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________________ कथनानुसार अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है । तुम जाओ, और आनन्द से क्षमा माँगकर आओ।" ___ “तहत्ति ।” कहकर गौतम द्रुतगति से आनन्द के घर जाते है, और अत्यंत नम्रता व प्रयश्चित पूर्वक मिच्छा मि दुक्कडं देते है। आनंद गद्गद् हो जाता है । यह थी गौतम की महानता और निष्कलुषता। एक मात्र महावीर के प्रति भक्तिराग स्नेहराग के अतिरिक्त उनकी महान आत्मा निर्मला एवं पारदर्शी स्फटिका की तरह पवित्र थी। गौतम स्वामी का जन्म, माता - पिता एवं कुटुम्ब मगध देश, गोब्बर गाँव, वेदादी पारंगत वसुभूति ब्राह्मण के घर में पृथ्वी देवी की कुक्षि से इन्द्रभूति नामक एक पूत्र का जन्म हुआ। गौत्र गौतम था । इसलिए दीक्षा के बाद इन्द्रभूति गौतम के नाम से प्रसिद्ध हुए । गौतम स्वामी का जन्म ज्येष्ठा नक्षत्र में हुआ था । राशि वृश्चिक थी। वज्रऋषभनाराच संघयण और समचतुरस्त्र संस्थान के धारक श्री इन्द्रभूतिजी को अग्निभूति और वायूभूति नाम के दो छोटे भाई थे। वह व्याकरण न्याय, काव्य, अलंकार, पुराण, उपनिषद्, वेद आदि स्वधर्म शास्त्र के पारंगत बने थे। तीनों भाई ५००-५०० शिष्यों को पढाते थे। Jain Education Interional Private Pe Only arelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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