SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ गिरुए एणे अभिमान तापस जो मने चिंतवे ए। तो मुनिचडिओ वेग, आलंबवि दिनकर किरण कंचणमणि निप्फन्न दंड कलस धज वड सहिय । पेखवि परमानंद, जिणहर भरतेसर विहिअ निय निय काय प्रमाण, चउदिसि संठिअ जिणह बिंब । पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिअ वइर सामिनो जीव, तिर्यक्ज़म्म देव तिहां। प्रतिबोधे पुंडरीक, कंडरीक अध्ययन भणी वळता गोयम सामि, सवि तापस प्रतिबोध करे। लेड आपणे साथ, चाले जिम जुथाधिपति खीर खांड घृत आण, अमिअवूठ अंगुठ ठवि। गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवि पंचसयां शुभ भावि, उज्जवल भरियो खीरमसि । साचा गुरु संयोगे कवळ ते केवळ रुप हुआ पंचसयां जिण नाह, समवसरणे प्राकारत्रय। पेखवि केवल नाण, उपन्यूँ उज्जोयकरे - जाणे जिण वि पीयूष, गाजंती घण मेघ जिम । जिणवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पांचसये ॥३९॥ ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ ॥४३॥ Jain Education ernational For Private & Personal use only. jainelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy