________________
श्वेतांबर आम्नाय में साधु साध्वीजी और पोषार्थी श्रावक श्राविका रात सोने से पहले संथारा पोरिसीमे नमो खमासमणाणं गोयमाइणं, महामुणिणं शब्दो से गौतम स्वामी का नामस्मरण करते है। • गौतम स्वामी सिर्फ तपस्वी नहीं थे, महाज्ञानी भी थे। उनका तप ज्ञान से सुवासित था । या उनका ज्ञान तप से सुशोभित था। ज्ञान
और तप उनके जीवन में समरस बने थे। वेद कालिन चार वेद, छ:वेदांग, धर्मशास्त्र, पुराण, मीमांसा, न्यायशास्त्र आदि चौदह विद्या के इन्द्रभूति गौतम स्वामी मूर्धन्य विद्वान थे। उस समय वैदिक पंडितों में वह दिगविजयी थे। फिर भी जीव के अस्तित्व की शंका में थे। भगवान महावीर ने इस शंका का समाधान देकर इन्द्रभूति का जीवन परिवर्तन किया, मानो की उनका नया जन्म हुआ। भगवान के आप प्रथम शिष्य गौतम गणधर बने । द्वादशांगी की रचना करके समग्र जैन धर्म को उसमें समाविष्ट कर दिया। • गौतम स्वामी ने भगवान महावीर के जीवन कवन को आत्मसात् किया। आजीवन भगवान के सामने छोटे बालक की तरह रहकर
आत्मबलिदान किया, और हमारे लिए समर्पण भाव का आदर्श निर्माण किया।
Jain Ecusa
niemational
FRPrivate &Personalise only.
amelibrary.org