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में प्रथम स्वर्ग तथा अधो दिशा में प्रथम नरक तक देख सकता हुँ ।
गौतम - “आनंद ! श्रावक को इतना विशाल अवधिज्ञान नहीं हो सकता । तुम इस का प्रायश्चित करो।"
आनंद - "भगवान ! क्या जिनशासन में सत्यकथन करने वाले को प्रायश्चित करना होता है।" या मिथ्यावचनी को ?
तुरंत गौतम स्वामीने कहा है आनंद ! असत्यवचन वालेंको ही प्रायश्चित करना होता है।
आनंद - "तो भंते ! प्रायश्चित्त आप ही कीजिए। मैने तो सत्य कहा है।"
विषण्ण मन से गौतम सीधे भगवान महावीर के पास पहुँचते है। सभी बातें विस्तार से कर गौतम भगवान से पूछते हैं । भंते ! क्या सच्चा है ? क्या मूझे ही मिथ्याकथन के लिए यथोचित प्रायश्चित - प्रतिक्रमण (आत्म) निंदा, गर्हा, निवृत्ति, अकारणना विशुद्धि, एवं तद्नुरुप तपः क्रिया करने चाहिए या आनन्द श्रावक को?"
भगवान ने उत्तर दिया गौतम आनन्द सच्चा है । उसे उसके
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