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१.
(राग - मंदिर छो मुक्तितणी...) श्री इन्द्रभूति नाम जेनु, पुण्य पावन धाम छे वसुभूति तात अने जनेता, पृथ्वी हृदया राम छे सुर असुर नरनाथो सकल, जेने नमी पुलकित बने ते गौतमस्वामी सदा, मनवांछितो आपो मने. श्री वीरविभुना वदन थी, त्रिपदी लइ जेणे भली अन्तुमुहुर्त महीज द्वादश, अंगनी रचना करी जेणे वहाव्या तेज किरणो, तिमिरघेर्या भववने ते गौतमस्वामी सदा मन, वांछितो आपो मने. जेना महा आनंद सुख काजे प्रभुवीरे स्वयम् प्रगट प्रभावक मन्त्रनी रचना करीती श्रीमयम् स्मरता हता, स्मरसे स्मरे छे सूरिओ ते मन्त्रने, ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. भिक्षा भ्रमण समये श्रमणगण नाम जेनु संस्मरे, मिष्टान्न नीर अने अनुकुल वस्त्रनी प्राप्ति करे, श्री काम गौ सुरतरू सुरमणी जइ वर्या जस नामने, ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने.
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