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________________ लब्धिवंत वंदन करू, दूरित हरण अनिल श्रुत देवी नवनिधि वली, श्री देवी जयकार, जस चरणे अहोनिशरमे, ते गौतम जगसार लब्धि केवल चरणतणी, वरवा गौतम स्वाम, पूजुं त्रिकरण योगथी, भुवनभानु गुणधाम 19 विनय धर्म वांदी वरूं, आत्मजित करनार, जग सुख कारण जग जयो, वल्लभ गौतम प्यार + श्री गणधर अग्निभुति का चैत्यवंदन + ॥६॥ कर्म तणो संश धरी, जिन चरणे आवे ; अग्निभुति नामे करी तव ते बोलावे, ओक सुखी ओक दुःखी, ओक किंकर ने स्वामी पुरुषोंत्तम ओके करी, केम शक्ति पामी. कर्मतणा पर भावथी अ, सकल जगत मंडाण; ज्ञानविमलथी जाणीये, वेदारथ सुप्रमाण. चैत्यवंदन श्री १४५२ गणधर का चैत्यवंदन सरस्वति आपे सरस वचन, श्री जिन थुणता हरखे मन; जिन चोविसे गणधर जेह, पभणुं संख्या सुणो तेह Jain Education Inte Only 11311 11811 PIP ॥५॥ TRISTS ॥१॥ ॥२॥ 11311 imag ॥१॥ jamnehrary.org.
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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