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चिंतामणि कर चडियुं आज, सरतरु सारे वंछित काज, कामकुंभ सो वसि हुओ ए। कामगवी पूरे मन कामी, अष्ट महासिद्धि आवे धामी सामी गोयम अणुसरो ए
॥५५॥ प्रवणाक्षर पहेलो पभणीजे, माया बीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमुखे (श्रीमती) शोभा संभवे ए। देवह धुर अरिहंत नमीजे, विनय पहु उवज्झाय थुणीजे, इणे मंत्रे गोयम नमो ए
॥५६॥ पुरपरवसतां कांइ करीजे, देश देशान्तर कांइ भमीजे, कवण काजे आयास करो! प्रह उठी गोयम समरी जे, काज सवि ततखिण सीझे, नवनिधि विलसे तास घरे
॥५७॥ चउदहसे बारोत्तर वरसे, गोयम गणधर केवळ दीवसे । मान खंभ नयर प्रभु पास पसाए, कीयो कवित उपगार परो।गा आदि ही मंगळ एह भणीजे, परव महोत्सव पहिलो लीजे, रिद्धि वृद्धि कल्याण करो
॥५८॥
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