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> लब्धिं आपो, लब्धिं आपो
(राग - कोण भरे, कोण भर)
लब्धि आपो, लब्धि आपो, लब्धि आपोरे, गौतमस्वामी मने लब्धि आपो रे, लब्धिओ आपीने मारा काज सरो रे
गौतम.... रुटुं रळियामणु गौतम तारु नाम छे, मनने लोभावनारी लब्धिओ अनंत छे, हैये उतारी मारु श्रेय करो रे, या
गौतम.....१ वीर प्रभुना तमे गणधर वडेरा, कामधेनु, कल्पतरु । मणिथी अधिकेरा, कामित करोने मारा काम हरो रे,
गौतम....२ वाणी,त्रीभुवनस्वामीनी श्रीदेवी, गणिपीटक यक्षराज सेवी | नित मेवी, सेवक सुरनार सहकार्य करो रे,
गौतम.....३ मान गयुं तो तमे गणधर पद पाया, खेद थयो तो तमे केवल पद पाया, गुरु भक्ति तो बनी शिवविषेरे,
गौतम .....४
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