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________________ ___ गुरू गौतमे मनमां पधरावो, पछी अर्पे सहुने लब्धि भारी, ___ मोटा ओच्छव-महोत्सव करावो, सहुने तपनो रंग लाग्यो, लाग्यो आव्या ....... (३) ॥१॥ श्री गौतम-स्वामी का रास II ढाल पहेली वीरजिणेसर चरणकमलकमला कयवासो, या पणमवि पभणिसु सामि सार गोयमगुरू रासो। मण तणु वयण एकंत करवि निसुणो भो भविआ, जिम निवसे तुम देहगेह गुणगण गहगहिआ जंबदीव सिरिभरहखित्त खोणीतलमंडण, मगधदेश सेणिया नरेश रीउदल बलखंडण । धणवर गुब्बर नाम गाम जहिं गुणगण सज्जा विप्प वसे वसुभूइ तत्थ तसु पुहवी भज्जा तास पुत्त सिरिइंदभूइ भूवलय पसिद्धो, चउदह विज्जा विविह रुव नारि रस विद्धो (लुद्धो) विनय विवेक विचार सार गुणगणह मनोहर, सात हाथ सुप्रमाण देह रूपे रंभावर ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal use only
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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