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________________ • उनके पास ज्ञान और तप सर्वोत्कृष्ट था । सर्वोच्च लब्धियाँ उनको उपलब्ध थी । फिर भी सिने में (छाती में) अकडता की छाया नही थी । गर्दन टटार नहीं I T I थी । हीन व्यक्ति पर भी नजर में तुच्छता नहीं थी । तन में अहंकार नहीं था। मैं जानता हूँ या मैं या मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ एसी सहज नम्रता के रेशम धागे से गौतम स्वामी का विचार, वचन और व्यवहार सुगठित था । I • भगवान की आज्ञा गौतम स्वामी का जीवन था । आज्ञा के पालन में कोई प्रश्न नहीं करते थे । शंका की शंका से सैंकडों योजन दूर थे । अटूट श्रद्धा और अमिट प्रेम से आज्ञा को सहर्ष स्वीकार करते थे । • गौतम स्वामी के लिए कहा जाए की, भगवान को पूछे बिना पानी भी नहीं पीते थे। भगवान के चरण को जिन्होने अपना शरण बनाया था, ऐसे गौतम स्वामी में कभी भी मै भी कुछ कम नही हूँ, एसा भाव आँख में भी नहीं दिखता था । भगवान के लिए गौतम स्वामी को मात्र अथाग राग ही (स्नेह) नहीं था, किन्तु दिलोजान बहुमान था । तपस्वी तापस सन्यासियों के पास और छोटा निर्दोष बालक अतिमुक्त के पास उन्होने अपना नहीं किन्तु अपने गुरु भगवान महावीर के ही गुणगान व प्रशंसा की थी। Jain Education international For Private & Personal Only www.nlelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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