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________________ १७) चतुर्ज्ञानोपगत : मति श्रुत अवधि और मनः पर्यव-इन चार ज्ञान को धारण करनेवाले। कमाली १८) सर्वाक्षरसन्निपाती : सर्वअक्षर का संयोग जिनके ज्ञान का विषय भूत है, यानि की अक्षरों के संयोग से कोई शब्द एसा नहीं है कि जिसका ज्ञान उनको न हो । मतलब सुनने को पसंद होवे ऐसे प्रकार के अक्षरों को निरंतर बोलनेवाले। इस प्रकार गुरु गौतम स्वामीजी का जीवन चरित्र बहुविध विशिष्ट बातों से सभर और अतिप्रेरक है । जिनको स्वजीवन में सबोध प्राप्त करना हो उनके लिए तो अखुट खजाना स्वरुप है। श्री गौतम स्वामी की आराधना तप जप आदि से करने के साथ साथ श्री संघ को सदैव सर्वप्रकार से ज्ञाना दि का दान और बाह्य सर्व-प्रकार की सहाय, भक्ति करते रहना यह गौतम पद की उपासना है। गौतम स्वामी महावीर प्रभु के प्रथम गणधर थे, नाम से इन्द्रभूति गणधर है किन्तु गौतम पद से (गोत्र से) प्रसिद्ध हुए, उसमे कारण विशिष्ट पूण्य युक्त गणधर पणारुप गौतम गणधर पणा समझना चाहिए। * पुरुषादाणीय तीर्थंकर क्वचित होते है । प्रत्येक चोबीस में नहीं होते है ।जैसे की इस चौबीसीमें पार्श्वनाथप्रभु उसी प्रकार गौतम स्वामी जैसे गणधर भी क्वचित ही होते है इसलिए तो, १४५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.laneleorg
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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