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________________ (ढाल दुसरी) (भाषा) चरम जिणेसर केवळ नाणी, चउविह संघ पइट्ठा जाणी। पावापुरी सामी संपत्तो, चउविह देव निकाये जुत्तो ॥८॥ देवे समवसरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति खीजे। त्रिभुवनगुरु सिंघासणे बेठा, ततखिण मोह दिंगते पेठा ॥९॥ क्रोध-मान-माया-मदपुरा, जाए नाठा जिम दिण चौरा। देवदुंदभि आकाशे वाजे, धर्मनरेसर आव्या गाजे ॥१०॥ कुसुम वृष्टि विरचे तिहां देवा, चउसठ इंद्र जसु मांगे सेवा। चामर छत्र शिरोवरि सोहे, रुपे हि जिण वर जग सहु मोहे ॥११॥ उपसम रसभरभरि वरसंता, जोयणवाणि वखाण करता। जाणिअ वर्धमान जिन पाया, सुरनर किन्नर आवे राया ॥१२॥ कांतिसमूहे झलझलकंता, गयण रणरणकंता। पेखवि इंदभूए मन चिंते, सुर आवे अम्ह यज्ञ होते ॥१३॥ तीर तरंडक जिमतेवहता, समवसरण पहुता गहगहता। तो अभिमाने गोयम जंपे, तिणे अवसरे कोपे तणु कंपे ॥१४॥ SU Jain Edigerlerational RoPos&Personalise Only www.jainelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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