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वीर पासेथी त्रिपदी पामी, सर्वे गणधरराय
द्वादशांगी रचना करे क्षणमां, जग उपकार कराय पूजो...१ छ छठ तप करता बहु भावे, इन्द्रभूति गणराय, परवरिया पांचसो शिष्योथी, उपदेश देता जाय
या
पूजो....२ जग विचरी उपकार करे बहु, श्रेष्ठ संयम पालनहार,
तप संयमे लब्धि मेलवी ने, अनंत लब्धि धरनार पूजो...३ बोध दइ जस जस दीक्षा दे, ते ते केवलि थाय, निगडा निजपासे केवल नहीं तोये, केवलज्ञान देवाय ग पूजो...४
हु मुक्तिपामु के नहि प्रभु, गौतमथी पूछाय
आप लब्धे अष्टापद जई जिन, वांदे ते मोक्षे जाय पूजो.....५ महावीर मुखथी सुणी मुक्तिपंथ, गौतम हर्षित थाय, गौतमनीति चतुर्विध संघ कहे, गौतम नामे सुख थाय पूजो....६ विनयमूर्ति गौतम स्वामी सोहाय*
(राग-आंखडी मारी प्रभु) विनयमूर्ति गौतम स्वामी सोहाय छे, वीरनी भक्ति करता हैया हरखाय छे...
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