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________________ दिन अपनी शंका दूर होने से इन्द्रभूतिजी की तरह दीक्षा ग्रहण की। ) * गणधर पद और चार ज्ञान की प्रप्ति भगवान के पास जाने मात्र से अपनी शंका का समाधान होने से इन्द्रभूति आदि ग्यारह पंडितों का मिथ्यात्व दूर हो गया, और सम्यक्त्व की प्राप्ति हुइ । प्रभुने उनके पर वासक्षेप किया उसी वक्त सम्यग्दर्शन के साथ चार ज्ञान (मति श्रुत, अवधि और मनोपयर्व ) के धारक बने, वहाँ पर उपन्नेइवा, विगमेड़वा, धुवेइवा इस त्रिपदी प्रभु ने उनको बताई और सभी ने इस त्रिपदी के माध्यम से द्वादशांगी की रचना कर दी । यहाँ पर यह समझना है कि प्रभु के वासक्षेप का प्रभाव कितना अलौकिक है कि अंतरमुहूर्त में मिथ्यात्व का नाश, सम्यग् दर्शन की प्रप्ति और द्वादशांगी की रचना की । I * तीर्थंकर पढ़ और गणधर पद का कारण * तीर्थंकर पद को छोड़कर बाकी के सर्वपदों में गणधर पद प्रधान है । अनेक विध ग्रंथो पर सरल टिका रचनेवाले और सरस्वती के वरदान प्राप्त आचार्य श्री मलयगिरिजी महाराज ने पंचसंग्रह में कहाँ है कि कषाय कि मात्रा जिनकी मंद हुई है और सम्यग् दर्शन युक्त ऐसे जो जीव “आश्चर्य है कि महादिव्य श्री तीर्थंकर का धर्मरुप Jain Education Inter Tonal For Private & Personal send www. library.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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