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बालक परे में जे जे पूछ्युं, ते भाख्यु हित आणि
मुज कालाने कोण समजावशे, तो बिन मधुरी वाणी वयण सुधारस वरसी वसुधा, पावन खेत समाणी नारक नर तिरि प्रमुदित मोहित, तोहि गुणमणि खाणी किसके पाउं परं अब जाइ, किसकीपकरुं पानी
कुण मुज गोयम कही बोलवे, तो सम कुण वखाणी अइमुत्तो आव्यो मुझ साथे, रमतो काचली पाणी केवल कमला उसकुं दीनो, यही कीर्ति नही छानी
चौद सहस अणगार म्होटो, कीनो कांहु पिछानी,
अंतिम अवसर करूणासागरष दूरे भेज्यो जाणी, केवल भाग न मागत स्वामी, रहत न छेडो ताणी, बीचमें छोड गयो शिवमंदिर, लोक में होत कहाणी,
खामी कुछ खिजमत में कीनि, ताकि था हि कमाणी, को स्वभाव लहे शुं सेवक, यहि बात पिछानी, वीतराग भावे चेतनता, अंतरमूर्ति कहानी, - खीमा विजय जिन गौतम गणधर, ज्योतशुं ज्योत मिलाइ,
जगतगुरू...८
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