________________
नयण वयण कर चरण जिणवि पंकज जले पाडिअ, तेजे ताराचंद्र सूर आकाशे भमाडिअ। रुवे मयण अनंग करवि मेल्हिओ निरधाडिअ, धीरमें मेरु गंभीर सिंधू चंगिम चयचाडिआ
॥४॥
पेखवीनिरुवम रुव जास तणु जपे किंचिअ, मीण एकाकी कलिभीते इत्थ गुण मेहल्या संचिअडान अहवा निश्चे पुन्वजम्मे जिणवर इणे अंचिअ, रंभा पउमा गौरि गंगा रति हा विधि वंचिअ
॥६॥
नहि बुध नहि गुरु कवि न कोइ जसु आगल रहिओ, पंचसयां गुणपात्र छात्र हीडे परिवरिओ।
वीस करे निरंतर यज्ञकर्म मिथ्यामति मोहिअ, इणेछलि होसे चरणनाण दंसण विसोहिअ जंबुदीवह जंबुदीवह, भरहवासंमि, भूमितणमंडण, मगधदेस, सेणियनरेसर, वर गुब्बर गाम तिहां, विप्प वसे वसुभूए सुंदर तसु भज्जा पुहवी सयल गुणगण रुवनिहाण, ताण पुत्त विजानिलो, कम गोयम अतिहि सुजाण
Demational
Farivate 8
P
lusOnly