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________________ वीर जिनेश्वर पदकज भोगी, भमरो तुं महाभागी (२) विनयवंत विख्यात वजीरो, वीर रागी अकांगी (२) चौदसहस अणगार वडेरो, पण ना मान लगारी हे गौतम गणधारी...२ अक्षीण महानस आदि लब्धि, तुज चरणे रहेनारी (२) निज पासे अणुहुँत प्रदाता, ओ अचरिज तुज भारी (२) सहस पंचशत तापस केवल, लब्धिकारी हुशीयारी हे गौतम गणधारी...३ केवली सहस पचासतणा हो, गुरुवर छो चउनाणी (२) सुरतरं-मणी-धेनु तुज नामे, उपमा तारी अजाणी (२) सदा सर्वने सर्व प्रदाता, परम पदार्थ विचारी हे गौतम गणधारी...४ लब्धिवंत गौतम तुजनेहे, वीती रातडी काली (२) जे समरे प्रभु नाम तमारुं, तेने नित्य दिवाली (२) नाम काम वरदायक तारा, पूरण परचा कारी हे गौतम गणधारी...५ प्रेमे तुज चरणोनी दासी, श्रुतदेवी श्रीनारी (२) गणी पीटक त्रिभुवन स्वामीनी, सर्व सुरेशजुहारी (२) Jain Education in t o Private Personal only wwalibay.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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