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________________ होगा, इस प्रकार विचार कर श्री गौतम को नजदिक के गाँव में, देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध करने को भेज दिये थे। वहाँ से जब गौतम स्वामी वापस प्रभु के पास आ रहे थे तब रास्ते में ही देवो के कथन से, प्रभु महावीर के निर्वाण का समाचार मिला । यह समाचार मिलते ही असह्य खेद के साथ स्तब्ध बनकर व्यथित हृदय से, महावीर.... महावीर.... पुकारकर फुट फुट कर रोने लगे। महावीर में से वीर वीर शब्द का सतत उच्चारण करते हुए प्रभु का गुण स्मरण करने लगे। कल्पांत और विलाप करते करते वीर शब्द में से वी और र अलग होने लगे। उसमें भी वी शब्द से प्रभु की वितरागता में अपने मन को स्थिर करते ही परम गुरु भक्त, परम विनयी परम भुक्तिगुण युक्त परम लब्धिनिधान श्री गौतम स्वामी को प्रभू महावीर के वियोग की वेदना में से, नयी राह मिली और रागदृष्टि का पर्दा हट गया, आत्माशुद्धि का अमृत प्रकट हुआ और जीवन में केवलज्ञान का दिव्य प्रकाश प्रगट हुआ। अनशन और निर्वाण की प्राप्ति केवलज्ञान की प्रप्ति के बाद १२ वर्ष तक इस पृथ्वी तल पर विचरण करके, अनेक आत्माओं को धर्म में स्थिर करके, गौतम स्वामी अपने अंतिम समय पर श्री राजगृह नगर के बाहर वैभार गिरी Jain Education deras aorg
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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