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________________ १४. दाता जगतमां कोईपण निज पास वस्तुने दिये ना होय जे निज पास तेनुं धन किम हिज संभवे जेणे न केवल पास पण दइ दान महा अचरज कर्यु ते मंगलार्थे श्री गुरू गौतम तणुं ध्यान जरू १५. अरिहंत छो वली सिद्ध छो, सौ संघना सूरिराज छो एका तेजो महाप्रातिहार्यथी, वली सूत्रना उवज्झाय छो, वाणी अने त्रिभुवन मयी, श्री पीटकगणीओ केन्द्र छो मा ते लब्धिधारी श्री गुरू गौतम सदा समरण करूं नाथा ** श्री गौतमस्वामी आह्वान गीत(राग - गोविंदा आला...) आव्या, आव्यारे, आव्या गुरू गौतमस्वामी आव्या आसो पालवना तोरण बंधावो, घर घरमां दिवडा प्रगटावो, रंगोलीथी आंगण सजावो, सोनारूपाथी गुरू वधावो, वधावो, की गंग सुरिमंत्रमां मध्ये बिराजे, गुरू गौतमना नामो गवाये, वीरवाणीमां हैयुं डोले छे, आज भाग्य अमारा जाग्या, जाग्या Jain Education Inter आन्या....... (१) एका आव्या....... (२) few.jaihelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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