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व्याक्षेप टाली अन्ययोगनो धर्मध्यानदशा वरी प्रतिक्रमण अवुं अजोड करता फरसता आतमधरी आलोचता निज दोषने बहु पुण्यपोष करी रह्यां ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना पजवी रह्यो जे सर्वने ते मोहने पजवी रह्यां ध्रुजी रह्या जे दुःखमां तस दोषने ध्रुजवी रह्यां कामी रह्या वळी कठिण कर्मनी मुक्तिने माणी रह्यां ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना
प्रत्येक रक्तकणो सदा जिनवचन भावित आपना ने आप नसनसमां वसी निजहित परहित चिंतना पळ पळ सदा सावध रही निज आत्मशुद्धि साधता ओवा सूरीश्वर भुवनभानु चरणकज हो वंदना
सूरिमंत्र ने महामंत्र जापे जापता सिद्धि वरे सुवास चुर्णनी क्षेपता विघ्नो निवारी कृति करे आशिष तणो परभाव अवो जेहथी सघळु बने ओवा सूरीश्वर भुवन भानु चरणकज हो वंदना
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