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________________ महानसी लब्धि के प्रभाव से थोडी खीर होते हुए भी सभी तापसों को पारणा कराके संतुष्ट किया। ५०० तापसों को खीर खाते खाते, ५०० को प्रभु का प्रातीहार्यादि देखते देखते, और ५०० को भगवान के दर्शन होते ही केवलज्ञान की प्राप्ति हो गयी इस बात की गौतम स्वामी को जानकारी न होने से उन्होने १५०० तापसों को कहा कि प्रभू को वंदन करो, तब महावी देव ने कहाँ है गौतम ! यह सभी केवलज्ञानी है इसलिए वंदन करने का नहीं कहा जाता। यह सुनकर तुरंत गौतम स्वामी ने उन १५०० केवलज्ञानियों से क्षमा माँगी। इस प्रसंग से फिर गौतम स्वामी के मन में अपना मोक्ष होगा या नही ऐसी शंका हुई । तब प्रभु ने कहा हे गौतम ! तू चिंता मत कर, मेरे पर तेरा चिरकाल से स्नेह सम्बन्ध है । स्नेहराग दूर होने से तुं वितरागी बनेगा, और आगे जाकर हम दोनो समान बनेंगे। यह सुनकर गौतम स्वामी को शांति हुई। प्रभु वीर का निर्वाण और गौतम स्वामी को गडककेवलज्ञान स्वनिर्वाण समय नजदिक में जानकर महावीर देव ने गौतम का मूज पर अत्यंत राग है, इसलिए मूजसे दूर होंगे तो ही उसे केवलज्ञान Jain Educatie Personal se Only wajainelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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