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लब्धिवंत वंदन करू, दूरित हरण अनिल श्रुत देवी नवनिधि वली, श्री देवी जयकार, जस चरणे अहोनिशरमे, ते गौतम जगसार लब्धि केवल चरणतणी, वरवा गौतम स्वाम, पूजुं त्रिकरण योगथी, भुवनभानु गुणधाम
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विनय धर्म वांदी वरूं, आत्मजित करनार, जग सुख कारण जग जयो, वल्लभ गौतम प्यार + श्री गणधर अग्निभुति का चैत्यवंदन +
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कर्म तणो संश धरी, जिन चरणे आवे ; अग्निभुति नामे करी तव ते बोलावे, ओक सुखी ओक दुःखी, ओक किंकर ने स्वामी पुरुषोंत्तम ओके करी, केम शक्ति पामी. कर्मतणा पर भावथी अ, सकल जगत मंडाण; ज्ञानविमलथी जाणीये, वेदारथ सुप्रमाण.
चैत्यवंदन
श्री १४५२ गणधर का चैत्यवंदन सरस्वति आपे सरस वचन, श्री जिन थुणता हरखे मन; जिन चोविसे गणधर जेह, पभणुं संख्या सुणो तेह
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