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________________ काउसग्ग : इच्छाकारेण संदिसहभगवन् श्री गौतमलब्धि तप आराधनार्थं काउसग्ग करु ? इच्छं श्री गौतमलब्धि तप आराधनार्थं करेमि काउसग्गं, वंदणवत्तिआए ० अन्नत्थ कहके ११ लोगस्स संपूर्ण ४४ नवकार का काउसंग्ग करके उपर प्रगट लोगस्स कहे। खमासमणा का दोहा : वीरतणो गणधर वडो, श्री गौतम गणधार,अनंत अनंतलब्धिधरा, नमो नमो श्रीगुरुपाय. ध्यान : सोने के मेरुपर्वत के शिखर पर १ हजार पांखडी वाले सुर्वणकमल पर भगवान गौतमस्वामी विराजमान है, और ६४ इन्द्रो, १६ विद्यादेवी, २४ शासकरक्षक यक्ष, २४ शासनदेवी, गणिपीटक यक्षराज, लक्ष्मीदेवी, त्रिभुवनस्वामिनी देवी तथा सरस्वतीदेवी वगेरे श्री गौतमस्वामी को वंदन कर रहे है, ऐसा ध्यान जाप में करते रहे। भक्तामर स्तोत्र की ९०गाथा (१२ से २०) यै. शान्तराग-रुचिभिः परमाणुभिरत्वं, निर्मापितस्त्रिभुवनैक-ललाम-भूतः तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां; यत्ते समान-मपरं नहि रुपमस्ति ॥१२॥ वक्त्रं क्वतेसुर-नरोरग-नेत्र-हारि, निःशेष-निर्जित-जगत्रितयो-पमानम्; E ntemational For Private & Personal Use Only www.lainelibrary.org.
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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