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मिथ्यामतिनो पार नहीं आ विश्वमां, हाम नथी हैये शुं करीओ तातजो
मन...४ वातो शीतल वायु पण थंभी गयो, पायातमा नदी सागरना नीर पडया कंइ स्थिर जो; सरोवरमां हंसो चारो चरवो त्यजी, मींची आखो ऊभा शोके स्थिरजो मामियाजाणि मन...५ करमाया तरुवर सौ आप रवि विना, खरी पडया कंइ भूपर, पर्ण कुसुम जो; ना त्यजी गुंजन पंखी सौ माले जइ चढया, जहाहाकार शोक तणी पशुओ पाडे कै बूम जो
मन...६ भल्यो साहिब ओलंभो तमने न हो,
मा पाम्यो छु हु कर्म तणा फल मुज जो, आप करो तेमां शंका शी माहरे, मान कीधुं हित घणुं छे मुज जो
मन..७ मनमां मोटी तुमने ओ शंका हती, निर्वाणे जो गोयम रहेशे पास जो;
खेद प्रसारी आत्म गुण हानी करे, समज्यो साहिब भलु कर्यु छे काज जो
मन...८
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