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________________ सम्मिलित हुए । अर्थात चार याम (महाव्रत) को बदल कर पाँच याम का स्वीकार किया। • अनंत लब्धि निधान गुरु गौतम स्वामी ने अपने जीवन में सिर्फ दो बार ही लब्धि का उपयोग किया था। १) मोक्ष प्राप्ति की प्रतीति करने हेतु अष्टापद पर्वत पर सूर्य की किरण पकड कर गये। २) १५०० तापस-संन्यासी को जैन दीक्षा देकर पहली बार का पारणा कराते समय खीर को अक्षय बनायी। • वीसस्थानक तप की आराधना में एक विशिष्टता है की तीर्थंकरनाम कर्म की निकाचना में कारण माना गया इस तप में, बीस-बीस स्थानों में एक भी स्थान में तीर्थंकर का नाम नही है। लेकिन सर्वलब्धि संपन्न श्री गौतम स्वामी का नाम आता है। और बडे आश्चर्य की बात यह है कि उन्नीस स्थान की आराधना एक उपवास से होती है, किंतु गौतमस्थान की आराधना दो उपवास से होती है। • बहुत सारे मंगल में एक अलौकिक मंगल के रुप गौतमस्वामी को स्वीकार किया है । इसकी प्रतीति प्रतिवर्ष कार्तिक सुद एकम के दिन वर्ष की नई प्रभात में गौतम स्वामी रास सुनने से होती है। Jain Education aternational For Private & Personal Use Only nelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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