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________________ प्रभू वीर निर्वाण जब आप सुना, अति खेद हुआ तब मनमे बडा, वह खेद बना वैराग्य भरा। मेरे मनमे....४ जय जय जय जय,जय नित्य तेरे, कर सहाय अब गुरुवर मुजे, सब विपत्तियोंका छेदन कर। मेरे मनमे....५ > यह है लब्धिंराया > (राग : ये मेरे दिले नादान) PER यह है लब्धिराया, विनयके गुण भंडारा, प्रभु गौतमके चरणों मे, आकरके झुक जाना... तुं वसुभूति नंदन है, तुं पृथ्वी के जाया है तुं तो कंडलपुर मंडल है, विद्यामें शिरोमणी है यह है...२ तुज अंगुष्ठ पंकजमें, अक्षीण महानसी लब्धि है, तुं तो करुणासागर है, मुज पर करुणा करना यह है...३ तेरी सुंदर सुरत है, मेरे मनको लुभाती है। मेरे प्यारे प्यारे गणधार, युग युग अमर रहना 13 यह है...४ तेरी लब्धि अनंती है, सभी जीवों के तारक है मुझे वर लब्धि देकर, भवपार करा देना यह है...५ Education Lettona Percors Only www.jainelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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