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________________ सहसकिरण सम वीर जिण, पेखवि रुप विशाल तो, ॥ एह असंभव संभवे ए साचो ए इंद्रजाळ तो तव बोलावे त्रिजग गुरु, इंदभूई नामेण तो; श्रीमुखे संशय सामि सवे, फेडे वेद पएण तो मान मेल्ही मद ठेली करी भक्तिए नामे सीस तो; पंच सयांशु व्रत लीओ ए गोयम पहेलो सीस तो तव बंधव संजम सुणवि करी, अग्निभूड़ आवेय तो, नाम लेइ आभास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो इणे अनुक्रमे गणहर रयण, थाप्या वीरे अग्यार तो, तव उपदेसे भुवन गुरु, संयम शुं व्रत बार तो बिंहु उपवासे पारणुं ए, आपणपे विहरंत तो, गोयम संयम जग सयल, जयजयकार करंत तो Jain Education International २४ ॥२१॥ For Private & Personal Use Only ॥२२॥ SIPFIF कफी ॥२३॥ ॥२४॥ (वस्तु) इंदभूइअ, इंदभूइअ, चडिअ बहुमाने, हुंकारो करि कंपतो, समोसरणे पहोतो तुरंत, अह संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फुरंत, बोधि सज्झाय मने, गोयम भवह विरत्त, दिक्ख लेइ सिक्खा सहिअ, गणहर पय संपत्त ॥२५॥ शिक ॥२६॥ ॥२७॥ www.linellbrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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