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________________ निज लब्धिथी अष्टापदे जे जाय ते केवल वरे, जिन वचन अq सांभळी जे तीर्थप्रति विचरण करे, अष्टापदे पहोंच्या त्वरित जे रवि किरण आलंबने ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने.. मोक्षेच्छु पंदरसो तपस्वी तापसो त्यां जे हता, सौने करावे पारणुं परमान्न लावी आपता अक्षीण लब्धिनिधान जे शोभावता मुज हृदयने ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. भोजन कराव्या बाद करवी जोइओ पहेरामणी तेथी ज ते सौने घरे कैवल्यश्री सौहामणी आश्चर्य छे ते आप्युं सौने जे न होतुं निजकने ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. श्री वीरविभु निर्वाण पाम्या बाद महोत्सव आदरी पट्टाभिषेक युग प्रधानपदे करे इन्द्रोमली ओ पल परम सौभाग्य पूर्ण निहाळवा मन थनगने ते गौतमस्वामी सदा मनवांछितो आपो मने. त्रैलोक्य श्रीनुं बीज छे, परमेष्ठी पदनुं बीज छे सद्ज्ञान- सद्बीज छे, जिनराज पदनुं बीज छे U ninternational For Private & Personal use only. Wajatinelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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