SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओवा. १९ दशभेदथी जे श्रमण सुंदर धर्मनुं पालन करे, 1 ** आत्मविकास * पुष्कर कमलना पत्रनी भांति नही लेपाय जे ने जीवनी माफक अप्रतिहत वरगतिओ विचरे आकाशनी जेम निरालंबन गुण थकी जे ओपता, सेवा.२० ने अस्खलित वायु समूहनी जेम जे निर्बंध छे संगोपितांगोपांग जेना गुप्त इन्द्रिय देह छे निस्संगता विहंगशी जेनो अमूलख गुण छे, म अवा. २१ खड्गीतणा वरशृंग जेवा भावथी एकाकी जे भारंडपंखी सारिख गुणगान अप्रमत्त छे व्रतभार वहेता वर-वषभनी जेम जेह समर्थ छे, अवा. २२ कुंजरसमा शूरवीर जे छे, सिंहसम निर्भय वलीफ गंभीरता सागर सभी जेना हृदयने छे वरी जेना स्वभावे सौम्यता छे पूर्णिमाना चन्द्रनी, अवा. २३ आकाश भूषण सूर्य जेवा दीपता तपतेजथी वली पूरता दिगंतने करुणा उपेक्षा मैत्रीथी national For Private & Personal Use Only www.al elibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy