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________________ • गौतम स्वामी स्वंय अनेक शिष्यों के गुरु थे, फिर भी भगवान के पास अंतिम श्वास तक विनम्र शिष्य बनकर रहे थे। अपने को जब भी कुछ जिज्ञासा होती थी, तत्व का निर्णय करने का अवसर आता था, या दूसरों पर उपकार करने का प्रसंग आता था तब वह भगवान के पास पहुँच जाते थे। आदाक्षिणा करके भक्ति भाव से परमात्मा को वंदन करके हाथ जोडकर, विनम्र बनकर, समुचित समांतर स्थान ग्रहण करके, अहोभाव पूर्वक समाधान स्वीकार करते थे। • गौतम स्वामी सादाई पूर्ण जवीन के धारक थे, खुद गुरु होते हुए भी गोचरी लेने जाते थे, और किसी को प्रतिबोध करने भी जाते थे। पूर्व के भव में भी इनका परोपकार प्रसिद्ध था। जब वे जलाशय में मत्स्य बने थे। तब पूर्व परिचित श्रेष्ठि का जहाज उस जलाशय । में तुफान के कारण टूट गया। जीव बचाने को प्रेष्ठि पानी में इधर उधर तडपने लगी, तो इस मत्स्य ने श्रेष्ठि को अपनी पीठ पर । बिठाकर बचाया था। • गौतम स्वामी स्नेह की सरिता बहाने वाले थे। शिष्य संपत्ति और सत्ता के स्वामी थे, सहायक गुण वाले थे, सौजन्य स्वभाव वाले थे, सरलता, सहनशीलता, शरणस्वीकार, सत्यस्वीकार, स्वमान शुन्यता, lain Education Personal use only jainelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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