SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बनता है। • अ से ज्ञ तक के अक्षर द्वारा अंतःमुहूर्त में द्वादशांगी की रचना करने की शक्ति होते हए भी अपने आपको अज्ञ समझना ये भी एक कला है, ५०,००० शिष्यों के स्वामी होते हुए भी अपने जात को दासानुदास समझना वो भी एक कला है, हजारों आत्मा के त्रिकाल विषयक, संशय को पल भर में छेदन करने का अमाप सामर्थ्य होते हुए भी अज्ञान की तरह संशय पूछते रहना ये भी एक कला है, स्वंय सेव्य होते हुए भी रात दिन सेवा करते रहना ये भी एक कला है, गुरू होते हुए भी हल्के फूल की तरह रहना ये भी एक कला है, प्रकृट विद्वान होते हुए भी निरभीमान रहना ये भी एक कला है, ज्ञानी होते हुए भी विनीत बन के रहना ये भी एक कला है, ये सभी गौतम स्वामी की आंतरलब्धियाँ ही बाह्यलब्धियों की जन्मदात्री थी । ऐसी कला हमारे अंदर कब आयेगी? गौतम स्वामी और आनन्द धावक • भगवान महावीर का प्रथम श्रावक था “आनन्द" । आनन्द ने भगवान के पास श्रावक के १२ व्रत अंगीकार किये । वह कट्टर श्रमणोपासक था । क्रमशः उसने श्रावक की ११ प्रतिमाओ की Jain Education inational For Private & Personal use onl augelio any org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy