरथी साच जोगा अलगो कीधो आप कनेथी नाथजी ? नियमित आवशे जाणे लेवा मुजमां भाग जो काला जाम मन मंदिरना वासी व्हाला वीरजी ओ आंकणी...१ भल्या साहिब हठ करता न आवडे. THERE होत का जो अधिक ना मज पासे जो:IFFEREE कपट करी मुजथी शं चाली नीकल्या ? आवत नही तुम साथ खरेखर नाथजो मन...२ आप गया नोंधारो मुकी मुजने, दुःखनो डुंगर उग्यो दीन दयाल जो; भरत भवि तुम प्रेम तले पागल बन्या, छेह दीधो ते ओने पण कृपाल जो मन...३ याद करी तुम दिव्य जीवन मे सौ रडे, शोक त्यजे ना उर थकी दिन रात जो; Jain Education national nelibrary.org Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिथ्यामतिनो पार नहीं आ विश्वमां, हाम नथी हैये शुं करीओ तातजो मन...४ वातो शीतल वायु पण थंभी गयो, पायातमा नदी सागरना नीर पडया कंइ स्थिर जो; सरोवरमां हंसो चारो चरवो त्यजी, मींची आखो ऊभा शोके स्थिरजो मामियाजाणि मन...५ करमाया तरुवर सौ आप रवि विना, खरी पडया कंइ भूपर, पर्ण कुसुम जो; ना त्यजी गुंजन पंखी सौ माले जइ चढया, जहाहाकार शोक तणी पशुओ पाडे कै बूम जो मन...६ भल्यो साहिब ओलंभो तमने न हो, मा पाम्यो छु हु कर्म तणा फल मुज जो, आप करो तेमां शंका शी माहरे, मान कीधुं हित घणुं छे मुज जो मन..७ मनमां मोटी तुमने ओ शंका हती, निर्वाणे जो गोयम रहेशे पास जो; खेद प्रसारी आत्म गुण हानी करे, समज्यो साहिब भलु कर्यु छे काज जो मन...८ Jain Education internationa FFrival ONCHUS Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्य कहुं तो आप हता वीतरागजी, निरागी हो कसुरना तल भारजो; गुण ओ तुजमां जाण्यो में आजे विभो ? RSS धिक् धिक् निंदु आतम माहरो तातजो PEE मन...९ बिकिनकि गौतम चढीया भाव मिनारा उपरे, भावना आपी ओकत्व मन मांह्य जो; निर्मल पंचम ज्ञान प्रकाश्युं ते समें, सुरनरगण महिमा आनंदभर गायजो मन...१० शासन स्वामी संत स्नेही साहीबा, (तर्ज - ओधवजी संदेशो केजो श्यामने ओ देशी) ...१ शासन स्वामी संत सनेही साहीबा, डा अलवेसर विभु आतमना आधार जो, आथडतो अहीं मुकी मुजने एकलो मालीक केम जइ बेठा मोक्ष मोझार जो विश्वंभर विमला तमे वहाला वीरजी, मन मोहन तुमे जाण्यु केवल मागशे, लागशे अथवा केडे ओ जेम बोलजो, वल्लभ तेथी टाल्यो मुजने वेगलो, Jain Education Inteona For Private & Personal use only Mahelibrary.org Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भलु कर्यु ओ त्रिभुवन जन प्रति पालजो, विश्वं...२ अहो हवे में जाण्यूं श्री अरिहंतजी, या __निःस्नेही वीतराग होय नीरधारजो, मोटो ओ अपराध इहा प्रभु माहरो, श्रुत उपयोग मे दीधो नही ते वारजो, विश्वं...३ प्रेम थकी सर्यु धिक् ओक पाक्षिक स्नेहने, ओक ज तुं मुज कोइ नथी संसार जो, सूरि माणेक ओम गौतम समता भावथी, वरीया केवल ज्ञान अनंत उदार जो. विश्वं...४ श्री गौतम स्वामी की आरती जयो जयो गौतम गणधार (राग....रघुपति राघव राजाराम) जयो जयो गौतम गणधर, मोटी लब्धि तणो भंडार; समरेवंछित सुख दातार, जयोजयो गौतम गणधार ॥१॥ वीर वजीर वडो अणगार, चौद हजार मुनि शिरदार; जपता नाम हुवे जयकार, जयोजयो गौतम गणधार ॥२॥ गय गामिणि रमणी जग सार, पुत्र कलत्र सजन परिवार आपे कनक कोडी विस्तार, जयोजयो गौतम गणधार ॥३॥ Jain Edua letatione Private Personal use only ainelibrary.org Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४॥ घेर घोडा पायक नहि पार, सुखासन पालखी उदार; वैरी विकट थाये विसराळ, जयोजयो गौतम गणधार प्रह उठी जपीये गणधार, ऋद्धि सिद्धि कमळा दातार; रुपरेख मयण अवतार, जयो जयो गौतम गणधार कवि रुपचंद केरो शिष्य गौतम गुरु प्रणमो निशदिश - कहे छंद सुमनगार, जयोजयो गौतम गणधार ॥ ६॥ (६) गोतम गणधरतणी आरती उतारीये, माण (राग - देखी श्री पार्वतणी) गौतम गणधरतणी आरती उतारीये, गौतमना नामे जयकार, गौतमनी ज्योति जगसारणी गौतमनी लब्धि रलियामणी गौतमनी...१ एकसोने आठ दीपमाला प्रगटावीओ, ज्योति छे जीवन आधार गौतमनी...२ अरति-उपधि आधि व्याधिने चटालीओ करीओ अंतरथी टहुकार गौतमनी...३ भव्य भाविना लेख भाले कंडारीये, विघटेदुर्भाग्य अंधार गौतमनी...४ Jain Education Inte. Etional For Private & Personal use only sinelibrary.org Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उतारी लुण, अन्तर पधरावीओ, पूजा वरीओ शिवसुखनो शणगार ऐसे थे गौतम स्वामी • श्री गौतमस्वामी कीज था । जिस पात्र का स्पर्श करे उसमें धान्य की कमी नही दिखती थी । • भगवान महावीर की आज्ञा से गौतम स्वामी अष्टापद तीर्थ पर अपनी अतुल शक्ति से पहुँचे थे, यात्रा पूर्ण करके पर्वत की तलहटी पर आकर १५०० तापस-सन्यासियों को खीर का पारणा कराया था । इससे अक्षीणमहानस लब्धि की प्रसिद्धि हुई । यह बात गौतम स्वामी के जीवन का चमत्कारिक प्रसंग माना गया I गौतमनी... ५ • तीन लोक, परमेष्ठि पद, ज्ञान मार्ग और जिनपद के बीज समान गौतमस्वामी हमें इच्छित वर प्रदान करे। ऐसे महान कल्याणकारी गुरु गौतमस्वामी का नाम स्मरण सर्वप्रकारी सिद्धि देनेवाला है । गौतमस्वामी के ध्यान से विघ्नविनाश, मनोकामना पूर्ण, दुश्मन का दूर होना, स्वजन के साथ सुमिलन् रहना इत्यादि अनुकूलताएँ उपलब्ध होती है । प्रभात के समय में गौतम स्वामी जैसे पवित्र और दिव्यव्यक्तित्वके धारक परमगुरुका नामस्मरण जीवन में सौभाग्य in Education International ४ For Private & Personal use Only jainelibrary.org Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदि अनेक गुणों की प्राप्ति का कारण समझा गया है । बिन्दु में सिंधु का दर्शन अगर करना हो तो प्रभात के पुष्प समान परिमल के धनी गुरु गौतम स्वामी की मीठी याद अपने मनबगीचे को सुमधूर और सुवासित बनाती है । FR FF LIP • गौतम स्वामी सुरमणि, चिंतामणि, कल्पवृक्ष और कामित पुरण कामधेनु समान है । ऐसे गौतम स्वामी का ध्यान करने से चित्तप्रसन्नता की प्राप्ति होती है और अपनी आत्मा का उदय होता है । SPE गौतम स्वामी जिनको दीक्षा देते थे वह सभी केवलज्ञान प्राप्त करते थे । विशेषता है कि गौतम स्वामी के ५०,००० शिष्य केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये, जबकि प्रभु महावीर के ७०० शिष्य केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये । • अपनी विशिष्ट शक्ति से अष्टापद पर गौतमस्वामी जब गये तब वहाँ चौबीस तीर्थंकरो को वंदन करके जगचिंतामणी नामक चौत्यवंदन की रचना की । तथा तिर्यग्जृंभक देव को पुंडरीककंडरीक अध्ययन से प्रतिबोध किया, जो बाद के भव में वज्रस्वामी बने । Jain Education nation walwa Pembrary.org Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • गौतमस्वामी को केवलज्ञान होने से पूर्व मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान इस प्रकार चार ज्ञान थे। • श्री गौतम स्वामी को प्रभु महावीर के साथ पूर्व में सम्बन्ध हुआ था। जब प्रभु महावीर अठारवें भव में त्रिपृष्ठ वासुदेव थे तब, गौतम स्वामी का जीव उनका रथ चलानेवाला सारथी था। • शास्त्रो में गौतम स्वामी के पूर्वभव इस प्रकार बताये है। भव - १) मंगल सेठ २) मत्स्य ३) सौधर्मदेव ४) वेगवानविधाधर ५) आठवाँदेवलोक में इन्द्र ६) श्री गौतमस्वामी का। • चार चार ज्ञान के मालिक श्री गौतमस्वामी ने आनंद श्रावकको मिच्छामी दुकडं देकर नम्रता और क्षमा भाव का उत्तम आदर्श अपने को बताया है। अतिमुक्तक कुमार को बाल्यवय में दीक्षा की भावना कराने में गौतमस्वामी का संवाद और सहवास ही मुख्य कारण बना था। जो अतिमुक्तक कुमार चारित्र लेकर जीवन के नवमें वर्ष में केवलज्ञानी बने थे। • हालिक नाम के किसान ने गुरु गौतम के पास खुश होकर दीक्षा ली। किंतु बाद में प्रभु महावीर को देखते ही वह वापस भाग गया, ८६ Jain Education emationa' Private&Personal inelibrary.org Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्यों कि, जब भगवान महावीर त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में थे इस समय, यह हालिक किसान का जीव सिंह के भव में था, और भगवान के जीव ने इसको मारा था । उस भव के वैर के कारण भगवान को देखकर भाग गया। जब सिंह मरने की अवस्था में था, उस समय गौतम स्वामी, जो कि भगवान के सारथी थे, उन्होने सिंह को आश्वासन देकर शांत किया था। इसलिए गौतम स्वामी पर सद्भाव था। • भगवान महावीर की आज्ञा से गौतमस्वामी देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध करने गये थे, लेकिन कर्म का भारी पणा से देवशर्मा प्रतिबोध न पाया और गौतमस्वामी वापस आ रहे थे, उस समय भगवान महावीर का निर्वाण की बात सुनी, यह सुनकर खेद, विलाप करते करते राग में से वैराग्य भाव बढा और वैराग्य में से वितराग भाव प्राप्त किया। बाद में कार्तिक सुद एकम की पहली सुबह में उन्हे केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हो गया। उसी वक्त देवो ने केवलज्ञान का महोत्सव मनाया था। • श्री पार्श्वनाथ प्रभु की परंपरा के केशी कुमार श्रमण के साथ श्री गौतम स्वामी का संवाद हुआ था। परिणामतः श्री पार्श्वनाथ प्रभु के सर्वश्रमण समुदाय एवं श्रमणोपासक वर्ग प्रभु महावीर के शासन में Jain Education S tational For Private & Personal use only. www.osmelibrary.org Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मिलित हुए । अर्थात चार याम (महाव्रत) को बदल कर पाँच याम का स्वीकार किया। • अनंत लब्धि निधान गुरु गौतम स्वामी ने अपने जीवन में सिर्फ दो बार ही लब्धि का उपयोग किया था। १) मोक्ष प्राप्ति की प्रतीति करने हेतु अष्टापद पर्वत पर सूर्य की किरण पकड कर गये। २) १५०० तापस-संन्यासी को जैन दीक्षा देकर पहली बार का पारणा कराते समय खीर को अक्षय बनायी। • वीसस्थानक तप की आराधना में एक विशिष्टता है की तीर्थंकरनाम कर्म की निकाचना में कारण माना गया इस तप में, बीस-बीस स्थानों में एक भी स्थान में तीर्थंकर का नाम नही है। लेकिन सर्वलब्धि संपन्न श्री गौतम स्वामी का नाम आता है। और बडे आश्चर्य की बात यह है कि उन्नीस स्थान की आराधना एक उपवास से होती है, किंतु गौतमस्थान की आराधना दो उपवास से होती है। • बहुत सारे मंगल में एक अलौकिक मंगल के रुप गौतमस्वामी को स्वीकार किया है । इसकी प्रतीति प्रतिवर्ष कार्तिक सुद एकम के दिन वर्ष की नई प्रभात में गौतम स्वामी रास सुनने से होती है। Jain Education aternational nelibrary.org Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • चौबीस तिर्थखरो के कुल गणधर १४५२ होते है। उसमें १५४२ वे गणधर श्री इन्द्रभूति गौतमस्वामी का साहित्य सबसे ज्यादा उपलब्ध है । जैसे की, फुलक, अष्टक, स्तोत्र, रास, स्तुति आदि उनके ही है। उसी प्रकार प्रतिमाजी भी गौतम स्वामी की ही ज्यादा देखने को मिलती है। • वर्तमान काल में श्वेतांबर आम्नाय में गणधर गौतम स्वामी द्वारा प्रदत्त, जगचिंतामणि सूत्र और ऋषिमंडल स्तोत्र मुख्य देखने को मिलता है । मंदीरमार्गी साधु साध्वी, श्रावक, श्राविका को दैनिक आवश्यक क्रिया में जगचिंतामणी सुबह के प्रतिक्रमण में, पञ्चकखाण परने में, स्नात्रपूजा में साधु साध्वीजी को प्रथम गोचरी करने के बाद में, पौषधमें श्रावक श्राविकाओं को एकसणादिकरने के बाद में - चैत्यवंदन में बोला जाता है। • ऋषिमंडल स्तोत्र उपधान तप करनेवालो को प्रतिदिन सुनाया जाता है । कितने साधु साध्वी श्रावक श्राविका हर रोज यह स्तोत्र का पठन करते हैं इस स्तोत्र का मूल मंत्र का जाप करते है। अनेक विध संकट-विकट में मंत्र गर्भित यह स्तोत्र का विशिष्ट अनुष्ठान भी करते है। • तपागच्छ, खरतगच्छ, अंचलगच्छ, त्रिस्तुतिक मत आदि Jain Education leational Private & Pe www.fateharary.org. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वेतांबर आम्नाय में साधु साध्वीजी और पोषार्थी श्रावक श्राविका रात सोने से पहले संथारा पोरिसीमे नमो खमासमणाणं गोयमाइणं, महामुणिणं शब्दो से गौतम स्वामी का नामस्मरण करते है। • गौतम स्वामी सिर्फ तपस्वी नहीं थे, महाज्ञानी भी थे। उनका तप ज्ञान से सुवासित था । या उनका ज्ञान तप से सुशोभित था। ज्ञान और तप उनके जीवन में समरस बने थे। वेद कालिन चार वेद, छ:वेदांग, धर्मशास्त्र, पुराण, मीमांसा, न्यायशास्त्र आदि चौदह विद्या के इन्द्रभूति गौतम स्वामी मूर्धन्य विद्वान थे। उस समय वैदिक पंडितों में वह दिगविजयी थे। फिर भी जीव के अस्तित्व की शंका में थे। भगवान महावीर ने इस शंका का समाधान देकर इन्द्रभूति का जीवन परिवर्तन किया, मानो की उनका नया जन्म हुआ। भगवान के आप प्रथम शिष्य गौतम गणधर बने । द्वादशांगी की रचना करके समग्र जैन धर्म को उसमें समाविष्ट कर दिया। • गौतम स्वामी ने भगवान महावीर के जीवन कवन को आत्मसात् किया। आजीवन भगवान के सामने छोटे बालक की तरह रहकर आत्मबलिदान किया, और हमारे लिए समर्पण भाव का आदर्श निर्माण किया। Jain Ecusa niemational FRPrivate &Personalise only. amelibrary.org Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • उनके पास ज्ञान और तप सर्वोत्कृष्ट था । सर्वोच्च लब्धियाँ उनको उपलब्ध थी । फिर भी सिने में (छाती में) अकडता की छाया नही थी । गर्दन टटार नहीं I T I थी । हीन व्यक्ति पर भी नजर में तुच्छता नहीं थी । तन में अहंकार नहीं था। मैं जानता हूँ या मैं या मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ एसी सहज नम्रता के रेशम धागे से गौतम स्वामी का विचार, वचन और व्यवहार सुगठित था । I • भगवान की आज्ञा गौतम स्वामी का जीवन था । आज्ञा के पालन में कोई प्रश्न नहीं करते थे । शंका की शंका से सैंकडों योजन दूर थे । अटूट श्रद्धा और अमिट प्रेम से आज्ञा को सहर्ष स्वीकार करते थे । • गौतम स्वामी के लिए कहा जाए की, भगवान को पूछे बिना पानी भी नहीं पीते थे। भगवान के चरण को जिन्होने अपना शरण बनाया था, ऐसे गौतम स्वामी में कभी भी मै भी कुछ कम नही हूँ, एसा भाव आँख में भी नहीं दिखता था । भगवान के लिए गौतम स्वामी को मात्र अथाग राग ही (स्नेह) नहीं था, किन्तु दिलोजान बहुमान था । तपस्वी तापस सन्यासियों के पास और छोटा निर्दोष बालक अतिमुक्त के पास उन्होने अपना नहीं किन्तु अपने गुरु भगवान महावीर के ही गुणगान व प्रशंसा की थी। Jain Education international For Private & Personal Only www.nlelibrary.org Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • गौतम स्वामी स्वंय अनेक शिष्यों के गुरु थे, फिर भी भगवान के पास अंतिम श्वास तक विनम्र शिष्य बनकर रहे थे। अपने को जब भी कुछ जिज्ञासा होती थी, तत्व का निर्णय करने का अवसर आता था, या दूसरों पर उपकार करने का प्रसंग आता था तब वह भगवान के पास पहुँच जाते थे। आदाक्षिणा करके भक्ति भाव से परमात्मा को वंदन करके हाथ जोडकर, विनम्र बनकर, समुचित समांतर स्थान ग्रहण करके, अहोभाव पूर्वक समाधान स्वीकार करते थे। • गौतम स्वामी सादाई पूर्ण जवीन के धारक थे, खुद गुरु होते हुए भी गोचरी लेने जाते थे, और किसी को प्रतिबोध करने भी जाते थे। पूर्व के भव में भी इनका परोपकार प्रसिद्ध था। जब वे जलाशय में मत्स्य बने थे। तब पूर्व परिचित श्रेष्ठि का जहाज उस जलाशय । में तुफान के कारण टूट गया। जीव बचाने को प्रेष्ठि पानी में इधर उधर तडपने लगी, तो इस मत्स्य ने श्रेष्ठि को अपनी पीठ पर । बिठाकर बचाया था। • गौतम स्वामी स्नेह की सरिता बहाने वाले थे। शिष्य संपत्ति और सत्ता के स्वामी थे, सहायक गुण वाले थे, सौजन्य स्वभाव वाले थे, सरलता, सहनशीलता, शरणस्वीकार, सत्यस्वीकार, स्वमान शुन्यता, lain Education Personal use only jainelibrary.org Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संख्यातित सिद्धियों के स्वामी थे । सिद्धांत रक्षा, समर्पण भाव, शोक से सर्वज्ञता के शिखर पर पहुँचने वाले, महामहिम प्रतिभासंपन्न, युगपुरूष, युगद्रष्टा आदि अनेक गुणाभिराम जीवन के धनी थे । फिर भी परम विनयी थे । • गौतम स्वामी स्वाध्यायवीर, ध्यानवीर, तपवीर, नरवीर, ज्ञानवीर, शूरवीर एवं जीवनवीर थे । वे प्रसन्न - प्रशांत सीधे, सरल तपस्वी, तेजस्वी, गंभीर, नीरभिमानी और मनमोहक मुद्रावाले थे । • अनेकानेक गुण पुर्ण, सविशेष, उदात्त, उत्तुंग और उत्तम कल्पना अगर हम किसि के लिए कर सकते है तो, निश्चित रूप से समझना चाहिए की कल्पना सृष्टि के पूर्ण एवं पुण्यवान पुरूष दूसरें कोई नहीं हो सकते है, सिवाय एकमेव, अद्धितिय, अनन्य और अनुपम सर्वांगसंपूर्ण, सर्वगुण संपन्न श्री गुरू गौतम स्वामी । । आँखो में करूणा, झिलमिल प्रेम के क्षीर समुद्र, ललाट में सौसौ सूर्य के तेज को भी शरमावे ऐसा तेज, चेहरे पर चाँदनी से अधिक शीतलता, होठों पे माधूर्य की सरगम, गति में लय, स्थिरता में शांति का गुंजारव, वाणी में निर्मल झरणे का निनाद, उग्र तपस्वी, उग्र विहारी, घोर ब्रह्मचारी ऐसे गुरू गौतम स्वामी का ध्यान प्रत्येक ब्रह्ममुर्हत में करना प्रत्यक के लिए अत्यंत चमत्कारिक, लाभदायक Jain Education National For Private & Perta www falorary.org Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनता है। • अ से ज्ञ तक के अक्षर द्वारा अंतःमुहूर्त में द्वादशांगी की रचना करने की शक्ति होते हए भी अपने आपको अज्ञ समझना ये भी एक कला है, ५०,००० शिष्यों के स्वामी होते हुए भी अपने जात को दासानुदास समझना वो भी एक कला है, हजारों आत्मा के त्रिकाल विषयक, संशय को पल भर में छेदन करने का अमाप सामर्थ्य होते हुए भी अज्ञान की तरह संशय पूछते रहना ये भी एक कला है, स्वंय सेव्य होते हुए भी रात दिन सेवा करते रहना ये भी एक कला है, गुरू होते हुए भी हल्के फूल की तरह रहना ये भी एक कला है, प्रकृट विद्वान होते हुए भी निरभीमान रहना ये भी एक कला है, ज्ञानी होते हुए भी विनीत बन के रहना ये भी एक कला है, ये सभी गौतम स्वामी की आंतरलब्धियाँ ही बाह्यलब्धियों की जन्मदात्री थी । ऐसी कला हमारे अंदर कब आयेगी? गौतम स्वामी और आनन्द धावक • भगवान महावीर का प्रथम श्रावक था “आनन्द" । आनन्द ने भगवान के पास श्रावक के १२ व्रत अंगीकार किये । वह कट्टर श्रमणोपासक था । क्रमशः उसने श्रावक की ११ प्रतिमाओ की Jain Education inational For Private & Personal use onl augelio any org Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आराधना की, और पौषधशाला में ध्यान में अवस्थित हो गया। कर्मों की निर्मलता और क्षयोपशम में उसे अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। वह पूर्व - पश्चिम - दक्षिण दिशा में ५००-५०० योजन पर्यंत लवण समुद्र का क्षेत्र तथा उत्तम में हिमवान वर्षधर पर्वत का क्षेत्र देखने - जानने लगा। ऊर्ध्व में प्रथम देवलोक सौधर्मकल्प तथा अधोदिशा में प्रथम नरक भूमि रत्नप्रभा में ८४,००० वर्ष की स्थितियुक्त लोलुपाच्युत नामक नरक तक देखने, जानने लगा। भगवान महावीर गणधर गौतम स्वामी और मुनिसमुदाय के साथ वाणिज्यग्राम पधारे । गुरू गौतम गोचरी के लिए जब नगर में गये, तो आनंद के अवधिज्ञान की लोकवार्त सुनी । गौतम आनन्द के घर गये । आनंद तपस्या से कृश व उठने में असमर्थ हो गया था। उसने हाथ जोडकर गौतम से कहा - "भंते ! आप मेरे निकट आने की - कृपा करे, ताकि में आपके चरणों में वंदन कर सकूँ।" गौतम आनंद के पास जाते हैं। अति विनीतभाव से आनन्द गौतम को वन्दन करता है। आनंद ने हाथ जोडकर कहा - "भंते ! क्या श्रावक को । अवधिज्ञान हो सकता है ?" गौतम ने कहा-हो सकता है। आनंद - प्रभो ! मैं चारो दिशाओं में ५००-५०० योजन, ऊर्ध्व Jain Education national library.org Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में प्रथम स्वर्ग तथा अधो दिशा में प्रथम नरक तक देख सकता हुँ । गौतम - “आनंद ! श्रावक को इतना विशाल अवधिज्ञान नहीं हो सकता । तुम इस का प्रायश्चित करो।" आनंद - "भगवान ! क्या जिनशासन में सत्यकथन करने वाले को प्रायश्चित करना होता है।" या मिथ्यावचनी को ? तुरंत गौतम स्वामीने कहा है आनंद ! असत्यवचन वालेंको ही प्रायश्चित करना होता है। आनंद - "तो भंते ! प्रायश्चित्त आप ही कीजिए। मैने तो सत्य कहा है।" विषण्ण मन से गौतम सीधे भगवान महावीर के पास पहुँचते है। सभी बातें विस्तार से कर गौतम भगवान से पूछते हैं । भंते ! क्या सच्चा है ? क्या मूझे ही मिथ्याकथन के लिए यथोचित प्रायश्चित - प्रतिक्रमण (आत्म) निंदा, गर्हा, निवृत्ति, अकारणना विशुद्धि, एवं तद्नुरुप तपः क्रिया करने चाहिए या आनन्द श्रावक को?" भगवान ने उत्तर दिया गौतम आनन्द सच्चा है । उसे उसके Jain Education Interational For Private & Personal use only Belibrary.org Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथनानुसार अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है । तुम जाओ, और आनन्द से क्षमा माँगकर आओ।" ___ “तहत्ति ।” कहकर गौतम द्रुतगति से आनन्द के घर जाते है, और अत्यंत नम्रता व प्रयश्चित पूर्वक मिच्छा मि दुक्कडं देते है। आनंद गद्गद् हो जाता है । यह थी गौतम की महानता और निष्कलुषता। एक मात्र महावीर के प्रति भक्तिराग स्नेहराग के अतिरिक्त उनकी महान आत्मा निर्मला एवं पारदर्शी स्फटिका की तरह पवित्र थी। गौतम स्वामी का जन्म, माता - पिता एवं कुटुम्ब मगध देश, गोब्बर गाँव, वेदादी पारंगत वसुभूति ब्राह्मण के घर में पृथ्वी देवी की कुक्षि से इन्द्रभूति नामक एक पूत्र का जन्म हुआ। गौत्र गौतम था । इसलिए दीक्षा के बाद इन्द्रभूति गौतम के नाम से प्रसिद्ध हुए । गौतम स्वामी का जन्म ज्येष्ठा नक्षत्र में हुआ था । राशि वृश्चिक थी। वज्रऋषभनाराच संघयण और समचतुरस्त्र संस्थान के धारक श्री इन्द्रभूतिजी को अग्निभूति और वायूभूति नाम के दो छोटे भाई थे। वह व्याकरण न्याय, काव्य, अलंकार, पुराण, उपनिषद्, वेद आदि स्वधर्म शास्त्र के पारंगत बने थे। तीनों भाई ५००-५०० शिष्यों को पढाते थे। Jain Education Interional Private Pe Only arelibrary.org Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे पंडित होने पर भी सम्यग् दर्शन के अभाव से वह सच्चे ज्ञानी नहीं बन सके थे, क्यों कि शुद्ध श्रद्धा युक्त ज्ञान ही सच्चा कहलाता है, और वह उनके पास नहीं था । * प्रभू वीर का समागम और दीक्षा श्री इन्द्रभूतिजी ५० वर्ष की उम्र तक मिथ्यात्व में रहे। जब प्रभु वीर को केवलज्ञान होने पर तीर्थ स्थापन प्रसंग हेतु श्री इन्द्रभूति आदि ११ ब्राह्मणों को गणधर पद के योग्य समझकर प्रभु विहार करके मध्यम पापा (अपापा) नगरी के महसेन नाम के उद्यान में पधारे, वहाँ समवसरण में बैठकर प्रभु देशना देते थे, और नगरमें इन्द्रभूति आदी ब्राह्मणों यज्ञ क्रिया कर रहे थे । तब इन्द्रभूति को आकाश मार्ग से आते देवोके निमित्त से सर्वज्ञ श्री प्रभु वीरका परिचय हुआ। जब वें प्रभुके पास चर्चा करने हेतु पहुँचे तब प्रभु ने सामने से कहाँ " है इन्द्रभूति ! तुम्हे जीव है या नहीं इस बात का संशय हैं?" इस प्रकार प्रभु का वचन सुनकर इन्द्रभूति को आश्चर्य के साथ प्रभु की सर्वज्ञता की प्रतीती हुई । प्रभूने उनकी शंका का उपयोग धर्म की अपेक्षा से सत्य अर्थ बताया और इन्द्रभूति का संदेह दूर होने सें वही पर ही अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ वैशाख सुदि ग्यारस के शुभ दिन संयम अंगीकृत किया (दुसरे भी दस ब्राह्मणों ने उसी Jain Education Lemational www.nelibrary.org Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन अपनी शंका दूर होने से इन्द्रभूतिजी की तरह दीक्षा ग्रहण की। ) * गणधर पद और चार ज्ञान की प्रप्ति भगवान के पास जाने मात्र से अपनी शंका का समाधान होने से इन्द्रभूति आदि ग्यारह पंडितों का मिथ्यात्व दूर हो गया, और सम्यक्त्व की प्राप्ति हुइ । प्रभुने उनके पर वासक्षेप किया उसी वक्त सम्यग्दर्शन के साथ चार ज्ञान (मति श्रुत, अवधि और मनोपयर्व ) के धारक बने, वहाँ पर उपन्नेइवा, विगमेड़वा, धुवेइवा इस त्रिपदी प्रभु ने उनको बताई और सभी ने इस त्रिपदी के माध्यम से द्वादशांगी की रचना कर दी । यहाँ पर यह समझना है कि प्रभु के वासक्षेप का प्रभाव कितना अलौकिक है कि अंतरमुहूर्त में मिथ्यात्व का नाश, सम्यग् दर्शन की प्रप्ति और द्वादशांगी की रचना की । I * तीर्थंकर पढ़ और गणधर पद का कारण * तीर्थंकर पद को छोड़कर बाकी के सर्वपदों में गणधर पद प्रधान है । अनेक विध ग्रंथो पर सरल टिका रचनेवाले और सरस्वती के वरदान प्राप्त आचार्य श्री मलयगिरिजी महाराज ने पंचसंग्रह में कहाँ है कि कषाय कि मात्रा जिनकी मंद हुई है और सम्यग् दर्शन युक्त ऐसे जो जीव “आश्चर्य है कि महादिव्य श्री तीर्थंकर का धर्मरुप Jain Education Inter Tonal For Private & Personal send www. library.org Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीपक की हाजरी होते हुए भी मोहरुप तिमिर से ढके हुए नेत्र वाले बेचारे संसारी जीव विषय कषाय आदि काँटाओ से भर इस संसार में भटकते है।" ऐसी भावदया से सर्वजीवों का उद्धार करने की भावना से सवी जीव करुं शासन रसी का चिंतन करते है और प्रयत्न करते है । वह आत्मा तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन करते है । तथा स्वजन वर्ग का उद्धार करने की भावना से भावित आत्मा गणधर पद को प्राप्त करती है। महान पुण्यशाली जीव ही ऐसी स्थिति को पा सकते है। उनकी रुप संपदा भी अन्य जीवों से विशिष्ट होती है। यावत् आहारक शरीर के रुप सौंदर्य से भी गणधर देवों का रुप अधिक होता है। गौतम स्वामी को केवलज्ञान प्राप्ति की शंका का प्रसंग 5 एक बार पृष्ठ चंपानगर के शाल और महाशाल नाम के राजपूत्रों ने प्रभु की देशना वैराग्य से पाकर अपना भाणजा गांगिल को राज्य सौंप कर दीक्षा ग्रहण की। वह ११ अंग का अध्ययन करके गीतार्थ बने । बाद में गांगिलकुमार आदि को प्रतिबोध करने हेतु प्रभु की आज्ञा से गौतम स्वामी के साथ दोनो (शालमहाशाल) पृष्ठ चंपानगरी में गये । वहाँ गांगिल राजा ने गणधर b ernational Private & Personale Only jainelibrary.org Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गौतम स्वामी की देशना सुन कर वैराग्य वासित बनकर अपने पूत्र को राज्य देकर माता-पिता के साथ गौतम स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण की। अनंतर सपरिवार गौतम स्वामी प्रभु वीर के पास आ रहे थे तब रास्ते में शाल-महाशाल को अपने बहन और जीजाजी आदि के गुणों की अनुमोदना करते क्षपक श्रेणी में केवलज्ञान हुआ। इस प्रसंग की जानकारी जब भगवान के पास आने के बाद श्री गौतमस्वामी को मिली। तब उनके मन में प्रश्न उठा की क्या मुझे केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी ?" तब भगवान ने कहा, है गौतम ! जो भव्य जीव स्वलब्धि से अष्टापद पर्वत पर जाकर जिनेश्वर देवों को वंदन करता है वह आत्मा उसी भव में सिद्धपद को प्राप्त करती है । यह सुनकर गौतम स्वामी प्रभु की आज्ञा लेकर चारण लब्धि से हवा की गति से सूर्य किरण पकडकर अष्टापद पर्वत पर पहुँच कर तीर्थ वंदना की। बाद में अशोक वृक्ष की छाया में बैठकर वैश्रमण आदि देवों को संसार की विचित्रता से गर्भित देशना दी। उस देशना में वैश्रमण को शंकित जानकर पुण्डरिक और कंडरिक का द्रष्टांत सुनाकर उसे निःसंदेह बनाया । अष्टापद पर्वत से नीचे उतरते समय एक उपवास वाले ५००, दो उपवास वाले ५००, तीन उपवास वाले ५०० इस प्रकार कुल १५०० तापसों को प्रतिबोध कर जैन दीक्षा देकर अक्षीण Jaln Education Internat Jain Education Intema on SoEFUSE Lainelibor Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महानसी लब्धि के प्रभाव से थोडी खीर होते हुए भी सभी तापसों को पारणा कराके संतुष्ट किया। ५०० तापसों को खीर खाते खाते, ५०० को प्रभु का प्रातीहार्यादि देखते देखते, और ५०० को भगवान के दर्शन होते ही केवलज्ञान की प्राप्ति हो गयी इस बात की गौतम स्वामी को जानकारी न होने से उन्होने १५०० तापसों को कहा कि प्रभू को वंदन करो, तब महावी देव ने कहाँ है गौतम ! यह सभी केवलज्ञानी है इसलिए वंदन करने का नहीं कहा जाता। यह सुनकर तुरंत गौतम स्वामी ने उन १५०० केवलज्ञानियों से क्षमा माँगी। इस प्रसंग से फिर गौतम स्वामी के मन में अपना मोक्ष होगा या नही ऐसी शंका हुई । तब प्रभु ने कहा हे गौतम ! तू चिंता मत कर, मेरे पर तेरा चिरकाल से स्नेह सम्बन्ध है । स्नेहराग दूर होने से तुं वितरागी बनेगा, और आगे जाकर हम दोनो समान बनेंगे। यह सुनकर गौतम स्वामी को शांति हुई। प्रभु वीर का निर्वाण और गौतम स्वामी को गडककेवलज्ञान स्वनिर्वाण समय नजदिक में जानकर महावीर देव ने गौतम का मूज पर अत्यंत राग है, इसलिए मूजसे दूर होंगे तो ही उसे केवलज्ञान Jain Educatie Personal se Only wajainelibrary.org Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होगा, इस प्रकार विचार कर श्री गौतम को नजदिक के गाँव में, देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध करने को भेज दिये थे। वहाँ से जब गौतम स्वामी वापस प्रभु के पास आ रहे थे तब रास्ते में ही देवो के कथन से, प्रभु महावीर के निर्वाण का समाचार मिला । यह समाचार मिलते ही असह्य खेद के साथ स्तब्ध बनकर व्यथित हृदय से, महावीर.... महावीर.... पुकारकर फुट फुट कर रोने लगे। महावीर में से वीर वीर शब्द का सतत उच्चारण करते हुए प्रभु का गुण स्मरण करने लगे। कल्पांत और विलाप करते करते वीर शब्द में से वी और र अलग होने लगे। उसमें भी वी शब्द से प्रभु की वितरागता में अपने मन को स्थिर करते ही परम गुरु भक्त, परम विनयी परम भुक्तिगुण युक्त परम लब्धिनिधान श्री गौतम स्वामी को प्रभू महावीर के वियोग की वेदना में से, नयी राह मिली और रागदृष्टि का पर्दा हट गया, आत्माशुद्धि का अमृत प्रकट हुआ और जीवन में केवलज्ञान का दिव्य प्रकाश प्रगट हुआ। अनशन और निर्वाण की प्राप्ति केवलज्ञान की प्रप्ति के बाद १२ वर्ष तक इस पृथ्वी तल पर विचरण करके, अनेक आत्माओं को धर्म में स्थिर करके, गौतम स्वामी अपने अंतिम समय पर श्री राजगृह नगर के बाहर वैभार गिरी Jain Education deras aorg Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्वत पर आये और वहाँ पर एक महिने के उपवास के साथ पादपोगमन अनशन का स्वीकार करके रहे। श्री सुधर्मा स्वामी को गण सौंप कर जीवन की कुल आयु ९२ वर्ष पूर्ण करके ४ अधाती कर्म का क्षय करके अक्षय, अव्याबाध, सुःखपूर्ण मुक्ति पद को प्राप्त किया। <> गणधर गौतम स्वामी महाराज >> ग : गणधर श्री गौतम स्वामी महाराज को अनंत वंदन।। ण : णमोकार महामन्त्राधिराज, है भवोदधि जहाज । ध : धर्म करणी निरंतर करे, भवसागर से शीघ्र तरे। २ : रत्नत्रयी - तत्वत्रयी है, अलौकिक व मनोहारी । श्री : श्री जिनशासन की शान है.मक्तिनिलय की मिशाल। गौ : गौतम नाम में है लब्धि, पावे शीघ्र ऋद्धि-समृद्धि । त : तन मन वचन को स्थिर कर, नित्य जपो नवकार । म : महान मानव जन्म पाकर, शीघ्र बनना है निराकार। स्वा : स्वामी-सेवक का सम्बन्ध है, अनादि और अनन्त । मू : मीत ध्यान रखो एक बात, जिनधर्म चलेगा ही साथ । नगर in Education inational Perse n Soww.jainelibrary.org Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ: भगवान श्री महावीरदेव के अनन्य विनयी थे परमशिष्या ग : गणधर पदवी है महान, त्रिपदी रचना से बने अमर । वा : वाणी विनय है विवेक-विचार, वितराग से जयकार। (न न : नवकार से भवपार, श्री जिनेश्वरदेव एक आधार। जह को : कोटि जन्म के पुण्य से मिलता है मनुष्य अवतार । न : न राग - न द्वेष, न कलेश - न कंकाश, यही मोक्ष आवास । म : मन को जो साध लेता है, वो होता शीघ्र भव से मुक्त। न : नमन हो वीर को, दीपवली की महान संध्या में। हो : हो गौतम स्वामी जैसा विनय, मुक्तिप्रेम के जीवन में। श्री भगवती सत्र के प्रथम शतक में प्रथम उदेशा के सातवें सूत्र में श्री गौतम स्वामी के व्यक्तित्व को भवरह विशेषणो से निरूपित किया है। १) सप्त हस्तोच्छ्रेय : सात हाथ की ऊँचाई वाले। २) समचतुरस्त्रसंस्थानसंस्थित : प्रमाण से पूर्ण मनोहर अंगप्रत्यंग वाले यानी की पद्मासन अवस्था में बैठे हुए हो तब दोनो घूटने का अंतर तथा आसन और ललाट के ऊपर के भाग का अंतर, बाया a n tenational For Private & Personal use only , Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और दाया बाजू के कंधों का अंतर और दाहिने बाजु के घूटने का अंतर समान हो वैसे । ३) वज्रऋषभनाराचसंहनन : मर्कट बंध से बंधी हुई दो हड्डीयों पर चमडे का पट्टा और उसके ऊपर किली लगायी हुई हो वैसे अस्थि बंध वाले। ४) कनकपुलकनिकषपद्मगौर : कष पट्टक पर की हुई सुवर्ण की रेखा जैसी कांतिमान तथा कमल के केसर जैसी गौर शरीर की तेजस्वीता थी। ५) उग्रतपा : सामान्य मानव जिस तप करने का विचार भी न कर सके ऐसे उग्रतप को करनेवाले। ६) दीसतपा : कर्म के धन जंगल को जलाने में समर्थ जाज्यवल्यमान अग्नि जैसे धर्म-ध्यान आदि तप को करनेवाले। ७) तप्ततपा : तप के आचरण से कर्म के समुह को एवं आत्मा को तपाने वाले। ८) महातपा : आशंसा (तप के फल की इच्छा) आदि दोषों से रहित और इसलिए प्रशंत कर सके ऐसे तप को करनेवाले। Plantayation internation jainelibrary.org Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९) भीम : उग्रतप करने के कारण अल्पसत्व वाले पासत्था आदि शिथिलाचारी साधुओ के लिए भयानक। NEFFE १०) घोर : परिषह को सहन करने में तथा इन्द्रियों का दमन करने में समर्थ । '११) घोरगुण : साधरण मानवों को आचरण करने को मुश्किल ऐसे मूल गुणदिक को धारण करने वाले । १२) धोरतपस्वी : धोर तप को करनेवाले १३) धोरब्रह्मचर्यवासी : अल्पसत्व वाले जीवें से जिसका आचरण करना अत्यंत कठिन है वैसा उत्कृष्ट ब्रह्मचर्य गुण में वास करनेवाले। १४) उच्छढशरीर : शरीर की सेवा शुश्रूषा नहीं करने के कारण मानों, की शरीर का त्याग ही किया हो वैसे। १५) संक्षिप्त विपुलतेजोलेश्य : शरिर के आंतरिक भाग में रहने से संक्षिप्त और अनेक योजन प्रमाण क्षेत्र में रही हुई चीज, वस्तु, पदार्थ को जलाने में समर्थ होने से विपुल ऐसी तेजोलेश्या को धारण करनेवाले। १६) चतुर्दशपूर्वी :चौदह पूर्वो का ज्ञान वाले, अर्थात् श्रुतकेवल। Jain Education Interade Prveersonalise jainelibra org Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७) चतुर्ज्ञानोपगत : मति श्रुत अवधि और मनः पर्यव-इन चार ज्ञान को धारण करनेवाले। कमाली १८) सर्वाक्षरसन्निपाती : सर्वअक्षर का संयोग जिनके ज्ञान का विषय भूत है, यानि की अक्षरों के संयोग से कोई शब्द एसा नहीं है कि जिसका ज्ञान उनको न हो । मतलब सुनने को पसंद होवे ऐसे प्रकार के अक्षरों को निरंतर बोलनेवाले। इस प्रकार गुरु गौतम स्वामीजी का जीवन चरित्र बहुविध विशिष्ट बातों से सभर और अतिप्रेरक है । जिनको स्वजीवन में सबोध प्राप्त करना हो उनके लिए तो अखुट खजाना स्वरुप है। श्री गौतम स्वामी की आराधना तप जप आदि से करने के साथ साथ श्री संघ को सदैव सर्वप्रकार से ज्ञाना दि का दान और बाह्य सर्व-प्रकार की सहाय, भक्ति करते रहना यह गौतम पद की उपासना है। गौतम स्वामी महावीर प्रभु के प्रथम गणधर थे, नाम से इन्द्रभूति गणधर है किन्तु गौतम पद से (गोत्र से) प्रसिद्ध हुए, उसमे कारण विशिष्ट पूण्य युक्त गणधर पणारुप गौतम गणधर पणा समझना चाहिए। * पुरुषादाणीय तीर्थंकर क्वचित होते है । प्रत्येक चोबीस में नहीं होते है ।जैसे की इस चौबीसीमें पार्श्वनाथप्रभु उसी प्रकार गौतम स्वामी जैसे गणधर भी क्वचित ही होते है इसलिए तो, १४५२ www.laneleorg Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणधरों में सिर्फ एक ही गौतम स्वामी का नाम विशेष रुप से प्रसिद्ध हुआ है। .वंदना... वंदना... वंदना.... * : महापुरुष गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : पुण्यपुरुष गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : गुणसम्राट् साधुपुरष गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : लावण्य पुरुष गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : विविध रुप स्वरुप के दर्शन पुरुष गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : परमार्थ प्रकाशक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : विज्ञान विशिष्ट सूर्य पुरुष श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : भवभीरु के बांधव श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : भक्ति के भागीरथी भव्य पुरुष श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : अप्रमत्त योगी पुरुष श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : समकित सम्राट शुद्ध पुरुष श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : निद्रा - निंदा के विजेता बुद्ध पुरुष श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। ज मिनक national , Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * : वीर विनेय विशुद्ध पुरुष श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : आगम गंगा के उद्गमक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : आर्य प्रवर पुरुष श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । *: लब्ध सरस्वती कंठाभरण श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : कैवल्य - लक्ष्मी के दानवीर श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : कामधेनु स्वरुप श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : कल्पवृक्ष स्वरुप श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। *: महामणि चिंतामणि स्वरुप श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। *: मनोवांछिंत पूरक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। *: उज्ज्वळ तनमन के धारक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। *: सर्वारिष्ट प्रणाशक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : सर्वाभिष्टार्थदायक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : अष्टमहासिद्धिप्रदायक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदन। *: अनंत चतुष्ट धारक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। *: सर्वलब्धि संपन्न श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। Jair Education national ivate Persona jainelibrary.org Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * : वसुभूति-पृथ्वीनंदन श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : श्री सरस्वती देवी, श्री त्रिभुवन स्वामीनी देवी,श्रीश्रीदेवी, यक्षराजगणि पिटक चौसठ इन्द्र-चौबीसयक्ष-चौबीसयक्षीणीसोलह विद्यादेवी-संपूजिताय श्रीगौतम स्वामी को हमारी वंदना। *-: संकट विदारक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। *: गुणगणाधर श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : वादिविजेता श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : दिग्गजविद्वान् श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। *: नित्यछट्ठोपवासी श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : जगचिन्तामणि श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। *: प्रौढप्रतापी श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : मंत्रतंत्र यंत्र केन्द्रवर्ति श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : सर्वांग संपूर्ण श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : सर्वगुण संपन्न श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। * : वचनसिद्ध महापुरुष श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना। Jain Education Interesa Forrivate & Personal use only ww. ainelibrary.org Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : : तप त्याग- तितिक्षा की त्रिमूर्ति श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । :: अनुत्तरज्ञान दर्शनधारक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । * : श्री वीर पट्टांबर भास्कर श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । : : सूरिमंत्र मध्यागत श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । + : निर्मल उपकार वृत्ति संपन्न श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । + : परम मंगल स्वरुप श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । + : ऋषिमंडल स्तोत्र कारक श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । + : कलिकाल कल्पतरु श्री गौतम स्वामी को हमारी वंदना । अरिहंत वंदनावली १. माताने हर्ष जे चौद महास्वप्नो थकी निज-मातने हरखावता, वली गर्भमांहि ज्ञानत्रयने गोपवी अवधारता, ने जन्मतां पहेला ज चोसठ इन्द्र जेने वंदता, एवा प्रभु अरिहंतने पंचांग भावे हू नमुं.... ओवा. १ e Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * २. जन्म कल्याणक *नमा महायोगना साम्राज्यमा जे गर्भमा उल्लासता, ने जन्मता त्रणलोकमां महासूर्य सम परकाशता, जे जन्म कल्याणक वडे सौ जीवने सुख अर्पता,.. जेवा. २ *३. जन्मोत्सव * छप्पन दिगकुमारी तणी सेवा सुभावे पामता देवेन्द्र करसंपुट महीं, धारी जगत हरखावता मेरु शिखर सिंहास ने जे नाथ जगना शोभता,... ओवा. ३ कुसुमांजलिथी सुरअसुर जे, भव्य जिनने पूजता, क्षीरोदधिना न्हवणजलथी देव जेने सिंचता वली देवदुंदुभि नाद गजवी देवताओ रीझता, ओवा. ४ मधमध थता गोशीर्ष चंदनथी विलेपन पामता देवेन्द्र दैवी पुष्पनी माळा गळे आरोपता कुंडल कडां मणिमय चमकतां, हार मुकूटे शोभता. ने श्रेष्ठ वेणु मोरली वीणा मृदंगतणा ध्वनि वाजिंत्र ताले नृत्य करती किन्नरीओ स्वर्गनी अवा.५ emational For Private & Personal use only www.janelarong Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवा. ६ अवा. ७ हर्षभरी देवांगनाओ नमन करती लळी लळी, जयनाद करतां देवताओ हर्षना अतिरेकमां पधरामणी करता जनेताना महाप्रसादमां जे इन्द्रपूरित वरसुधाने चूसता अंगुष्ठमां, * अतिशयवंत प्रभु * आहार ने निहार जेना छे अगोचर चक्षुथी प्रस्वेद व्याधि मेल जेना अंगने स्पर्शे नही स्वर्धेनु दुग्धसभा रुधिरने मांस जेनां तन मही, मंदार पारिजात सौरभ श्वास ने उच्छवासमां ने छत्र चामर जयपताका स्तंभ जव करपादमां पूरा सहस्त्र विशेष अष्टक लक्षणो ज्यां शोभतां देवांगनाओ पांच आज्ञा इन्द्रनी सन्मानती पांचे बनी धात्री दिले कृतकृत्यता अनुभावती वली बालक्रीडा देवगणना कुंवरो संगे थती ओवा. ८ ओवा. ९ ओवा. १० (११४) als Educ ational tvate Personals Only jainelibrary.org Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अदभूत गुणो * जे बाल्य, वयमां प्रौढ, ज्ञाने मुग्ध करतां लोकने निशा सोले कला विज्ञान केरा सार ने अवधारीने शिण त्रण लोकमां विस्मय, समा गुणरूप यौवनयुक्त जे, ओवा११ * संसारथी निर्लेप * मैथुन परिषहथी रहित जे नदता निजभावमांकि जे भोगकर्म निवारवा विवाह कंकण धारताला ने ब्रह्मचर्य तणो जगाव्यो नाद जेणे विश्वमां, अवा. १२ राज्यावस्था ** मूर्छा नथी पाम्या मनुजना पांच भेदे भोगमां उत्कृष्ट जेनी राज्य नीतिथी प्रजा सुखचेनमां वली शुद्ध अध्यवसायथी जे लीन छे निजभावमां, अवा.१३ पाम्या स्वयंसंबुद्ध पद जे सहजवर विरागवंत ने देव लोकान्तिक घणी भक्ति थकी करतां नमन जेने नमी कृतार्थ बनता चारगतिना जीवगण, ओवा. १४ Forte Person wwineriarary.org Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवा. १५ ओवा. १६ ** महादान * आवो पधारो इष्ट वस्तु पामवा नरनारीओ : ओ घोषणाथी अर्पता सांवत्सरिक महादानने ने छेदता दारिद्र सौनुं दानमां महाकल्पथी म * दीक्षा कल्याणक * दीक्षा तणो अभिषेक जेनो योजता इन्द्रो मली शिबिका स्वरुप विमानमा बिराजता भगवंतश्री अशोक पुन्नाग तिलक चंपावृक्ष शोभित वनमही श्री वज्रधर इन्द्रे रचेला भव्य आसन उपरे बेसी अलंकारो त्यजे दीक्षा समय भगवंत जे ने पंचमुष्टि लोच करता केश विभु निज करवडे, लोकाग्रगत भगवंत सर्वे सिद्धने वंदन करे सावद्य सघला पाप योगोना करे पच्चक्खाणने जे ज्ञान-दर्शन ने महाचारित्र रत्नत्रयी ग्रहे, निर्मलविपुलमति मनःपर्यव ज्ञान सहेजे दीपता, जे पंचसमिति गुप्तित्रयनी रयणमाला धारता, अवा. १७ ओवा. १८ Jain Education ntemational . Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवा. १९ दशभेदथी जे श्रमण सुंदर धर्मनुं पालन करे, 1 ** आत्मविकास * पुष्कर कमलना पत्रनी भांति नही लेपाय जे ने जीवनी माफक अप्रतिहत वरगतिओ विचरे आकाशनी जेम निरालंबन गुण थकी जे ओपता, सेवा.२० ने अस्खलित वायु समूहनी जेम जे निर्बंध छे संगोपितांगोपांग जेना गुप्त इन्द्रिय देह छे निस्संगता विहंगशी जेनो अमूलख गुण छे, म अवा. २१ खड्गीतणा वरशृंग जेवा भावथी एकाकी जे भारंडपंखी सारिख गुणगान अप्रमत्त छे व्रतभार वहेता वर-वषभनी जेम जेह समर्थ छे, अवा. २२ कुंजरसमा शूरवीर जे छे, सिंहसम निर्भय वलीफ गंभीरता सागर सभी जेना हृदयने छे वरी जेना स्वभावे सौम्यता छे पूर्णिमाना चन्द्रनी, अवा. २३ आकाश भूषण सूर्य जेवा दीपता तपतेजथी वली पूरता दिगंतने करुणा उपेक्षा मैत्रीथी national www.al elibrary.org Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरखावता जे विश्वने मुदिता तणा संदेशथीं, अवा. २४ जे शरदऋतुना जलसमा निर्मल मनोभावो वडे उपकार काज विहार करता जे विभिन्न स्थलो विषे जेनी सहन शक्ति समीपे पृथ्वी पण झांखी पडे, अवा. २५ बहुपुण्यनो ज्यां उदय छे ओवा भविकजा द्वारने मामा पावन करे भगवंत निज तप छट्ठ अट्ठम पारणे स्वीकारता आहार बेंतालीस दोष विहीन जे, अवा. २६ उपवास मासखमण समा तप आकरां तपतां विभुमान विरासनादि आसने स्थिरता धरे जगना प्रभु बावीस परीषहने सहतां खुब जे अद्भूत विभु, अवा. २७ बाह्य अभ्यंतर बधा परिग्रह थकी जे मुक्त छे, प्रतिमावहन वली शुक्लध्याने जे सदाय निमग्न छे जे क्षपकश्रेणी प्राप्त करता मोहमल्ल विदारीने, अवा. २८ जे पूर्ण केवलज्ञान लोकालोकने अजवालतुं जेना महासामर्थ्य केरो पार को नव पामतुं से प्राप्त जेणे चारधाती कर्मने छेदी कर्यु, अवा. २९ Jain Education temational Personal se Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * भाव अरिहंत ** जे रजत सोनाने अनुपम रत्नना त्रण गढमही सुवर्ण नवपद्ममां पदकमलने स्थापन करी की चार दिशामुख चार चार सिंहासने जे शोभता, ओवा. ३० * समवसरणनी शोभा * ओवा. ३१ ज्यां छत्र पंदर उज्वला शोभी रह्या शिर उपरे ने देवदेवी रत्न चामर वींझता करद्वय वडे द्वादश गुणा वर देववृक्ष अशोकथी य पूजाय छे, महासुर्य सम तेजस्वी शोभे धर्मचक्र समीपमा भामंडले प्रभुपीठथी आभा प्रसारी दिगंतमां चोमेर जानु प्रमाण पुष्पो अर्ध्यजिनने अर्पता ज्यां देवदुंदुभि घोष गजवे घोषणा त्रणलोकमां त्रिभुवन तणा-स्वामी तणी सौओ सुणो शुभदेशना प्रतिबोध करता देव मानवने वली तिर्यचने, अवा. ३२ ओवा. ३३ Jain Education Interional Private Person n Weinert Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोकोपकार ज्यां भव्य जीवोना अविकसित खीलता प्रज्ञाकमल भगवंतवाणी दिव्यस्पर्शे दूरे थता मिथ्या वमल ने देवदानव भव्यमानव झंखता जेनुं शरण, जे बीज भूत गणाय छे त्रणपद चतुर्दशपूर्वना उपन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा महातत्वना अ दान सु श्रुतज्ञानना देनार त्रण जगनाथ जे, अ चौदपूर्वोना रचे सुत्र सुंदर सार्थ जे ने शिष्यगणने स्थापता गणधर पदे जगनाथ जे खोले खजानो गूढ मानव जातना हित करणे, तीर्थ स्थापना जे धर्मतीर्थंकर चतुर्विध संघ संस्थापना करे महातीर्थसम अ संघने सुर असुर सह वंदन करे Vale Personal Use Only ओवा ३४ एक 1-513 ओवा. ३५ ओवा. ३६ 永 www.minelin Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने सर्वजीवों भूत, प्राणी, सत्वशुं करुणा धरे, बाकी सेवा. ३७ जेने नमे छे इन्द्र वासुदेव ने बलभद्र सहु जेना चरणने चक्रवर्ती पूजता भावे बहु, वेमानवासी देवना संशय हण्या, ओवा. ३८ ओवा. ३९ जे छे प्रकाशक सौ पदार्थो जड तथा चैतन्यना वर शुक्ल-लेश्या तेरमे गुणस्थानके परमात्मा जे अंत आयुष्यकर्मनो करता परम उपकारथी, लोकाग्रभागे पहोंचवाने योग्य क्षेत्री जे बने जे सिद्धना सुख अर्पती अंतिम तपस्या जे करे जे चौदमा गुणस्थानके स्थिर प्राप्त शैलेशीकरण, ग सेवा. ४० हर्ष भरेला देवनिर्मित अंतिम समवसरणे जे शोभता अरिहंत परमात्मा जगत-घर आंगणे जे नामना संस्मरणथी विखराय वादल दुखना, EDIA सेवा. ४१ जे कर्मनो संयोग वळगेलो अनादि कालथी तेथीथया जे मुक्त पूरण सर्वथा सद्भावथी Jain Education Internal Forvate Perr o niy wwwselibrary.org Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवा. ४२ रममाण जे निजरुपमा सर्वजगनुं हित करे, जे नाथ औदारिक वली तैजस तथा कार्मण तनु ओ सर्वने छोडी अहिं पाम्या परमपद शाश्वतुं ने रागद्वेष जले भर्या संसार सागर जे तर्या, ओवा. ४३ शैलेशी करणे भाग त्रीजे शरीरना ओछा करी प्रदेश जीवना धन करी वली पुर्व ध्यान प्रयोगथी धनुष्यथी छूटेल बाण तणी परे शिवगति लही, अवा. ४४ ओवा. ४५ निर्विघ्न स्थिरने अचल, अक्षय सिद्धिगति ओ नामनु छे स्थान अव्याबाध ज्यांथी नही पुनः फरवापर्यु ओ स्थानने पाम्या अनंता ने वली जे पामशे, आस्त्रोत्रने प्राकृतगिरामां वर्णव्युं भक्तिबले अज्ञात ने प्राचीन महामना को मुनीश्वर बहुश्रुते पदपद महीं जेना महासामर्थ्यनो महिमा मले, जे नमस्कार स्वाध्यायमा प्रेक्षी हृदय गद्गद् बन्यु श्रीचंद्र नाच्यो ग्रंथ लेई महाभाव- शरण मल्युं ओवा. ४६ Jain Education nternational For Private Personal use only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीधी करावी अल्पभक्ति होंशनुं तरणुं फलयुं, अवा. ४७ जेना गुणोना सिंधुना बे बिंदु पण जाणुं नहि me पण एक श्रद्धा दिलमहिं के नाथ सम को छे नहि जाणा जेना सहारे क्रोड तरिया मुक्ति मुज निश्चय सहि, अवा.४८ जे नाथ छे त्रण भुवनना करूणा जगे जेनी वहे FE जेना प्रभावे विश्वमा सद्भावनी सरणी वहेगी आपे वचन श्रीचंद्र जगने ओज निश्चय तारशे, ओवा. ४९ प.पू.आ. विजय भुवनभानुसूरीश्वर तं वंदनावली रचयिता : श्रीचन्द्र धर्मचक्र तप प्रभावक आ. श्रीजगवल्लभसूरि म.सा. चिहुंगति विशे भमतो भविक मुज आतमा पावन थयो जेना दरस वंदन चरण सेवा थकी घट उमह्यो जोटो जडे ना जगविषे जस योगनो कलिमल हरो ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना शुभ स्थानथी शिवराज लेवा राजनगरे आवता श्रद्धाळु श्रावक भगत चीमन तात घर शोभवता ele m enternational For Private & Personal use only www.jaineisyong Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात्सल्यवंती जननी भुरि कुक्षिने अजवाळता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना ओगणीस सडसठ-साल चौत्रवदनी षष्ठी बहु भली मंगल प्रभाते सुर्य सम तव जन्मथी ज्योति मली लक्षण अनेरा पारणामां जोवता आंखो ठरी ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदन P.P दिनरात वधतु नूर गुरुवर आपनुं हितकारणु मुखडु तमारुं सहुजनोने पूण्यप्रद संभारण स्नेही स्वजनना लाडमां पण आत्मखोज करी रह्या ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना रत्नत्रयी कारक त्रीजा संभवजिनपनी आदरे बालत्वथी शुभ भक्तिभावे त्यां ज निज दिलडु ठरे पुण्यानुबंधी पुण्य परिमल प्रतिपले जे पामता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना 15PTO T संसारी सौ स्वजनोनी साथे वही रह्या व्यवहारमां Jain Educationternational 6 (१२४ 11 FT S २ ३ ४ ५ jainelibrary.org Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सी.ओ. सुधी अभ्यास करतां पण नहि अंधारमां सूरि प्रेम केरा पुण्ययोगेक्षण क्षणे जे जागता या ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना ६ शैशव कुमारदशा वीती आवी उभा यौवनविषे तो ये जरी उन्माद ना व्यामोहना मनडा विशे त्यागी विरागी प्रतिपळे सावध उदासीनता धरा की ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना - ७ इतिहास सर्जक पळ प्रतिक्षा पतिपले जे करी रह्या गृहवासनां पिंजर थकी उड्डान निज तलपी रह्या त्यां तो अचानक प्रेमगुरुनो पत्र सुस्वागत करे - ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना ८ निज बंधु 'पोपट' साथ कांतिलाल भानूदय थयो पहोंची परमगुरु प्रेमनां करकमलथी संयम ग्रह्यो ब धम्मेशूरा लई धर्मध्वजनें यज्ञ उत्तम आदरे व निस ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना ी ९ Jain Education Intel For Pra Us elibrary.org Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुवचनमां मन विलीन करीने गुरुवचन हियडे धरे । आदर अने बहुमानथी योगांग सेवनमां ठरे परमाद पळनो ना करे संयम विषे ऊजमाळता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना १० पुण्ये मळेली अखुट शक्ति गुरुकृपाथी सारता भक्ति विरक्ति ने विभक्ति मुकतिमां मन धारता सुख शैल्य छोडी जे अनादि आत्मजागरणे रमे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना मी ११ स्वाध्यायथी स्वाध्यामां जे गोचरी पण भूली जता रस गृद्धि विण आहार करता स्वाद ने विसरी जता आंबिल करी निज मित्र घरमां वसी सदा रस त्यागता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना १२ छ? तप करी जे न्याय भणता ने भणावे सर्वने ज्ञाने करी परिणती बरे ने जे हणे निज गर्वने जिम तननी तितिक्षा तप थकी करता वरे सात्विक दशा Jain Education national Use Only www.jainellorary.org Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना श्रुतज्ञान - चिंताज्ञान ने वळी भावनाज्ञाने जीवे नीत नीत नवा संवेग ने वैराग्यना पियूष पीवे दोषो थकी राखे भीती पण कष्ट थी जे ना बीवे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना शुद्धि वरे दर्शनतणी जिनभिक्तमां लंपट रही साथै रह्या प्रभु भजनमा माधुर्य ते पामे सही सुरि प्रेम प्रेमल वचनथी जस भक्ति ने अनुमोदता ओवा सूरीश्वर भुवनबानु चरणकज हो वंदना जे सर्वने संपद्कारी निर्दोष मिक्षा आचरे उत्कट विहारी पण छता शुद्धि चरणनी उच्चरे जयणा घरे जे चाल - बोल- विहार- शयने- आसने ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकाज हो वंदना शत उपर अड ओळी करी प्रभु वर्धमान तपोधनी आंतर बहि तप भेद बारस साधता गृद्धि हणी Jain, bocatiemational १३ १४ १५ १६ www.jariellbrary.org Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निज लक्षमा क्षति नाचरे परहित विषे पण ना मणा ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना १७ निर्वेद ने संवेगकर व्याख्यानथी विकसावता की भावूक हृदय कमले विषे वैराग्य ज्योत जगावता कि पडिबोधी दीक्षा आपता निज शिष्यपद दीपावता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना १८ गुर्जर-मराठा-कन्नड-तामिळनाडू मरुधर देशमा बंगाल यु.पी. बिहार, विचर्या, आप मध्यप्रदेशमा उपकार योगे भव्य भगतो भवथकी विमुख कीधा ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना . १९ जिनआणनां जयघोषकारी आपना ज्यां पग पडे। त्यां त्यां भाविकने आप श्रद्धा योग विपदो ना नडे पद्पद्म परिमल आपनी संताप ने संकट हरे : ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना जडवादना झेरी पवनथी युवकजन ऊगारवा Jain Educan ternational ate Persie s e Only Tww.jainelibrary.org Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खोली परब निज शिबिरनी सन्मार्ग पंथ कंडारवा क्रांति करी उज्ज्वल तमे बहु हित कर्या-युवजनतणा ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २१ जे शब्द-रुप-रस-गंधना अतिक्रम बधाये वर्जता वैराग्यरंगी जीवन ज्योते जे विरागी सर्जता ना द्वेष कदीये को उपर मैत्री घरे सौ जीव विषे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना नयनो थकी जस वही रही छे प्रेमनी निर्मल नदी जे स्नान करता ते विषे तस विखरती सघळी बदी जस पदकमलनी रज बधी रज कर्मनी झटपट हरे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना - २३ जे पळपळे पयगाम आपे प्रेरणा स्त्रोते वही जीवन गुण उपवन बनावो सर्वदा सावध रही भ्रमणा तजी निज मस्ती माणो ओम कही पडिबोधता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २४ Jain Education Internatii Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीतराग वीरना सकळ संघना हितचिंतक आप छो आश्रित मुनिगणना वळी हितकारी गुरु मा-बाप छो वात्सल्य सहुने एक सरखु दे सदा जागृत रही ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २५ नवगुप्ति धारे समिती पाळे पंच आचारे ठरे इंद्रिय दमे करणो जीते सुखशैल्यने निश्चेहरे चुरे कषायो चार ‘महव्वय' भार भावे जे वहे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २६ निर्दोषता नजरे चढे जस जीवन पंथ विचारता पापीतणा पण शिर झूके चिंतन विशे गुण धारता - कलिकाळमां सत्युगतणी ज्योतिर्धरा वरदायका ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना श्रुतसंगी चिंतनधार चित्ते जास खळखळ वही रही जेथी कलम कागळतणी दोस्ती अहोनिश बनी रही ग्रंथो परमतेजादि तात्विक ने कथाना रची रह्या । ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना २८ Jain Education national Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याक्षेप टाली अन्ययोगनो धर्मध्यानदशा वरी प्रतिक्रमण अवुं अजोड करता फरसता आतमधरी आलोचता निज दोषने बहु पुण्यपोष करी रह्यां ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना पजवी रह्यो जे सर्वने ते मोहने पजवी रह्यां ध्रुजी रह्या जे दुःखमां तस दोषने ध्रुजवी रह्यां कामी रह्या वळी कठिण कर्मनी मुक्तिने माणी रह्यां ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना प्रत्येक रक्तकणो सदा जिनवचन भावित आपना ने आप नसनसमां वसी निजहित परहित चिंतना पळ पळ सदा सावध रही निज आत्मशुद्धि साधता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना सूरिमंत्र ने महामंत्र जापे जापता सिद्धि वरे सुवास चुर्णनी क्षेपता विघ्नो निवारी कृति करे आशिष तणो परभाव अवो जेहथी सघळु बने ओवा सूरीश्वर भुवन भानु चरणकज हो वंदना Jain Education Interna २९ ३० ३१ ३२ brary.org Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेना चरणने सेवता भोगीजनो योगी थया त्यागी तपस्वी ज्ञानी ध्यानी ने गीतार्थ दशा वर्या शासन प्रबावक जास कमनीय कार्यनी गणना नही ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना पत्थरतणी पडिमा विषे परमात्मा प्रगटावता अंजन शलाका विधि करे तस दिव्य ज्योत जगावता ज्यां ज्यां प्रतिष्ठाओ करे त्या उन्नती स्हेजे थकी ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना उपधान उजमणा तीरथ यात्रा तणा संघो घणा अष्टापदादि पूजन मुख जिनभक्तिना ओच्छव घणा जलधर समा सान्निध्यमां चलचंचु भवि प्यासा हरे ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना संयम महा साम्राज्य धारक आपनी अविचल कथा वरदानकर सुरिप्रेमना वारस हरो मुज भव व्यथा भवोभव मळो भगवान तुम सेवकपणे सिद्धि दशा ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना ३६ an Educon laational elibrary.org Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छाधिपति पूज्यपाद गुरुदेव श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराजा For Private & Personal use only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ww. ainelibrary.org Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंधेरी श्री प्रविणयंत केशरीचंद वासा विलेपार्ला शा. मुलतानमल हीराचंदजी कोठारी अंधेरी शा. ओटरमल ल. वनेचंदजी कोठारी अंधेरी शा. गणेशमल भुताजी जोधावत शा. हिम्मतमल वरदीचंदजी कोठारी अंधेरी स्व. श्रीमती गुलाबबाई मीठालालजी खाटेर अंधरी। श) धनराज फोजमलजी तातेड अंधेरी शा, जोरुलालजी रतनचंदजी राठोड अंधेरी शा, रतनचंद कुंदनमलजी पुनीया अंधेरी शा. खेमराजजी नंदरामजी कोठारी अंधेरी अजितकुमार उमरावचंद ज्वेलर्स अंधेरी शा. वक्तावरमल पुखराजजी राणावत अधरी था पीसुलाल कुंदनमलजी हिगड अंधेरी श्रीमती लाछुबेन रतनशी गाला अंधेरी श्री थावरभाई हिरजीभाई रीटा अंधेरी पू.प. श्री जयसोम वि.म.की प्रेरणा से शा.सम्पतराज मुलचंदजी कावेडीया अंधेरी श्री दिनेश कुमार गफुरलाल शाह मलाड शा. गोडीवास धनरुपजी जोराजी वागरेचा अंधेरी श्रीमती अरुणाबेन कंपाणी श्री माणेकचंद उत्तमतचंद मास्टर अंधेरी श्रीमती कीर्तिबेन मोदी श्री शांतिलाल सकरचंद टोपीवाला अंधेरी स्व. ललीताबेन मोहनलाल शाह श्री रसिकलाल मणीलाल शाह अंधेरी ह.श्रीमती बिन्दुबेन बीपीनचंद्र शाह बुहार शा. चम्पालाल तुलसीदासजी श्रीश्रीमाल अंधेरी शा. मोतीलाल धेवरवंदजी अंधेरी श्री मणसीभाई कुंवरजी कारीआ अंधेरी श्री जयंतिलाल रमणलाल शाह अंधेरी अंधेरी जिज्ञा आर्ट-८७२८eev