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कुण समो ए सामिय देखी, आप कन्हे हुं टाळिओ ए । जाणतो ए तिहुअणनाह, लोक विवहार न पालिओ ए । अति भलूं ए कीधलुं सामी, जाण्यं केवल मागशे ए । चिंतन्युं ए बाळक जेम, अहवा केडे लागशे ए हुं किम ए वीरजिणंद, भगते भोळो भोळव्यो ए। आपणोए अविहड नेह, नाह न संपे साचव्यो ए ॥ साचो छे एह वीतराग, नेह न जेहणे लालियो ए। तिणेसमे ए गोयम चित्त, राग विरागे वालिओ ए आवतुं ए जे उलट, रहेतुं रागे साहियुं ए। केवळ ए नाण उपन्न, गोयम सहेजे उमाहियुं ए। त्रिभुवने ए जयजयकार, केवळि-महिमा सुर करेए । गणधरु ए करे वखाण, भवियण भव जिम निस्तेर ए
(वस्तु)
पढम गणहर पढम गणहर, वरिस पचास गिहवासे संवसिअ, तीस वरिस संजम विभूसिय, सिरि केवल नाण, पुण बार वरस तिहुअण नमंसिअ, राजगृही नगरी ठव्यो, बाणुंवय वरसाउ, सामी गोयम गुणनिलो,
होस्यो सीवपुर ठाउ
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॥४७॥
118411
न
118311 10
॥५०॥
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