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________________ दीपक की हाजरी होते हुए भी मोहरुप तिमिर से ढके हुए नेत्र वाले बेचारे संसारी जीव विषय कषाय आदि काँटाओ से भर इस संसार में भटकते है।" ऐसी भावदया से सर्वजीवों का उद्धार करने की भावना से सवी जीव करुं शासन रसी का चिंतन करते है और प्रयत्न करते है । वह आत्मा तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन करते है । तथा स्वजन वर्ग का उद्धार करने की भावना से भावित आत्मा गणधर पद को प्राप्त करती है। महान पुण्यशाली जीव ही ऐसी स्थिति को पा सकते है। उनकी रुप संपदा भी अन्य जीवों से विशिष्ट होती है। यावत् आहारक शरीर के रुप सौंदर्य से भी गणधर देवों का रुप अधिक होता है। गौतम स्वामी को केवलज्ञान प्राप्ति की शंका का प्रसंग 5 एक बार पृष्ठ चंपानगर के शाल और महाशाल नाम के राजपूत्रों ने प्रभु की देशना वैराग्य से पाकर अपना भाणजा गांगिल को राज्य सौंप कर दीक्षा ग्रहण की। वह ११ अंग का अध्ययन करके गीतार्थ बने । बाद में गांगिलकुमार आदि को प्रतिबोध करने हेतु प्रभु की आज्ञा से गौतम स्वामी के साथ दोनो (शालमहाशाल) पृष्ठ चंपानगरी में गये । वहाँ गांगिल राजा ने गणधर b ernational Private & Personale Only jainelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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