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________________ सकल सुरासुर हरखित होवे, जुहार करणकुं आवे, आवे, इन्द्रभूति अनुभवकी लीला, ज्ञानविमल गुण गावे, गावे, वीर. ९ प्रेम थी पधारों रे, आवो गौतम गुरु आंगणे, (तर्ज- वीर कुंवर झुलेरे....) प्रेम थी पधारो रे, आवो गौतम गुरु आंगणे, भावथी वधावुं रे, बेसाडु सोवन सिंहासने अवसर पाम्यो हुं, पुण्यना उदयथी, पुण्य प्रदाई रे, शोभा तमारी वीरशासने सूरिमंत्र पूजनमां, स्नेहथी पधारो, अंतर आवो रे, ज्ञान तणु दान करवा मने लब्धि अनंतधार, स्वाम तुं सोहामणो, ज्ञाननी लब्धि रे, प्रार्थ प्रभु हुं तारी कने Jain Education Ternational ७२ वीर. ८ 師 For Private & tunal use Only HE कककी प्रेमथी. ॥ १ ॥ लब्धि केवलनी आप रलियामणी, केवल आपी रे, स्थापो मने शिव आसनेप्रेमथी. ॥४॥ नि प्रेमथी. ॥२॥ प्रेमथी. ॥३॥ jainelibrary.org
SR No.003164
Book TitleLabdhinidhan Gautamswami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshbodhivijay
PublisherAndheri Jain Sangh
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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